पश्चिम बंगाल में भाजपा के उभार में माकपा की बड़ी भूमिका है

ग्राउंड रिपोर्ट: लेफ्ट/ माकपा के समर्थकों का एक बड़ा वर्ग इसलिए भाजपा के साथ खड़ा है क्योंकि वे ममता बनर्जी को सबक सिखाना चाहते हैं.

/
2019 के लोकसभा चुनाव में कोलकाता में हुए रोड शो के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

ग्राउंड रिपोर्ट: लेफ्ट/ माकपा के समर्थकों का एक बड़ा वर्ग इसलिए भाजपा के साथ खड़ा है क्योंकि वे ममता बनर्जी को सबक सिखाना चाहते हैं.

कोलकाता में बीते मंगलवार को हुए रोड शो के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)
कोलकाता में बीते मंगलवार को हुए रोड शो के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

कोलकाता: चुनाव आयोग द्वारा पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार को समय से पहले रोकने के फैसले के बाद गुरुवार शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी आखिरी रैली दमदम केंद्रीय जेल मैदान पर की.  अपनी स्वाभाविक नाटकीय शैली में उन्होंने ‘दीदी’ को संबोधित करते हुए चेतावनी दी कि बंगाल में उनका समय ख़त्म हो गया है.

उन्होंने एक ही सांस में जय श्री राम के साथ ममता बनर्जी द्वारा बोले जाने वाले ‘जय मां काली’ का उद्घोष किया और कहा, ‘युवाओं को जय श्री राम और जय मां काली बोलने के लिए जेल में डाला जा रहा है.’ ममता बनर्जी को जानने वाले जानते हैं कि वे देवी काली की अनन्य भक्त हैं.

इस रैली में पीछे की ओर एक व्यक्ति पोस्टकार्ड बांट रहा था. उसने एक मुझे भी दिया और कहा, ‘इस पर जय श्री राम लिखकर पास के किसी पोस्ट बॉक्स में डाल देना.’ पोस्टकार्ड पर ममता बनर्जी के घर का पता लिखा था: 30बी, हरीश चटर्जी रोड, कोलकाता- 700026 (पश्चिम बंगाल). मेरे चारों तरफ हवाओं में जय श्री राम गूंज रहा था.

यह अजीब था लेकिन गर्मी में लगभग दो घंटे के इंतजार के बाद जैसे ही मोदी ने बोलना शुरू किया, बड़ी संख्या में लोगों ने मैदान छोड़ना शुरू कर दिया. मैंने पसोपेश में मेरे पास बैठे एक स्थानीय से उनके जाने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा, ‘वे बस उन्हें देखने आये थे.’

Mamata Banerjee Postcard The Wire
भाजपा की रैली में बांटे गए पोस्टकार्ड (फोटो: द वायर)

यहां खड़े हुए मेरे मन में एक दिन पहले बेहला चौरस्ता में हुई ममता बनर्जी की रैली की तस्वीर कौंधी. एक बड़ी भीड़ मंत्रमुग्ध होकर सफेद साड़ी पहने एक कमजोर-सी दिखने वाली महिला को सुन रही थी, जो मंच पर ऊपर-नीचे करते हुए लोगों को कोलकाता और बंगाल की विरासत याद दिला रही थी, विद्यासागर और रवींद्रनाथ टैगोर की विरासत.

इसी शाम एक सभा और हुई थी, जो इससे बिल्कुल अलग थी. आरोप है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में हुए उस रोडशो में शामिल हुए लोगों ने बंगाल के महान व्यक्तित्व विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ दी, जो उन्हीं के नाम के एक कॉलेज में लगी थी.

इसके अगले दिन इस हिंसा के लिए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए मोदी ने- भव्यता के प्रति अपने अनुराग के चलते- विद्यासागर की एक भव्य प्रतिमा बनवाने का वादा किया.

विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के बीच फंसा पूरा बंगाल तो नहीं, लेकिन कोलकाता बदल रहा है. कभी वामपंथ के लाल रंग में रंगा ये शहर ममता बनर्जी के आने के बाद सफेद और नीले रंग में नजर आया और अब बड़ी संख्या में कई जगहें भगवा होती दिख रही हैं.

वाम/मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के समर्थक बड़ी संख्या में भाजपा के साथ खड़े हैं, क्योंकि वे ममता बनर्जी को सबक सिखाना चाहते हैं. माकपा बमुश्किल ही जमीन पर कहीं दिखाई देती है. अब इसकी जगह कभी यहां अस्तित्वहीन रही और आज उभर रही भाजपा ने ले ली है.

मंगलवार को बसीरहाट लोकसभा सीट, जहां 19 मई को मतदान होना है- से भाजपा उम्मीदवार सायंतन बसु ने कहा कि मतदान के दिन जो लोग बूथ कैप्चरिंग करने की कोशिश करें, उन्हें गोली मार देनी चाहिए.

एक वीडियो में बसु धमकाते हुए दिख रहे हैं, ‘अगर वोटिंग के दिन गुंडे बूथ कैप्चरिंग की कोशिश करते हैं, तो मैं सीआरपीएफ से कहूंगा कि उनके पैरों पर नहीं बल्कि सीने पर गोली मारी जाए.’

