केरल में पिनाराई सरकार का एक साल: ये वो सहर तो नहीं!

पिनाराई विजयन अब तक कट्टर पार्टी सचिव ही बने हुए हैं, एक संवेदनशील मुख्यमंत्री नहीं बन पाए हैं. विभिन्न मौकों पर पुलिसिया दमन का पक्ष लेने पर कहा जा सकता है कि पुलिस का मनोबल बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है, लेकिन इससे जनता की नजर में उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचा है.

/
AppleMark

पिनाराई विजयन अब तक कट्टर पार्टी सचिव ही बने हुए हैं, एक संवेदनशील मुख्यमंत्री नहीं बन पाए हैं. विभिन्न मौकों पर पुलिसिया दमन का पक्ष लेने पर कहा जा सकता है कि पुलिस का मनोबल बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है, लेकिन इससे जनता की नजर में उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचा है.

फाइल फोटो (पीटीआई)

एक पखवाड़े के भीतर केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन अपनी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) सरकार की पहली वर्षगांठ मनाएंगे. पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी का कार्यकाल जैसे-तैसे झीने बहुमत की नोंक पर बीता था. मतदाताओं ने सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ को स्पष्ट जनादेश दिया था. इस जनादेश को इस बात का संकेत माना गया था कि लोग मजबूत नेतृत्व चाहते हैं और घोटालों और कांग्रेस नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) सरकार के छोटे घटक दलों की मोल-भाव की शक्ति से आजिज आ चुके हैं. लेकिन एक उम्मीद जगानेवाली शुरुआत के बाद ऐसा लगता है कि विजयन पूरी तरह से रास्ता भटक गए हैं.

पिछले चार महीने के घटनाक्रम ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि विजयन सरकार को उसकी पहली वर्षगांठ पर बेहद कम अंक मिलेंगे. इस सबकी शुरुआत जिष्णु प्रनॉय की दुखद आत्महत्या से हुई. (नेहरू कॉलेज में इंजीनियरिंग के छात्र प्रनॉय ने परीक्षा में नकल करने का आरोप लगने पर आत्महत्या कर ली थी, मगर जांच में ये बात सामने आई है कि कॉलेज प्रशासन ने उसे उत्पीड़ित किया और गलत तरह से फंसाया.) शुरुआती तहक़ीक़ात में बुरी तरह असफल होने के बाद भी सरकार ने गुनहगारों पर हाथ डालने में कोई तत्परता नहीं दिखाई.

ज्यादा दिन नहीं बीते थे कि केरल लॉ अकेडमी का विवाद उठ खड़ा हुआ. प्राइवेट मैनेजमेंट की मार्क्सवादी पार्टी से नज़दीकी के कारण विजयन सरकार तब तक कोई कार्रवाई करने से कतराती रही, बल्कि इसका प्रतिरोध करती रही, जब तक चीजें बुरी तरह उलझ नहीं गयीं. सीपीआई के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) ने विपक्षी दलों के छात्र संगठनों के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन का रास्ता अख्तियार किया. जबकि सीपीएम के छात्र संगठन- स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) काफी बाद में जाकर इन विरोधों में शामिल हुआ. इसके बाद इसने संयुक्त आंदोलन में, संभवतः पार्टी के निर्देश पर, अड़ंगा डालने की कोशिश तक की.

हालांकि सीपीआई ने इस गतिरोध का समाधान निकालने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई, मगर इस प्रकरण के बाद सीपीएम और सीपीआई आपस में कड़वे बहस में मुब्तला हैं. प्रनॉय की मां सहित उनके परिवार के साथ जैसा सुलूक किया गया, उसने चीजों को और बदतर बना दिया. उनकी मां माहिजा को सड़कों पर घसीटा गया और जब उन्होंने डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) लोकनाथ बेहरा से मिलने की कोशिश की तब उन्हें और उनके परिवार के बाकी सदस्यों को डीजीपी ऑफिस से बाहर निकाल दिया गया. इसने बड़े जनाक्रोश को जन्म दिया, मगर मुख्यमंत्री संवेदनहीन तरीके से पुलिस का पक्ष लेते नज़र आये.

