अलग रह रही पत्नी को गुज़ारा-भत्ता देने के समय पति ख़ुद को कंगाल बताते हैं: सुप्रीम कोर्ट

हैदराबाद के एक डॉक्टर की अलग रह रही पत्नी को 15,000 रुपये प्रति माह गुज़ारा-भत्ता देने के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को पति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
(फोटो: पीटीआई)

हैदराबाद के एक डॉक्टर की अलग रह रही पत्नी को 15,000 रुपये प्रति माह गुज़ारा-भत्ता देने के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को पति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब अलग रह रही पत्नियां गुजारा भत्ते की मांग करती हैं तो पति कहने लगते हैं कि वे आर्थिक तंगी में जी रहे हैं या कंगाल हो गए हैं. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी एक प्रतिष्ठित अस्पताल में काम करने वाले हैदराबाद के एक डॉक्टर को यह नसीहत देते हुए की कि वह सिर्फ इसलिए नौकरी नहीं छोड़ दे क्योंकि उसकी पत्नी गुजारा भत्ता मांग रही है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से पारित उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया, जिसमें डॉक्टर को निर्देश दिया गया था कि वह अलग रह रही अपनी पत्नी को गुजारे के लिए अंतरिम तौर पर 15,000 रुपये प्रतिमाह दे.

पीठ ने कहा, ‘हमें बताएं कि आज के वक्त में क्या किसी बच्चे का पालन-पोषण महज 15,000 रुपये में करना संभव है? इन दिनों, जैसे ही पत्नियां गुजारा भत्ते की मांग करती हैं तो पति कहने लगते हैं कि वे आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं या कंगाल हो गए हैं. आप इसलिए नौकरी नहीं छोड़ दें क्योंकि आपकी पत्नी गुजारा भत्ते की मांग कर रही हैं.’

याचिकाकर्ता पति के वकील ने कहा कि अंतरिम सहायता के तौर पर तय की गई राशि बहुत ज्यादा है और उच्चतम न्यायालय को उच्च न्यायालय का आदेश दरकिनार कर देना चाहिए.

इस पर पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता एक प्रतिष्ठित अस्पताल में डॉक्टर है और वैसे भी यह अंतरिम आदेश है जिसमें दखल की जरूरत नहीं है. शीर्ष अदालत ने याचिका का निपटारा कर दिया.

ग़ौरतलब है कि दोनों की शादी 16 अगस्त, 2013 में हुई थी और दोनों का एक बच्चा भी है.

बच्चे के जन्म के बाद, दंपति में कुछ मतभेद थे और बच्चे की कस्टडी के लिए दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ विभिन्न तरह कार्यवाहियां की.

पत्नी ने घरेलू हिंसा का मामला भी अंतरिम रखरखाव की मांग के साथ-साथ शुरू किया गया था. रखरखाव के लंबित मामले को देखते हुए, पत्नी ने अपने और बच्चे रखरखाव लिए 1.10 लाख रुपये के मासिक की मांग की थी. पत्नी का दावा किया था कि उसका पति प्रति माह 80,000 रुपये का वेतन और अपने घर और कृषि भूमि से 2 लाख रुपये की किराये की आय प्राप्त कर रहा था.

आवेदन पर सुनवाई करने और पक्ष सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने मुख्य याचिका के निपटारा होने तक पत्नी और बच्चे को प्रति माह 15,000 रुपये रखरखाव का देने का आदेश दिया.