जन गण मन की बात में विनोद दुआ के ‘मीटू’ को लेकर दिए बयान पर द वायर का पक्ष

#मीटू: जन गण मन की बात के पिछले एपिसोड में विनोद दुआ द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों को गलत तरह से पेश करने और उसका मखौल बनाने के लिए द वायर के संपादक माफ़ी मांगते हैं.

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विनोद दुआ (फोटो: द वायर)

#मीटू: जन गण मन की बात के पिछले एपिसोड में विनोद दुआ द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों को गलत तरह से पेश करने और उसका मखौल बनाने के लिए द वायर के संपादक माफ़ी मांगते हैं.

विनोद दुआ (फोटो: द वायर)
विनोद दुआ (फोटो: द वायर)

द वायर द्वारा 20 अक्टूबर, 2018 को जारी किया गया बयान.

द वायर  ने #मीटू आंदोलन की रिपोर्टिंग पूरी शिद्दत के साथ की है और संपादकीय स्तर पर इसका पूरा समर्थन किया है, क्योंकि यौन उत्पीड़न हमारे समय की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है.

इस आंदोलन के दरमियान हमारे एक कंसल्टिंग एडिटर विनोद दुआ पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा. वे सप्ताह में चार दिन मंगलवार से शुक्रवार तक प्रसारित होने वाले लोकप्रिय वीडियो शो ‘जन गण मन की बात’ की एंकरिंग करते हैं.

द वायर  को 2015 में स्थापित किया गया था. निष्ठा जैन के आरोप का संबंध जिस घटना से है, वह 1989 में हुई थी. जिस दिन, रविवार को उनका फेसबुक पोस्ट सार्वजनिक हुआ, उसी दिन द वायर  की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) जिस पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने का दायित्व है, की अध्यक्ष ने आईसीसी के अन्य सदस्यों को आरोपों की गंभीर प्रकृति के बारे में बताया और कहा कि समिति को इस ओर ध्यान देना चाहिए.

अगले ही दिन, यानी सोमवार, 15 अक्टूबर को आईसीसी की बैठक हुई जिसमें यह फैसला किया गया कि निष्ठा जैन से आईसीसी के समक्ष एक शिकायत करने की दरख्वास्त की जाए, ताकि इसकी प्रक्रिया औपचारिक तौर पर शुरू हो सके. निष्ठा ने कहा कि वह जल्दी ही ऐसा करेंगी.

17 अक्टूबर, 2018 को यानी निष्ठा जैन द्वारा आरोप लगाए जाने के तीन दिन के बाद, द वायर  ने उनके आरोपों की जांच करने के लिए एक बाहरी समिति के गठन का फैसला किया.

हम आईसीसी के दायरे के बाहर नजर आने वाली एक घटना को, इसके अधिकार क्षेत्र के मामलों से दूर रखने के लिए इस पहल पर काम कर रहे थे. हम यह भी सुनिश्चित करना चाहते थे कि यह कार्यवाही प्रश्नों से परे ईमानदार और पक्षपातरहित लोगों द्वारा की जाए.

इस दिशा में तेजी से काम करते हुए हमने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आफताब आलम, पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज जस्टिस अंजना प्रकाश, प्रोफेसर नीरा चंढोक और पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह से निष्ठा जैन के आरोपों की एक समयबद्ध जांच कराने के लिए बाहरी समिति का सदस्य बनने के लिए रजामंदी भी ले ली.

ये नाम निष्ठा जैन के साथ साझा किए गए, जिस पर उन्होंने एक और स्त्री सदस्य के तौर पर पांचवें सदस्य को इसमें शामिल करने का अनुरोध किया, जिसे हमने तत्काल स्वीकार कर लिया. प्रोफेसर पैट्रिशिया ओबेराय इस समिति की पांचवीं सदस्य हैं.

चूंकि इस समिति के सदस्य निष्ठा जैन के आरोपों की जांच करने में द वायर  की मदद करने के लिए अपनी अन्य प्रतिबद्धताओं को स्थगित कर रहे थे, और चूंकि निष्ठा ने भी अपने फेसबुक पोस्ट में इस मामले में त्वरित कार्रवाई की उम्मीद जताई थी, इसलिए हमने उन्हें 17 अक्टूबर को इस समिति को लेकर अपनी लिखित रजामंदी देने और अपनी शिकायत 18 अक्टूबर तक लिखित रूप में देने के लिए कहा.

उन्होंने जवाब देते शिकायत दायर करने के लिए 26 अक्टूबर तक का समय देने के लिए कहा, जिसे हमने मान लिया, लेकिन हमने उनसे कम से कम औपचारिक तौर पर अपनी अनुमति देने के लिए अवश्य कहा ताकि हम समिति के सदस्यों के साथ इसकी पुष्टि कर सकें और इस तरह से प्रक्रिया शुरू हो सके. उन्होंने 18 अक्टूबर की शाम को ऐसा किया.

सभी अनुमतियां मिल जाने के बाद, द वायर  ने 20 अक्टूबर को समिति के गठन और इसके सदस्यों के बारे में घोषणा कर दी. निष्ठा जैन से शिकायत मिल जाने के बाद बाहरी समिति अपने कामकाज की समय-सारणी घोषित करेगी.

निष्ठा के आरोपों को द वायर  द्वारा जिस तरह से बरता गया, उसको लेकर हमारे पाठकों, शुभचिंतकों, द वायर  के पब्लिक एडिटरों और हमारे अपने सहकर्मियों द्वारा कई सवाल उठाए गए हैं.

हमारा यह यकीन है कि सबसे अहम सवाल कि आखिर द वायर अपने कंसल्टिंग एडिटर पर निष्ठा जैन द्वारा लगाए गए आरोपों पर किस तरह से कार्रवाई करना चाहती है, इसका जवाब ऊपर दे दिया गया है. लेकिन इसके अलावा पिछले कुछ दिनों में कुछ और सवाल व चिंताएं प्रकट किए गए हैं जिनका जवाब हमने नीचे देने की कोशिश की है.

प्रश्न 1. द वायर  ने विनोद दुआ को बरखास्त क्यों नहीं किया या निष्ठा जैन के आरोपों सामने आने के साथ ही उनके शो को स्थगित क्यों नहीं किया?

मीटू आंदोलन में लगाए गए आरोपों का संबंध विभिन्न तरह की स्थितियों से है, जो अलग-अलग जवाबों की मांग करते हैं. कार्यस्थल पर हाल-फिलहाल के यौन उत्पीड़न की शिकायतें तत्काल कार्य बंटवारे में बदलाव की मांग करती हैं, अगर शिकायतकर्ता और आरोपित उत्पीड़क एक साथ काम करते और अगर उत्पीड़क निरीक्षक (सुपरवाइजरी) पद पर है.

पहले की शिकायत की घटनाएं, जो मीडिया हाउस के कार्यस्थल पर घटित हुईं, वे अलग तरह के कदमों की मांग करती हैं. पुरानी घटनाओं की शिकायतें, जो मीडिया हाउस के कार्यस्थल से पूरी तरह से असंबद्ध हैं, और भी भिन्न तरह की प्रतिक्रिया की मांग करती हैं.

वैसी शिकायतें, जो उत्पीड़न, यहां तक कि हिंसा से जुड़ी हैं, खासकर साथी द्वारा की गई हिंसा, जो मीडिया हाउस के कार्यस्थल से जुड़ी हुई नहीं हैं, लेकिन कर्मचारी के चरित्र को कठघरे में खड़ा करती है, वह भिन्न तरह की कार्रवाई की मांग करती हैं.

दूसरे मीडिया घरानों की तरह हमें भी इस मामले में, यानी निष्ठा जैन द्वारा विनोद दुआ के खिलाफ लगाए गए आरोपों को लेकर, जो कि 1989 की हैं, अपने पास मौजूद विकल्पों के बारे में सोचने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. हमारे पास इस मामले में अनुसरण करने के लिए कोई नक्शा नहीं था.

अंतरिम उपायों (जैसे किसी व्यक्ति के निलंबन) के बारे फैसला लेते वक्त निर्देशक सिद्धांत कुछ चीजों पर गौर करने के लिए कहते हैं :

  • क्या चल रहे या संभावित नुकसान को रोकने के लिए व्यक्ति का निलंबन जरूरी है?
  • क्या उस व्यक्ति का बना रहना, उन लोगों को प्रभावित कर सकता है, जिनके साथ व्यक्ति निरीक्षक (सुपरवाइजर) की भूमिका में है.
  • क्या व्यक्ति का अपने पद पर बने रहना किसी वर्तमान जांच के नतीजों को किसी तरह प्रभावित कर सकता है.
  • क्या व्यक्ति का पद पर बने रहना किसी मौजूदा जांच को लेकर सार्वजनिक धारणा को पूर्वाग्रहग्रस्त कर सकता, क्योंकि प्रतिष्ठा का मसला भी यहां दांव पर होता है.
  • क्या उस निलंबन को स्थायी करने या उसे वापस लेने को लेकर कोई स्पष्ट रोडमैप/नक्शा है- जिसकी गैरहाजिरी में यह अनिश्चितकालीन बना रहेगा, जिसे न वापस लिया जा सकेगा और न जिसे निलंबन में तब्दील किया जाएगा.
  • पहले और दूसरे सवाल के जवाब स्पष्ट तौर पर न में थे. दुआ निरीक्षक/सुपरवाइजर नहीं है. न ही द वायर  में रहते हुए उनके आचरण को लेकर कोई शिकायत आई है. चूंकि कोई जांच शुरू नहीं हुई थी, इसलिए सवाल नंबर 3 और 4 का कोई वजूद ही नहीं था.