मुश्किल दिनों का अंत यहीं नहीं होना था. अपमान और तिरस्कार के बाद शोक में डूबी हुई मां उसी अस्पताल में भूख हड़ताल पर बैठ गईं जिसमें वे भर्ती थीं. उनकी बेटी अविशना भी अपने भाई के लिए इंसाफ की मांग करते हुए इस भूख हड़ताल में शामिल हो गईं. चारों तरफ से इंसाफ की मांग तेज होती गई और स्थिति को बिगड़ते हुए देख कर आखिरकार पुलिस ने प्रनॉय के कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल और एक मुख्य आरोपी एन शक्तिवेल को धर दबोचा.

सीपीआई और कुछ और वाम दलों के समय रहते हस्तक्षेप ने यह सुनिश्चित किया कि चीजें हाथ से बाहर न निकल जाएं. अपना पक्ष स्पष्ट करने की हताशा भरी कोशिश में विजयन सरकार ने राज्य के हर दैनिक अखबार में 8 अप्रैल को आधे पन्ने का विज्ञापन दिया. दिलचस्प यह है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चीजों को स्पष्ट करने की जगह सरकार ने 18 लाख खर्च करके (यह आंकड़ा सरकार का दिया हुआ है.) विज्ञापन देने का रास्ता अपनाया.

सरकार में आने के बाद विजयन के शुरुआती फैसलों में हर बुधवार कैबिनेट बैठक के बाद की जानेवाली साप्ताहिक प्रेस वार्ता को बंद करना शामिल था. इसकी जगह सरकार ने आक्रामक जनसंपर्क अभियान का सहारा लिया है और अब तक इसने विज्ञापनों पर 16 करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं. (यह आंकड़ा खुद मुख्यमंत्री ने विधान सभा मे एक सवाल के जवाब में दिया.)

माहिजा की घटना के बाद सीपीएम ने स्पष्टीकरण सभाएं आयोजित कीं जिनका मकसद कैडरों को अपना पक्ष समझाना था, क्योंकि इस बात के संकेत मिल रहे थे कि मालाबार में पार्टी के गढ़ कहे जानेवाले इलाकों में भी लोगों की धारणा सरकार के खिलाफ जा रही थी. आखिरी बार सीपीएम को ऐसी सभाएं करने की जरूरत 2012 में टीपी चंद्रशेखर की जघन्य हत्या के बाद महसूस हुई थी.

chief-min-sit-in
नोटबंदी के बाद एक सभा को संबोधित करते विजयन (फोटो: केरल राज्य सरकार)

हाल ही में मलाप्पुरम में हुए उप-चुनाव से पहले राज्य के कई हिस्सों से स्त्रियों और बच्चों के खिलाफ अपराध के कई मामले सामने आए. इन घटनाओं में एक व्यस्त हाइवे पर गाड़ी में एक प्रसिद्ध अदाकारा के साथ हुई यौन-हिंसा का मामला भी शामिल है. एक ऐसी सरकार जो लॉ पढ़ रही एक दलित छात्रा के दुष्कर्म और हत्या के बाद स्त्री-सुरक्षा के बड़े वायदे करके सत्ता में आई थी, स्त्री सुरक्षा के मोर्चे पर बेहद निराशाजनक साबित हुई है.

सीपीएम और सीपीआई के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है. सीपीएम के गढ़ कन्नूर में एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करके सीपीआई के राज्य सचिव कनम राजेंद्रन ने गठबंधन के दो मुख्य घटकों के बीच तनाव की तीव्रता के चर्चे को सबकी जुबां पर ला दिया. उन्होंने न सिर्फ सीपीएम के आधिकारिक पक्ष को निर्ममता से ध्वस्त कर दिया बल्कि प्रनॉय के परिवार के संघर्ष का मजाक बनाने के लिए विजयन की तुलना किसी पूंजीवादी से कर दी. विजयन की इससे बड़ी तौहीन और क्या हो सकती थी! राजेंद्रन ने उन वाक़यों का जिक्र किया, जब-जब सीपीएम वाम के परंपरागत पक्ष से भटकी है- ‘माओवादियों’ का फर्जी एनकाउंटर, अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट का खुलकर इस्तेमाल और आंदोलनों को बलप्रयोग और गैर कानूनी हिरासत के द्वारा दबाना, ऐसे ही वाक़ये हैं.

हालांकि सीपीएम के राज्य महासचिव कोडियेरी बालकृष्णन किसी तरह स्थिति को नियंत्रित करने में कामयाब रहे, मगर मुन्नार में ग़ैर क़ानूनी कब्ज़े को हटाने के अभियान ने दोनों दलों के बीच और तनाव पैदा कर दिया.

राजनीतिके विश्लेषकों की मानें तो विजयन के निर्णय लेने की क्षमता को उनके द्वारा ही नियुक्त किए गए सलाहकारों की फौज के कारण नुकसान पहुंचा है. आखिरी गिनती में उनके सलाहकारों की संख्या 7 थी, हालांकि 25 अप्रैल को सलाहकारों की वास्तविक संख्या के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने विरोधाभासी जवाब दिए थे.

उनके सलाहकार किस तरह स्पष्ट फैसले लेने की राह में रुकावट बन रहे हैं, इसका सबसे ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब सुप्रीम कोर्ट ने टीपी सेनकुमार को राज्य पुलिस प्रमुख के पद पर फिर से बहाल कर दिया. लेकिन इस आदेश को मानने में सरकार ने कोई मुस्तैदी नहीं दिखाई और इसे लटकाए रखा. (विजयन के मुख्यमंत्री बनने के एक हफ्ते के भीतर सेनकुमार को केरल के डीजीपी के पद से उनका कार्यकाल खत्म होने से पहले ही हटा दिया गया था.)

फैसले के 12 दिन बाद 24 अप्रैल को जब सरकार मामले के स्पष्टीकरण की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट गयी, तब वहां उसकी और किरकिरी हुई क्योंकि कोर्ट ने याचिका को सुनने से भी इनकार कर दिया, उलटे उस पर 25,000 का जुर्माना लगा दिया. इसके बावजूद विजयन ने विधानसभा में विपक्ष के सवाल के जवाब में यह दिखाने की कोशिश की कि कोर्ट से मिली सजा सरकार के लिए कोई झटका नहीं है.

ऐसा लगता है कि विजयन के सलाहकारों ने विधि सचिव से मुख्यमंत्री को पसंद आनेवाली सलाह देने को कहा. दरअसल महाधिवक्ता से लेकर हर कोई अपने कामकाज में इन सलाहकारों से हद से ज्यादा प्रभावित नजर आता है. यह बुरे दिनों की चेतावनी है. यह भी लगता है कि विजयन का अहं प्रशासन के आड़े आ रहा है.

वे अब तक एक कट्टर पार्टी सचिव ही बने हुए हैं, एक संवेदनशील मुख्यमंत्री नहीं बन पाए हैं. एक अन्य चिंताजनक बात विभिन्न मौकों पर पुलिसिया दमन का पक्ष लेने की उनकी प्रवृत्ति है. इसका औचित्य यह कहकर ठहराया जा सकता है कि गृह मंत्री होने के नाते पुलिस का मनोबल बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है. लेकिन इससे जनता की नजर में विजयन की छवि को काफी नुकसान पहुंचा है.

विजयन ने विरोध के स्वरों को विभिन्न तरीके से दबा कर अपनी लोकतंत्र विरोधी प्रवृत्ति का भी परिचय दिया है. यहां तक कि विरोधी दलों से संबंध रखनेवाले छात्र प्रदर्शनकारियों को मुख्यमंत्री के काफिले के निकलने से पहले घेर लिया जाता है ताकि वे काला झंडा न दिख सकें.

कन्नूर के साथी कॉमरेड पन्नियन रवींद्रन ने हाल ही में एक काबिलेगौर बात कही कि सत्ताधारी प्रतिष्ठान जनता से कटती जा रहा है. विजयन इस पर और उनकी सरकार में हुई हर गलती पर आत्ममंथन करें, तो अच्छा होगा.

(आनंद कोचुकुडी स्वतंत्र पत्रकार हैं और केरल की राजनीति पर लिखते हैं.)

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq