कहीं अमित शाह अपने गुनाहों के इतने ग़ुलाम तो नहीं हो चुके कि हार से डर लगने लगा?

संस्थाएं ग़ुलाम हो चुकी हैं. मीडिया बाकायदा गोदी मीडिया हो चुका है, सब कुछ आपकी आंखों के सामने मैनेज होता दिख रहा है, फिर भी अमित शाह को क्यों डर लगता है कि 2019 में हार गए तो ग़ुलाम हो जाएंगे? क्या वे भाजपा के कार्यकर्ताओं को डरा रहे हैं? जीत के प्रति जोश भरने का यह कौन-सा तरीक़ा हुआ कि हार जाएंगे तो ग़ुलाम हो जाएंगे?

/
New Delhi: BJP National President Amit Shah addresses on the first day of BJP National Executive Meet, at Ramlila Maidan in New Delhi, Friday, Jan 11, 2019. (PTI Photo/Kamal Kishore) (PTI1_11_2019_000121B)
New Delhi: BJP National President Amit Shah addresses on the first day of BJP National Executive Meet, at Ramlila Maidan in New Delhi, Friday, Jan 11, 2019. (PTI Photo/Kamal Kishore) (PTI1_11_2019_000121B)

संस्थाएं ग़ुलाम हो चुकी हैं. मीडिया बाकायदा गोदी मीडिया हो चुका है, सब कुछ आपकी आंखों के सामने मैनेज होता दिख रहा है, फिर भी अमित शाह को क्यों डर लगता है कि 2019 में हार गए तो ग़ुलाम हो जाएंगे? क्या वे भाजपा के कार्यकर्ताओं को डरा रहे हैं? जीत के प्रति जोश भरने का यह कौन-सा तरीक़ा हुआ कि हार जाएंगे तो ग़ुलाम हो जाएंगे?

Narendra MOdi Alok Verma PTI
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आलोक वर्मा (फोटो: पीटीआई)

रिटायर जस्टिस एके पटनायक का बयान आया है कि उन्हें वर्मा के ख़िलाफ़ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के कोई प्रमाण नहीं मिले थे. सुप्रीम कोर्ट ने ही जस्टिस पटनायक से कहा था कि वे सीवीसी की रिपोर्ट की जांच करें.

पटनायक ने चौदह दिनों के भीतर जांच कर अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी. उन्होंने वर्मा को भी अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिया. यह भी कहा कि सीवीसी ने स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के साइन किए हुए बयान तो भेजे लेकिन अस्थाना ने उनके सामने ऐसा बयान नहीं दिया.

इंडियन एक्सप्रेस में जस्टिस पटनायक का बयान छपा है. उन्होंने सीमा चिश्ती से बातचीत में ये सब कहा है. उनका कहना है कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की रिपोर्ट अंतिम शब्द नहीं है. जस्टिस पटनायक का बयान है कि मैंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की रिपोर्ट में लगाए गए किसी आरोप में भ्रष्टाचार के प्रमाण नहीं मिले हैं.

जस्टिस पटनायक ने यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को ही दी थी. जस्टिस पटनायक ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी था कि हाई पावर कमेटी निर्णय ले तो भी इतनी जल्दबाज़ी में फ़ैसला नहीं लेना चाहिए था. ख़ासकर जब उसमें सुप्रीम कोर्ट के जज थे, तब कमेटी को गहराई से सोचना चाहिए था.

अब यहां समझना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा के ख़िलाफ़ मामलों की जांच के लिए जस्टिस पटनायक से कहा. जस्टिस पटनायक ने अपनी रिपोर्ट दे दी तो उस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना स्टैंड क्यों नहीं लिया?

जस्टिस एके पटनायक (फोटो साभार: बार एंड बेंच)
जस्टिस एके पटनायक (फोटो साभार: बार एंड बेंच)

क्या हाई पावर कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बनी जस्टिस पटनायक की रिपोर्ट पर विचार किया? क्या पटनायक की रिपोर्ट से ज़्यादा महत्व सीवीसी की रिपोर्ट को दिया? क्या जस्टिस सीकरी ने सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट पर कोई स्टैंड लिया?

तो इस मामले में क्या हुआ? सीवीसी ने वर्मा के ख़िलाफ़ आरोपों की सूची बनाई. सरकार ने वर्मा को हटा दिया. वर्मा सुप्रीम कोर्ट जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट कहता है कि वर्मा को ख़िलाफ़ सीवीसी ने जो सामग्री पेश की है वह पद से हटाने के लिए अपर्याप्त है.

वर्मा बहाल कर दिए जाते हैं. अब प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बनी उन्हीं अप्रमाणित आरोपों के आधार पर वर्मा को हटा देती है. सरकार समर्थक भक्त सोशल मीडिया पर प्रचार करते हैं कि जस्टिस सीकरी ने भी सीवीसी को रिपोर्ट को सही माना.

संदेह की सुई प्रधानमंत्री की तरफ थी कि वे राफेल मामले में जांच रोकने के लिए वर्मा को हटाना चाहते हैं. वर्मा को हटाने की पहली कोशिश सुप्रीम कोर्ट में सफल नहीं हुई थी. लिहाज़ा प्रधानमंत्री को बचाने के लिए भक्तगण जस्टिस सीकरी के वोट का सहारा ले रहे हैं.

उधर स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे थे कि उनके ख़िलाफ़ वर्मा ने जो एफआईआर दर्ज कराई थी, उसे निरस्त किया जाए. दिल्ली हाईकोर्ट ने उल्टा सीबीआई को दस हफ़्तों के भीतर जांच पूरी करने का आदेश दे दिया है.

**FILE** New Delhi: In this file photo dated July 07, 2017, CBI Additional Director Rakesh Asthana addresses the media after CBI raid, in New Delhi. Central Bureau of Investigation special director Rakesh Asthana on Tuesday moved the Delhi high court against the lodging of an FIR against him in a bribery case. (PTI Photo)(PTI10_23_2018_000054B)
राकेश अस्थाना (फोटो: पीटीआई)

अब आप एक और चीज़ पर ग़ौर करें. सब कुछ आपकी आंखों के सामने मैनेज होता दिख रहा है. संस्थाएं ग़ुलाम हो चुकी हैं. मीडिया बाकायदा गोदी मीडिया हो चुका है, फिर भी अमित शाह को क्यों डर लगता है कि 2019 में हार गए तो ग़ुलाम हो जाएंगे?

क्या वे भाजपा के कार्यकर्ताओं को डरा रहे हैं? जीत के प्रति जोश भरने का यह कौन-सा तरीक़ा हुआ कि हार जाएंगे तो ग़ुलाम हो जाएंगे? इसके पहले भी भाजपा हारी है, क्या उसके कार्यकर्ता ग़ुलाम हो गए थे?

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में क्या ग़ुलाम हो गए हैं? अमित शाह को किसकी ग़ुलामी का डर सता रहा है? कहीं वे अपने गुनाहों के इतने ग़ुलाम तो नहीं हो चुके हैं कि हार से डर लगने लगा है?

क्या अमित शाह को भी भारत की महान सेना और संस्थाओं पर भरोसा नहीं है? फिर वे क्यों कहते हैं कि 2019 में हार गए तो दो सौ साल की ग़ुलामी आ जाएगी?

दिल्ली में अमित शाह ने कहा है कि 2019 की लड़ाई पानीपत की तीसरी लड़ाई है. मराठों के हारने के बाद दो सौ साल की ग़ुलामी आई थी. अमित शाह अपने राजनीति प्रतिद्वंद्वी को कभी सांप-छछूंदर, कुत्ता-बिल्ली बोलते हैं तो कभी अहमद शाह अब्दाली बताने लगते हैं.

क्या भाजपा अपने विरोधियों को अहमद शाह अब्दाली मानती है? ऐसा मानने के क्या आधार हैं उसके पास? क्या अमित शाह के पास सांप्रदायिकता के खांचे में फ़िट होने वाले ऐसे ही रूपक और नारे बच गए हैं?

भाजपा के कार्यकर्ताओं को सोचना चाहिए. कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके समर्पण को अमित शाह ने ग़ुलामी में बदल दिया है.अमित शाह खाई में कूदने को कहेंगे तो खाई में कूद जाएंगे.

पांच साल के बाद क्या कोई भी काम नहीं हुआ जिसे लेकर जनता के बीच जा सकें? क्या जनता के बीच जाने के लिए ग़ुलामी और पानीपत की तीसरी लड़ाई जैसे रूपक ही बचे हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह आलोक वर्मा के मामले में स्पष्ट फ़ैसला नहीं दिया, अपने ही आदेश से बनी पटनायक रिपोर्ट पर विचार नहीं किया, आलोक वर्मा को हटाया गया, उसके पहले जय शाह की ख़बर दबाई गई, जज लोया की ख़बरों पर पर्दा डाला गया, सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में सब बरी होते गए.

आज़म ख़ान गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पांड्या के हत्यारों के बारे में बयान देता है, सब चुप हो जाते हैं. राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उस सीएजी रिपोर्ट का ज़िक्र कर दिया जिसे संसद की स्थायी समिति में पेश ही नहीं किया गया. न सुप्रीम कोर्ट फिर कुछ कहता है और न सरकार.

सीबीआई और चुनाव आयोग का इस्तेमाल कर दो साल तक आम आदमी पार्टी के बीस विधायकों के ख़िलाफ़ केस चलाया गया, मीडिया में इस डर को बड़ा किया गया कि अब आप की सरकार गिर जाएगी. क्या आपको पता है कि वे सारे केस कहां हैं?

गुनाहों की ये सूची और भी लंबी हो सकती है, मगर अमित शाह को हार जाने पर ग़ुलामी का डर क्यों सता रहा है? शाह और मोदी तो शहंशाह हैं. उन्हें अब जीतने के लिए कार्यकर्ताओं को क्यों डराना पड़ रहा है?

देखो लग जाओ, जान लगा दो वर्ना हार गए तो हम ग़ुलाम हो जाएंगे. कार्यकर्ता ने ऐसा क्या किया है कि उसे हारने पर ग़ुलामी का डर होना चाहिए? क्या नेताओं ने कुछ ऐसा किया है.

यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.