प्रो. जीडी अग्रवाल के शव पर विवाद, हाईकोर्ट द्वारा अंतिम दर्शन का आदेश, सुप्रीम कोर्ट ने रोका

गंगा सफाई के लिए अनशन पर बैठे पर्यावरणविद् प्रो. जीडी अग्रवाल के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को लेकर विवाद शुरू हो गया है. उन्होंने अपना शरीर एम्स को दान में दे दिया था. उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन को लेकर विवाद कोर्ट तक पहुंच गया है.

Haridwar: In this photo dated Oct 10, 2018, is seen environmentalist G D Agarwal, who was on fast unto death since June 22 for a clean River Ganga, being forcibly taken to the hospital after his health detriorated in Haridwar. Agarwal passed away on Thursday, Oct 11, 2018 at AIIMS Rishikesh following a heart attack. (PTI Photo) (PTI10_11_2018_000109)
Haridwar: In this photo dated Oct 10, 2018, is seen environmentalist G D Agarwal, who was on fast unto death since June 22 for a clean River Ganga, being forcibly taken to the hospital after his health detriorated in Haridwar. Agarwal passed away on Thursday, Oct 11, 2018 at AIIMS Rishikesh following a heart attack. (PTI Photo) (PTI10_11_2018_000109)

गंगा सफाई के लिए अनशन पर बैठे पर्यावरणविद् प्रो. जीडी अग्रवाल के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को लेकर विवाद शुरू हो गया है. उन्होंने अपना शरीर एम्स को दान में दे दिया था. उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन को लेकर विवाद कोर्ट तक पहुंच गया है.

Haridwar: In this photo dated Oct 10, 2018, is seen environmentalist G D Agarwal, who was on fast unto death since June 22 for a clean River Ganga, being forcibly taken to the hospital after his health detriorated in Haridwar. Agarwal passed away on Thursday, Oct 11, 2018 at AIIMS Rishikesh following a heart attack. (PTI Photo) (PTI10_11_2018_000109)
पर्यावरणविद् जीडी अग्रवाल (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिवंगत पर्यावरणविद् जीडी अग्रवाल की मौत के बाद उनके पार्थिव शरीर को लेकर शुरू हुआ विवाद अदालत पहुंच चुका है.

बीते शुक्रवार की सुबह उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ऋषिकेश के एम्स अस्पताल को निर्देश दिया था कि अग्रवाल के पार्थिव शरीर को मातृ सदन को सौंप दिया जाए. मातृ सदन वही आश्रम है जहां पर जीडी अग्रवाल रहा करते थे.

इस फैसले के तुरंत बाद एम्स ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी. इस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया है. इसका मतलब है कि अब जीडी अग्रवाल का पार्थिव शरीर एम्स अस्पताल के पास ही रहेगा.

दरअसल, जीडी अग्रवाल ने अपना पूरा शरीर ऋषिकेश के एम्स अस्पताल को दान कर दिया था. उनके निधन के बाद अस्पताल ने उनका शरीर अपने पास रख लिया और किसी को देखने नहीं दिया.

इस बात को लेकर काफी विवाद चलता चला आ रहा है. मातृ सदन के लोग और प्रो. जीडी अग्रवाल के अनुयायी अस्पताल से ये मांग कर रहे हैं कि उनके शरीर को आम जनता के लिए दर्शन के लिए दिया जाए. हालांकि एम्स इससे इनकार करता आ रहा है.

बता दें कि गंगा की सफाई और उसे अविरल बनाने की मांग को लेकर प्रो. जीडी अग्रवाल इस साल 22 जून से आमरण अनशन पर बैठे थे. इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को तीन बार पत्र लिखा और गंगा सफाई के लिए प्रभावी कदम उठाने की मांग की.

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ़ से उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. अंतत: आमरण अनशन के 112वें दिन बीते 11 अक्टूबर को उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. मृत्यु से कुछ दिन पहले उन्होंने पानी पीना भी छोड़ दिया था.

जीडी अग्रवाल का निधन ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में ही हुआ था. जब मातृ सदन के लोगों ने अंतिम दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर की मांग की तो अस्पताल प्रबंधन ने मना कर दिया. इसे लेकर अग्रवाल के एक अनुयायी विजय वर्मा उत्तराखंड हाईकोर्ट गए और अंतिम दर्शन के लिए उनका शरीर दिए जाने की मांग की.

इस पर कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और जस्टिस मनोज तिवारी ने कहा, ‘हम इस बात को लेकर सहमत हैं कि अनुयायियों को स्वामी सानंद (जीडी अग्रवाल स्वामी सानंद के नाम से भी जाने जाते थे) के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन का अधिकार है.’

हाईकोर्ट ने एम्स अस्पताल को निर्देश दिया कि अग्रवाल के पार्थिव शरीर को मातृ सदन को आठ घंटे के अंदर दिया जाए ताकि वे दर्शन कर सकें और हिंदू धर्म के मुताबिक धार्मिक कर्मकांड कर सकें.

कोर्ट ने ये भी कहा कि जिस समय दर्शन कराया जा रहा हो उस समय पार्थिव शरीर को बर्फ से ढंक दिया जाए और 72 घंटे के बाद पार्थिव शरीर एम्स अस्पताल को वापस कर जाए.

हालांकि एम्स प्रबंधन हाईकोर्ट के इस आदेश से सहमत नहीं हुआ और सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, ‘अगर उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को लागू किया जाता है तो शरीर के अंग ख़राब हो जाएंगे जिसकी वजह से इसे किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकेगा.’

इस पर मातृ सदन के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट अपने दायरे से बाहर चला गया है. कोर्ट को आस्था के मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. जो भी तर्क एम्स ने दिए हैं वो बिल्कुल बकवास है. जीडी अग्रवाल के अंग पहले से ही ख़राब हो चुके होंगे क्योंकि उनकी मृत्यु से अब तक 15 दिन बीत चुके हैं.’

वहीं दिल्ली एम्स के एक पूर्व निदेशक ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने जो तर्क दिए हैं वो सही नहीं हैं. उनकी मृत्यु के इतने दिन हो चुके हैं, इसलिए अंग पहले से ही ख़राब हो चुके होंगे. एक बार अगर पार्थिव शरीर को शवदाह गृह में रखा जाता है तो वो निष्क्रिय हो जाता है.’

हालांकि एम्स के प्रवक्ता हरीश थपलियाल ने दावा किया कि अंग अभी भी ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं क्योंकि उनके शरीर को फॉर्मलिन में रखा गया है.

उन्होंने कहा, ‘11 अक्टूबर से ही प्रो. जीडी अग्रवाल के शरीर को फॉर्मलिन का इस्तेमाल करके एक ग्लास बॉक्स में रखा गया है. अगर शरीर को उसमें से बाहर निकाला जाता है तो दो घंटे में ही शरीर ख़राब हो जाएगा. इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट गए थे.’

बता दें कि जीडी अग्रवाल के निधन के समय अंतिम दर्शन की मांग करने पर एम्स के निदेशक ने बेहद संवेदनहीन बयान दिया था.

उन्होंने कहा था, ‘व्यक्ति मर चुका है. अब परिवार इसमें क्या करेगा? परिवार के लोग प्रो. जीडी अग्रवाल के शव को देखना चाहते थे, हमने उन्हें देखने दिया था. अगर आपको कुछ करना है तो घर में एक फोटो रखकर उस पर माला चढ़ाइए. हॉस्पिटल कार्यक्रम करने की जगह नहीं है.’

हालांकि जीडी अग्रवाल के निधन को लेकर स्वामी शिवानंद सरस्वती एम्स और सरकार के बर्ताव पर सवाल उठाते हैं.

उन्होंने कहा, ‘अग्रवाल ने गंगा के लिए जान दे दी लेकिन किसी को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा कि वे अनशन पर थे. इन लोगों ने अपना असली रंग दिखा दिया. उनकी मौत के बाद भी उन्हें सम्मान नहीं दिया गया.’

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