वॉट्सऐप ने हाईकोर्ट से कहा- अगर सरकार ने एन्क्रिप्शन तोड़ने के लिए मजबूर किया, तो देश छोड़ देंगे

दिल्ली हाईकोर्ट में आईटी नियमों के एक प्रावधान को चुनौती दिए जाने के मामले में वॉट्सऐप ने कहा कि इसकाइस्तेमाल लोग इसलिए करते हैं क्योंकि यह एन्क्रिप्टेड है और लोगों को इसकी प्राइवेसी पर भरोसा है. लेकिन एन्क्रिप्शन तोड़ने के बाद इसकी प्राइवेसी ख़त्म हो जाएगी. 

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: मेटा के स्वामित्व वाले वॉट्सऐप ने गुरुवार (25 अप्रैल) को दिल्ली उच्च न्यायालय  कि उसे अगर एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ने के लिए मजबूर किया गया तो वो भारत में प्रभावी रूप से बंद हो जाएगा और देश छोड़ देगा.

रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी के वकील तेजस करिया ने कहा, ‘एक मंच के रूप में, हम कह रहे हैं, अगर हमें एन्क्रिप्शन तोड़ने के लिए कहा जाता है, तो वॉट्सऐप यहां से चला जाएगा.’

मालूम हो कि अदालत वॉट्सऐप की 2021 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिए 2021 सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के एक प्रावधान को चुनौती दी गई है. इसमें सूचना के पहले स्रोत की पहचान का खुलासा करने की बात कही गई है.

कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ के सामने वॉट्सऐप के वकील ने कहा, ‘वॉट्सऐप का इस्तेमाल लोग इसलिए करते हैं क्योंकि यह एन्क्रिप्टेड है और लोगों को इसकी प्राइवेसी पर भरोसा है. यूजर्स ये जानते हैं कि वॉट्सऐप पर भेजे गए मैसेज एंड टू एंड एन्क्रिप्टेड होते हैं. ऐसे में उनके मैसेज को कोई भी नहीं पढ़ सकता है, लेकिन एन्क्रिप्शन तोड़ने के बाद इसकी प्राइवेसी खत्म हो जाएगी.’

वॉट्सऐप के मुताबिक, सरकार के इस प्रवाधान को लागू करने के लिए उन्हें मैसेजों की एक पूरी चेन तैयार करनी होगी, क्योंकि उन्हें नहीं पता है कि कौन से मैसेज को कब डिक्रिप्ट करने के लिए कह दिया जाए. इसके लिए अरबों मैसेज को सालों तक स्टोर करना होगा.

इस मैसेजिंग प्लेटफॉर्म ने तर्क दिया है कि यह नियम एन्क्रिप्शन के साथ-साथ यूजर्स की निजता को भी कमजोर करते हैं. यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत उपयोगकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है. वॉट्सऐप के वकील करिया ने कहा कि ‘दुनिया में कहीं और ऐसा कोई नियम नहीं है.’

वकील ने आगे कहा, ‘इसमें दो अधिकार हैं. एक है निजता का और दूसरा सरकार के जानने का अधिकार. उदाहरण के लिए, यदि कोई आतंकवादी संदेश भेज रहा है, तो उसे पकड़ना होगा. लेकिन हम बीच में फंस गए हैं. क्या हमें अपने प्लेटफॉर्म के नियम को किसी एक के लिए तोड़ना चाहिए या अरबों लोगों के लिए बचाना चाहिए. क्या यह सही है? इस पर विचार करना होगा. अदालत को इस नियम की संवैधानिक वैधता की जांच करनी होगी. आईटी अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो सरकार को यह नियम बनाने की अनुमति देता हो.’

गौरतलब है कि अन्य मैसेजिंग प्लेटफॉर्म भी पहले एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बता चुके हैं.

सिग्नल की सीईओ मेरेडिथ ह्विटेकर ने पिछले साल जून में कहा था, ‘इससे पहले कि हम निजता के वादों में घालमेल करें या उन्हें कमजोर करें, हम इसे बंद कर देंगे क्योंकि एन्क्रिप्शन तकनीकी गारंटी है. यदि हम संचार के लिए वास्तव में निजी तंत्र प्रदान नहीं कर सकते, तो हमारे पास अस्तित्व में रहने का कोई कारण नहीं है. हम इस पर अडिग हैं.’

उसी सम्मेलन में, मेटा में वॉट्सऐप के प्रमुख विल कैथकार्ट ने कहा था कि एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को लेकर दुनिया भर में हमले जारी है.

उन्होंने कहा था, ‘वॉट्सऐप को जमीनी स्तर से निजी होने के लिए डिज़ाइन किया गया है और मेटा मानवाधिकारों के प्रवर्तक के रूप में एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के लिए प्रतिबद्ध है. इसकी रक्षा करना निजता, सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण है.’