भीमा-कोरेगांव हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की चार्जशीट में देरी को स्वीकारा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को चार्जशीट दायर करने के लिए अतिरिक्त समय देने से इनकार किया था. शीर्ष अदालत ने उसे ख़ारिज कर दिया और कहा कि अब जब चार्जशीट दायर हो चुकी है, तो मामले में गिरफ़्तार पांच कार्यकर्ता नियमित ज़मानत की मांग कर सकते हैं.

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माओवादियों से संबंध और प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश के आरोप में गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन महेश राउत और रोना विल्सन. (बाएं से दाएं)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को चार्जशीट दायर करने के लिए अतिरिक्त समय देने से इनकार किया था. शीर्ष अदालत ने उसे ख़ारिज कर दिया और कहा कि अब जब चार्जशीट दायर हो चुकी है, तो मामले में गिरफ़्तार पांच कार्यकर्ता नियमित ज़मानत की मांग कर सकते हैं.

माओवादियों से संबंध और प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश के आरोप में गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन महेश राउत और रोना विल्सन (बाएं से दाएं)
माओवादियों से संबंध और प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश के आरोप में गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन महेश राउत और रोना विल्सन (बाएं से दाएं)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया जिसमें उसने महाराष्ट्र पुलिस को कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में आरोपपत्र दायर करने के लिए अतिरिक्त समय देने से इनकार कर दिया था.

शीर्ष अदालत ने हालांकि यह भी कहा कि महाराष्ट्र पुलिस ने आरोपपत्र दायर कर दिया है इसलिए मामले में गिरफ्तार किए गए पांच कार्यकर्ता अब नियमित जमानत की मांग कर सकते हैं.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने पहले बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें उसने मामले में निचली अदालत के फैसले को दरकिनार कर दिया था.

निचली अदालत ने राज्य पुलिस को मामले में आरोप पत्र दायर करने की अवधि में 90 दिन का विस्तार दे दिया था.

मामले में गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि वे कानूनी रूप से जमानत के हकदार हैं क्योंकि महाराष्ट्र पुलिस ने निर्धारित 90 दिन और उसके बाद भी आरोपपत्र दायर नहीं किया. ऐसी स्थिति में निचली अदालत द्वारा समयसीमा बढ़ाना कानूनी दृष्टि से सही नहीं था.

लाइव लॉ की खबर के अनुसार निचली अदालत के निर्णय पर बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश इस बात पर आधारित था कि समयसीमा बढ़ाने की मांग के आवेदन पर उपयुक्त अधिकारी के दस्तखत नहीं थे. इस खबर के अनुसार, ‘बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया था कि आवेदन अभियोजन की बजाय जांच अधिकारी द्वारा दायर किया गया था और निचली अदालत इसकी अनुमति नहीं दे सकती थी.

गौरलतब है कि पुणे पुलिस ने माओवादी से कथित संबंधों के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की संबंधित धाराओं के तहत वकील सुरेंद्र गडलिंग, नागुपर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल के रोना विल्सन को जून में गिरफ्तार किया था.

नवंबर 2018 में पुलिस ने 5000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल करते हुए आरोप लगाया था कि वे प्रधानमंत्री को मारने की योजना बना रहे थे और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए हथियार खरीद रहे थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)