इस बीच, इसी दिन एक अलग रैली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि ममता बनर्जी ने सोनार बांग्ला को कंगाल बांग्ला में बदल दिया है. उन्होंने कहा, ‘वे (ममता) अपना वोट बैंक बचाने के लिए केवल घुसपैठियों को बचाने में लगी हैं.’

दक्षिण कोलकाता के संतोषपुर की एक सड़क के कोने पर युवा और अधेड़ पुरुषों का एक समूह राजनीति पर चर्चा कर रहा था. राज्य में चुनावी समीकरणें सामान्य से उलट जाती दिख रही हैं.

कोलकाता जैसे शहर में, जहां राजनीति लोगों के जीवन से इस कदर जुड़ी है, जैसे मछली के लिए पानी, चुनावी चर्चाएं कभी ख़त्म नहीं होतीं. यह शहर सांस रोके 23 मई का इंतज़ार कर रहा है.

उमस भरी गर्मियों की शाम की गर्मी भी कभी कोलकाता के सड़क किनारे के ऐसे अड्डों को प्रभावित नहीं कर पाती. किसी सामान्य समय में तो ऐसा नहीं हुआ, न ही इस समय में, जिसे असाधारण कहा जा रहा है.

Mamata Banerjee Reuters
फोटो: रॉयटर्स

माकपा की गैर-मौजूदगी

मंगलवार की शाम संतोषपुर लेक के अड्डे में अलग-अलग राजनीतिक झुकाव रखने वाले स्थानीय सायंतन बसु और शाह के बयानों से नाराज़ नजर आए. जादवपुर लोकसभा क्षेत्र में आने वाला संतोषपुर, जहां अधिकांश आबादी शरणार्थियों की है, कभी वाम का गढ़ हुआ करता था. लेकिन अब इसका असर फीका पड़ने लगा है.

लब सेनगुप्ता कहते हैं, ‘मैं देख सकता हूं कि मेरे लोकल एरिया (संतोषपुर म्युनिसिपल वॉर्ड नंबर 103) के ज्यादातर पूर्व माकपा कार्यकर्ता अब भाजपा के साथ हैं. ऐसा 2011 के बाद होना शुरू हो गया था.’ क्या इसका मतलब ये है कि माकपा ने राजनीतिक इच्छाशक्ति खो दी है या ये बिना सत्ता में रहे काम करने की क्षमता खो चुकी है? ‘बिल्कुल,’ सेनगुप्ता जवाब देते हैं.

एक और स्थानीय सुमन सेनगुप्ता का इस बारे में कुछ और सोचना है. उनका कहना है, ‘वॉर्ड नंबर 103 में माकपा के निष्ठावान वोटर पिछली पीढ़ी से, जो 60 बरस से शुरू होती है, उससे आते हैं. यह एक बात है. दूसरी बात है कि अगर जादवपुर लोकसभा क्षेत्र के संतोषपुर इलाके में माकपा की पकड़ है भी, तो भी जादवपुर के बरुईपुर और सोनारपुर जैसे दूसरे इलाकों में माकपा के वोट भाजपा को मिलने वाले हैं.’

उन्होंने राज्य में पीढ़ी के साथ बदल रहे राजनीति झुकाव की तरफ इशारा किया, ’20-35 की उम्र के वोटर्स का झुकाव भाजपा की तरफ है, भले ही वे पारंपरिक लेफ्ट परिवारों से आने वाले हों. उन्होंने न सिद्धार्थ शंकर रे का कार्यकाल देखा है न नंदीग्राम.’

70 के दशक के आखिरी सालों में संतोषपुर एक दलदल भरी जमीन था, जहां कुछ खेत हुआ करते थे, आज ये चहल-पहल भरा एक जीवंत इलाका है. सड़कों और गलियों में समुचित रोशनी है, फुटपाथ बना हुआ है. अब तो यहां कॉफी शॉप और पब भी पहुंच गए हैं.

इतना ही नहीं, उन लोगों के रवैये में भी बदलाव नजर आता है, जो पहले अपनी रूढ़िवादी सोच को लेकर संकोच करते नहीं दिखते थे. ऐसा अब तक देखने को नहीं मिलता था.

बदलते सामाजिक प्रतिमान

सुमन बताते हैं, अगर आप शाम को संतोषपुर लेक के आसपास घूमने निकलें तो सिगरेट पीती महिलाएं और साथ में घूम रहे जोड़े दिख जाएंगे. कोई उन्हें नैतिक शिक्षा के उपदेश नहीं देता.’ माकपा के समय में ऐसा सोचना भी मुश्किल था. जब पार्टी सत्ता में थी, तब यह आमतौर पर जोड़ों के बीच के झगड़ों, पारिवारिक मसलों और निजी मामलों में दखल दिया करती थी.

संजय प्रामाणिक बताते हैं, ‘अगर भाजपा का प्रभाव बढ़ता है, तो वे भी निजी पसंद-नापसंद तय करने और व्यक्तिगत मामलों में दखल देने लगेंगे.’