अब चूंकि, हमने एक समिति का गठन कर दिया है और निष्ठा जैन ने एक समयबद्ध कार्यवाही को लेकर अपनी अनुमति दे दी है, पांचवें सवाल का जवाब है- हां. अब एक ठोस नक्शा हमारे सामने है. इसलिए विनोद दुआ के कार्यक्रम, जिसे उन्होंने स्वैच्छिक रूप से एक सप्ताह के लिए स्थगित किया था, का प्रसारण नहीं किया जाएगा और यह समिति द्वारा काम पूरा किए जाने तक स्थगित रहेगा.

प्रश्न 2. द वायर  ने विनोद दुआ को अपने खिलाफ लगे सभी आरोपों को खारिज करने मंच क्यों दिया?

जिस समय विनोद दुआ ने ‘जन गण मन की बात’ के अपने एपिसोड की रिकॉर्डिंग की, उस समय तक उनके खिलाफ किसी जांच की शुरुआत नहीं हुई थी.

आईसीसी ने 15 अक्टूबर को निष्ठा जैन से संपर्क किया था और उनसे एक औपचारिक शिकायत देने का अनुरोध किया था, ताकि वह अपनी कार्यवाही शुरू कर सके. कोई शिकायत नहीं मिली थी. बाहरी समिति का गठन 17 अक्टूबर को हुआ और हमें निष्ठा से इस बारे में अनुमति मिली.

विनोद दुआ ने द वायर  को निष्ठा जैन के आरोपों- जिसकी रिपोर्टिंग खुद द वायर द्वारा की गई- पर विचार करने के लिए मौका/समय देने के लिए अपने कार्यक्रम के स्थगन की घोषणा की और इसके बाद यह भी कहा कि वे उनके आरोपों से इनकार करते हैं, जो कि एक आरोपित व्यक्ति के तौर पर उनका अधिकार था.

हमारी राय यह थी कि उनके द्वारा द वायर  पर उनके शो के मंच से या किसी दूसरी मीडिया मंच से आरोपों को नकारने का कोई असर उनके खिलाफ की जा रही जांच पर नहीं पड़ेगा.

संभवतः विनोद दुआ इस मामले में अलग से एक बयान जारी कर सकते थे, जो उनके शो से जुड़ा हुआ नहीं होता. लेकिन यह महसूस किया गया कि उन्हें अपने दर्शकों- जो द वायर  के बड़े पाठक समूह का हिस्सा हैं- को यह समझाना होगा कि आखिर वे अपने शो को स्थगित क्यों कर रहे हैं.

प्रश्न 3. क्या द वायर  विनोद दुआ द्वारा मीटू आंदोलन को नकारने से इत्तेफाक रखता है?

नहीं ऐसा नहीं है. द वायर  का मीटू आंदोलन को समर्थन इसके द्वारा इसकी निरंतर रिपोर्टिंग और संपादकीय लेखों से साफ है. एशियन एज में एमजे अकबर के मातहत काम करने वाली एक पत्रकार के अनुभव का पहला विस्तृत विवरण द वायर द्वारा प्रकाशित किया गया.

प्रश्न 4. अगर द वायर  मीटू का समर्थन करता है, तो इसने विनोद दुआ को उन पर लगे आरोपों को नकारने की इजाज़त कैसे दी?

द वायर  एक मीडिया प्लेटफॉर्म है और मीटू आंदोलन का इसके द्वारा किया गया सारा कवरेज दो सिद्धांतों का अनुकरण करता है :

1. अनाम शिकायतों की कोई रिपोर्टिंग नहीं की जाएगी और 2. आरोपित व्यक्तियों से संपर्क करके उन्हें अपने बचाव में चाहे जो कहना है, कहने देने, आरोपों को नकाराने, खारिज करने आदि का मौका देना.

अन्य आरोपितों की तरह ही विनोद दुआ को उनके खिलाफ लगे आरोपों को नकारने का अधिकार था. दूसरे आरोपितों के पास भी यह अधिकार है.

प्रश्न 6. विनोद दुआ ने अपने शो को स्थगित क्यों किया और यह क्यों कहा कि वे एक सप्ताह के लिए ऐसा कर रहे हैं?

दुआ को इस बात का इल्म था कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप द वायर  को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उन्हें स्वैच्छिक तरीके से अपने शो को स्थगित करने का प्रस्ताव दिया ताकि हमें अपनी इच्छा के मुताबिक उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच करने का मौका/वक्त मिल सके.

उन्होंने कहा कि पहले की तरह अपने शो को रिकॉर्ड करेंगे, लेकिन साथ ही अपने दर्शकों को यह बताएंगे कि उनके खिलाफ एक आरोप लगा है और वे पूरी तरह से उन आरोपों को नकारते हैं, लेकिन वे एक सप्ताह के लिए अपने कार्यक्रम को स्थगित कर रहे हैं ताकि द वायर  को अपने मनमुताबिक इस मामले में कार्यवाही करने के लिए वक्त मिल सके.

उन्होंने यह भी कहा कि वे एक सप्ताह के बाद इस बारे में घोषणा करेंगे कि वे अपने कार्यक्रम को जारी रख रहे हैं या नहीं. द वायर  ने उसके बाद एक एक जांच समिति का गठन कर दिया है और जैसा कि हमने बताया, विनोद दुआ का शो इस समिति के काम करने के दरमियान प्रसारित नहीं होगा.

प्रश्न 7. क्या द वायर  विनोद दुआ के इस बयान का समर्थन करता है कि इन आरोपों के रूप में उन पर कीचड़ उछाला गया है?

यौन उत्पीड़न के आरोपित व्यक्ति के तौर पर विनोद दुआ के पास उनके खिलाफ लगे आरोपों को झूठा बताने का अधिकार है और यह उन पर है कि यह कैसे करते हैं. दूसरे आरोपितों ने भी उन पर लगे आरोपों को खारिज किया है, कुछ लोगों ने इसे ज्यादा परिष्कृत तरीके और सूझबूझ के साथ किया है.

यह जरूर है कि मीटू आंदोलन की भी अपनी सीमाएं हैं और इन पर संजीदगी के साथ बहस की जा सकती है, की जानी चाहिए. इसके केंद्र में यौन हिंसा और उत्पीड़न के निजी अनुभवों को बयान करने का स्त्री का संघर्ष छिपा है. ऐसा दूसरे पीड़ितों को प्रोत्साहित करके और थोड़ी जवाबदेही और न्याय सुनिश्चित करके किया जाना है.

यह कहना अनुचित और गलत होगा कि सामान्य तौर पर यह आंदोलन कीचड़ उछालने वाला है. ऐसा नजरिया द वायर  के संपादकीय पक्ष के पूरी तरह से उलट है.

उनका कार्यक्रम बगैर किसी संपादकीय परीक्षा से गुजरे प्रसारित किया गया और यह हमारी तरफ से दूरदृष्टि की एक बड़ी चूक थी. कार्यक्रम की शुरुआत में उन्होंने मीटू आंदोलन को, भटकाव करार देने वाली, जो कुछ टिप्पणियां कीं उन्हें हमारे नोटिस में लाए जाने के तत्काल बाद संपादित करके हटा दिया गया.

प्रश्न 8. क्या आप विनोद दुआ के इस कथन से सहमत हैं कि उन पर लगाए गए आरोप यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं बल्कि सिर्फ ‘परेशान करने’ की श्रेणी में आते हैं?

इस बहस में गए बिना कि उन पर लगे आरोप सही हैं या गलत- और द वायर  इस बात को दोहराता है कि वह न तो निष्ठा जैन के आरोपों और न विनोद दुआ के इनकार का समर्थन करता है- इस बात में कोई संदेह नहीं है ये आरोप आचरण को संबंधित हैं जो ‘यौन उत्पीड़न’ की श्रेणी के भीतर आते हैं.

यही कारण है कि निष्ठा के आरोपों पर द वायर की रिपोर्ट का शीर्षक था, ‘विनोद दुआ पर फिल्मकार ने लगाए यौन उत्पीड़न के आरोप’. यह बात सबको स्पष्ट होनी चाहिए.

द वायर  के संपादक बिना किसी शर्त के ‘जन गण मन की बात’ के आखिरी एपिसोड में आरोपों को गलत तरह से पेश करने और उसका मखौल बनाने के लिए माफी मांगते हैं.

सिद्धार्थ वरदराजन

सिद्धार्थ भाटिया

एमके वेणु

20 अक्टूबर, 2018

(इस बयान को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)