हालांकि माकपा के राज्य में 30 सालों के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वर्चस्व को देखते हुए उसका इस तरह गायब हो जाना हैरान करने वाला है. लेकिन अलग-अलग राजनीतिक सोच-समझ रखने वाले लोगों से बात करके इस बारे में कुछ स्पष्टता मिलती है.

तापस बोस माकपा के पूर्व होलटाइमर और बंगाल स्टेट कमेटी के सदस्य हैं और 90 के दशक में उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी. उन्हें इस बात का खेद है कि इन चुनावों में पार्टी ने इसके समर्थकों और इससे जुड़ाव रखने वालों को साफतौर पर भाजपा का विरोध करने के लिए नहीं कहा.

अपनी व्यक्तिगत क्षमता में वे लेफ्ट से जुड़ाव रखने वालों और भाजपा को वोट देने वालों को इस बात के लिए मना रहे हैं कि वे यह खतरनाक विकल्प न चुनें. फिर भी, जमीन पर पार्टी की निष्क्रियता और गैर-मौजूदगी के लिए वे ममता बनर्जी को जिम्मेदार मानते हैं.

बोस कहते हैं, ‘ममता बनर्जी विपक्ष को काम क्यों नहीं करने देतीं? पार्टी दफ्तरों को खत्म कर दिया गया, कार्यकर्ताओं को धमकाया गया. जब मैं गरीबों से बात करता हूं, वे बताते हैं कि कैसे टीएमसी कार्यकर्ता उन्हें धमकाते हैं, उनसे पैसे वसूलते हैं.’

कोलकाता में हुई भाजपा की एक रैली में मिलते भाजपा नेताओं के पोस्टर (फोटो: द वायर)
कोलकाता में हुई भाजपा की एक रैली में मिलते भाजपा नेताओं के पोस्टर (फोटो: द वायर)

कैसे बदली हैं परिस्थितियां

लेकिन राजनीतिक और आर्थिक वसूली की संस्कृति की शुरुआत माकपा के शासनकाल में हुई थी. लेकिन क्या आज के हालात महज पहले से चली आ रही उसी परंपरा का जारी रहना है न कि बंगाल के राजनीतिक परिवेश के लिए कोई नयी बात? बोस जवाब देते हैं, ‘मैं ये नहीं कह रहा कि ऐसा माकपा के राज में नहीं हुआ, लेकिन अब ये हजार गुना बढ़ चुका है.’

रास बिहारी एवेन्यू के दोनों तरफ अपना सामान बेच रहे दुकानदार भी ऐसे ही विचार रखते हैं. एक व्यक्ति यहां बताते हैं, ‘राजनीतिक हिंसा हो या वसूली- यह पहले संयोजित तरीके से होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. स्थिति बहुत ख़राब है.’

लेकिन संतोषपुर के ज्यादातर रहवासी ऐसा नहीं मानते. राजा बनर्जी टीएमसी की ओर झुकाव रखते हैं, उनका कहना है, ‘असल बात यह है कि माकपा के असली दुश्मन नरेंद्र मोदी नहीं, ममता बनर्जी हैं.’ उनकी ये बात उन आम लोगों ने भी दोहराई, जिनसे मैंने बात की.

पिछले हफ्ते अपनी लंबी चुप्पी तोड़ते हुए बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और माकपा नेता बुद्धदेब भट्टाचार्जी ने पार्टी के मुखपत्र गणशक्ति को दिए एक साक्षात्कार में लोगों से भाजपा को वोट न देने की अपील की है. ये ‘आसमान से गिरकर खजूर में न अटकने’ जैसी हिदायत देने उन्होंने काफी समय लगा दिया और इसमें ऐसा कोई उत्साह भी नहीं दिखा जिससे प्रेरित होकर पार्टी समर्थक भाजपा के खिलाफ वोट करें.

भाजपा को बंगाल में जितनी भी सीटें मिलें, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि राज्य में हाशिये पर पड़ी इस पार्टी को मुख्यधारा में लाने में माकपा का बहुत बड़ा योगदान रहेगा. जैसा केरल में कम्युनिस्ट मार्क्सिस्ट पार्टी के महासचिव सीपी जॉन ने सही ही कहा है कि यह पार्टी की दूसरी ऐतिहासिक गलती है.

पहली गलती उन्होंने 1996 में की थी, जब माकपा ने तीसरे मोर्चे के नेतृत्व में बन रही संयुक्त सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में पश्चिम बंगाल में इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के प्रधानमंत्री बनाने से इनकार किया था. बसु ने खुद कहा था कि पार्टी का यह निर्णय एक ‘ऐतिहासिक गलती’ करने के समान था.

आज यह सोचा जा सकता है कि भले ही थोड़े समय के लिए ही सही, अगर ज्योति बसु जैसा कोई प्रधानमंत्री होता तो वर्तमान भारत की तस्वीर क्या होती. ऐसे में यह भी सोच सकते हैं कि 1996 में हुई इस गलती का खामियाजा उसकी तुलना में कम होगा जो देश और जनता को 23 मई के बाद चुकाना पड़ सकता है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq