सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश के खुले में शौच से मुक्त होने का दावा विश्वसनीय नहीं है

आंकड़े दिखाते हैं कि किसी क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त घोषित करने में सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं हुआ है.

/
Rajappa, holding a container, poses for a photograph before he walks off to a field to relieve himself in Hirebenakal village in Karnataka, April 30, 2019. REUTERS/Sachin Ravikumar

आंकड़े दिखाते हैं कि किसी क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त घोषित करने में सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं हुआ है.

Rajappa, holding a container, poses for a photograph before he walks off to a field to relieve himself in Hirebenakal village in Karnataka, April 30, 2019. REUTERS/Sachin Ravikumar
फोटो: रॉयटर्स

नई दिल्ली: पिछले दिनों मध्य प्रदेश के शिवपुरी में 10 और 12 साल के दो दलित बच्चों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. उनका कुसूर यह था कि वे खुले में शौच कर रहे थे. उनके गांव को स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस में ‘खुले में शौच से मुक्त’ कर दिया गया है, लेकिन उनके परिवार के पास इस्तेमाल के लिए शौचालय नहीं था.

इस घटना के दस दिन पहले, उत्तर प्रदेश के रायबरेली के इच्छवापुर में एक महिला शौच के लिए खेतों की तरफ गई थी. बाद में माथे पर चोट के निशान के साथ उसकी लाश पाई गई. यह ‘ऑनर’ किलिंग का मामला था. लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि उस महिला या उसके साथ की दूसरी महिलाओं की पहुंच शौचालय तक नहीं थी, या उन्होंने उसका इस्तेमाल नहीं करना तय किया था.

स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस के मुताबिक रायबरेली के भी सभी गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है. ये दो मामले खुले में शौच से मुक्त घोषित करने और उसके सत्यापन की प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाते हैं.

चूंकि शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण भारत में यह कवायद काफी बड़े पैमाने पर चलाई गई, इसलिए यह विश्लेषण स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) तक सीमित है.

अपनी बात शुरू करने से पहले यह स्वीकार करना चाहिए कि स्वच्छ भारत मिशन ने ग्रामीण स्वच्छता (शौचालय निर्माण के द्वारा) की स्थिति बेहतर बनाने के मकसद से चलाई गई पहले की किसी भी योजना की तुलना में काफी ज्यादा हासिल किया है. लेकिन खुले में शौच से मुक्ति का दावा हकीकत से दूर है.

स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस के मुताबिक, 26 सितंबर तक सभी गांवों ने खुद को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया है और और 90 फीसदी गांव सत्यापन के पहले चक्र से गुजर चुके हैं. इस डेटाबेस में दर्ज सूचनाओं की प्रामाणिकता संदिग्ध है.

लेकिन अगर हम सरकार की बात मान भी लेते हैं, तो भी इस क्षेत्र में सरकार का प्रदर्शन उतना बेदाग नहीं है, जितना दावा सरकार कर रही है. उदाहरण के लिए ओडिशा में सिर्फ 51 फीसदी गांव सत्यापन के पहले स्तर से गुजरे हैं. बिहार ने अपने 38,000 से ज्यादा गांवों में से 58 फीसदी गांवों में पहले चरण का सत्यापन किया है.

स्वच्छ भारत मिशन के दिशा-निर्देशों के मुताबिक एक गांव अपनी ग्राम सभा में इस बाबत एक प्रस्ताव पारित करके खुद को खुले में शौच मुक्त घोषित कर सकता है. यह जानकारी इसके बाद स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस में अपलोड कर दी जाती है और उसके बाद उस गांव को ‘खुले में शौच मुक्त घोषित’ के तौर पर चिह्नित कर दिया जाता है.

दिशा-निर्देशों के मुताबिक खुले में शौच से मुक्त की घोषणा के सत्यापन के लिए कम से कम दो स्तरों या चरणों का सत्यापन किया जाना चाहिए. सत्यापन का पहला स्तर इस घोषणा के तीन महीने के भीतर पूरा कर लिया जाना चाहिए और दूसरा स्तर- यह सुनिश्चित करने के लिए कि गांव खुले में शौच मुक्त दर्जे से बाहर न निकल जाए – पहले सत्यापन के छह महीने के भीतर पूरा कर लेना चाहिए.

प्रावधान यह है कि यह सत्यापन किसी तीसरे पक्ष के द्वारा या राज्य की अपनी टीमों के द्वारा किया जाए. राज्य की अपनी टीमों के मामले में ईमानदार सत्यापन सुनिश्चित करने के लिए गांव/ब्लॉक/जिला स्तर पर प्रति-सत्यापन (क्रॉस वेरिफिकेशन) किया जाना चाहिए. लेकिन जैसा कि द वायर  ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में बताया था, इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है.

स्वच्छ भारत मिशन पर देश के विभिन्न हिस्सों में काफी काम करने वाले चार वर्तमान और पूर्व सरकारी कर्मचारियों ने भी द वायर  को बताया कि सत्यापन का काम सिर्फ कागजों पर हुआ है.

एक पूर्व अधिकारी ने बताया, ‘लक्ष्य को हासिल करने की जल्दबाजी में और देश को खुले में शौच मुक्त घोषित करने के लिए सत्यापन की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. सत्यापन का काम सिर्फ कागजों पर किया गया है. कई मामलों में तो यह काम किसी के भी गांव गए बगैर ही कर लिया गया है. मुट्ठी भर मामलों में ही मैंने दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता हुआ देखा है.’

सरकार का अपना आंकड़ा भी इस चलन की ओर संकेत करता है. द वायर  ने जब 26 सितंबर को स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस की जांच की तब ओडिशा में सत्यापति खुले में शौच मुक्त (पहला स्तर) गांवों की संख्या 23,902 थी.

चार दिन बाद यानी 30 सितंबर को यह संख्या लगभग 55 फीसदी बढ़ते हुए 37,008 हो गयी थी. इसका मतलब है कि ओडिशा ने 13,000 गांवों में पहले स्तर के सत्यापन का काम महज चार दिनों में यानी 3,200 गांव प्रति दिन की दर से पूरा कर लिया था.

द वायर  को एक अधिकारी ने बताया, अगर सत्यापन के काम को सही तरीके से किया जाए, तो एक गांव में कम से कम तीन घंटे का वक्त लगेगा, क्योंकि एक पूरी जांच-सूची (चेक लिस्ट) है, जिसका पालन किया जाना होता है और गांव को कई मानदंडों के आधार पर अंक देने होते हैं. 13,000 गांवों को चार दिनों में तो क्या एक महीने में भी वास्तविक रूप से सत्यापित करना मुमकिन नहीं है.’

स्वच्छ भारत के निदेशक के तौर पर युगल जोशी ने पिछले साल इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली  में लिखा था कि इसके डेटाबेस को ‘रियल टाइम’ में अपडेट किया जाता है.

यानी अगर डेटाबेस पर यकीन करें, तो ओडिशा ने चार दिनों में उतने गांवों को सत्यापित कर दिया, जितने गांवों का सत्यापन पूरे 2018-19 में भी नहीं हुआ था, जब 11,679 गांवों को सत्यापित किया गया था. 2019-20 में जितने गांवों का सत्यापन हुआ, उनमें से 63 फीसदी का सत्यापन सिर्फ चार दिनों में- प्रधानमंत्री द्वारा भारत को खुले में शौच मुक्त घोषित करने से महज एक हफ्ते पहले- किया गया.

उन्हीं चार दिनों की अवधि में, बाढ़ से जूझ रहे बिहार ने 3,202 गांवों का सत्यापन कर दिया जबकि उत्तर प्रदेश में यह काम 3,850 गांवों में अंजाम दिया गया.

An open toilet sits in a field in Gorba in the eastern state of Chhattisgarh, India, on Nov. 16, 2015. (Adnan Abidi/Reuters)
छत्तीसगढ़ के गोरबा में एक खेत में बना शौचालय. (फोटो: रॉयटर्स)

दूसरे स्तर का सत्यापन

अगर हम दूसरे स्तर के सत्यापन का सरकारी आंकड़ा देखें, तो यह सरकार के दावों की मजबूती को लेकर और सवाल खड़े करता है. पूरे देश में सिर्फ 24 फीसदी गांवों को दूसरी बार सत्यापित किया गया है. जबकि स्वच्छ भारत मिशन के दिशा-निर्देशों के मुताबिक यह खुले में शौच मुक्त दर्जे के टिकाऊपन के लिहाज से काफी अहम है.

ऐसा नहीं होने की सूरत में गांव खुले में शौच मुक्त का दर्जा खो सकते हैं, जैसा कि द वायर  ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट के सिलसिले में पाया था. मेरठ और शामली जिले में अपनी यात्रा के दौरान, जिन्हें, 2017 में खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया था, हमें कई ऐसे घर मिले जिनकी पहुंच शौचालय तक नहीं थी. या तो शौचालयों का निर्माण ही नहीं किया गया था या उनका निर्माण इतने खराब तरीके से किया गया था कि उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था.

कुछ शौचालय पूरी तरह से ढह गए थे. जब इस रिपोर्टर ने इन गांवों के निवासियों से हाल ही में फोन से बात की तब उन्होंने बताया कि अब तक कुछ और शौचालय ढह गए हैं और अतिरिक्त शौचालयों का निर्माण नहीं किया गया है.

इससे खुले में शौच मुक्त की घोषणा की समझदारी पर सवाल खड़े होते हैं, क्योंकि सरकार के अंदर काम अंतिम रूप से पूरा हो जाने का जिस तरह का भाव है, उससे बेहतरी के लिए प्रोत्साहन (मदद) कम हो जाता है. इसके बावजूद दिशा-निर्देशों के अनुसार दूसरे चरण के सत्यापन के काम को पूरा नहीं किया गया है.

97,000 गांवों वाले उत्तर प्रदेश में सिर्फ 10 फीसदी गांवों को दूसरी बार सत्यापित किया गया है. ओडिशा में जहां करीब 47,000 गांवों का वजूद है, एक भी गांव का दूसरे स्तर का सत्यापन किया गया है. कुल मिलाकर 10 राज्य ऐसे हैं, जहां दूसरे स्तर के सत्यापन का काम किया ही नहीं गया है.

गायब शौचालयों का मामला

एक और पहलू, जो स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस के आंकड़ों की प्रमाणिकता पर सवाल खड़े करता है- डेटाबेस में पहले शामिल किए गए घरों को हटा देने का है.

पिछले साल रिपोर्टिंग के दौरान द वायर  ने उत्तर प्रदेश के लिए 1 अक्टूबर, 2018 के तारीख के डेटाबेस को संग्रहित (सेव) किया था. पिछले आंकड़ों की तुलना वर्तमान डेटाबेस से करने पर हमने यह पाया कि स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस के फॉर्मेट ए 03 के अनुसार कुल घरों की संख्या घट गई है- खासतौर पर ‘टोटल डिटेल एंटर्ड (विद एंड विदाउट टॉयलेट)’ शीर्षक कॉलम (यहां के बाद कॉलम 3) में.

द वायर  ने जिन वर्तमान और पूर्व अधिकारियों से बात की, उनके मुताबक यह कॉलम कुल घरों की संख्या को दर्शाता है. उत्तर प्रदेश के मामले में इस संख्या में 1,58,051 की कमी आ गई है. एक अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि लक्ष्य को पूरा करना काफी कठिन था, इसलिए बेसलाइन सर्वे की एंट्रीज को हटाकर लक्ष्य को ही घटा दिया गया.’

दिसंबर, 2017 के उत्तर प्रदेश के उत्तर प्रदेश सरकार के आंतरिक दस्तावेज, जिसे द वायर  ने देखा है, के अनुसार राज्य को 2 अक्टूबर, 2018 तक, उसके डेटाबेस के मुताबिक हर घर को शौचालय सुनिश्चित करने के लिए हर दिन 42,000 शौचालयों का निर्माण करने की जरूरत थी. 2 अक्टूबर, 2018 उस समय की डेडलाइन थी.

उपरोक्त अधिकारी ने बताया, ‘यह किसी भी तरह से मुमकिन नहीं था. इसलिए लक्ष्य को आसान बनाने के लिए डेटाबेस की एंट्रीज को ही मिटा दिया गया. आंकड़ों की सूक्ष्म पड़ताल से यह बात सामने आयी कि एक बड़ी संख्या में एंट्रीज ‘शौचालय वाले घर’ वाले कॉलम (यहां के बाद कॉलम 6) से हटाई गईं.

स्वच्छ भारत मिशन ने 2012 के एक देशव्यापी सर्वे जिसे बेसलाइन सर्वे कहा जाता है, को अपना शुरुआती बिंदु के तौर पर इस्तेमाल करता है. इस सर्वे में पहले से ही शौचालय वाले वाले घरों की संख्या की गिनती की गई थी. यह सूचना कॉलम 6 में दर्ज है.

जिन अधिकारियों से हमने बात की, उनके अनुसार इस संख्या में बदलाव नहीं आना चाहिए था. एक पूर्व अधिकारी का कहना है,‘अगर बाद में यह भी पाया गया हो- और ऐसे कई मामले सामने आए- कि कोई घर बेसलाइन सर्वे में छूट गया था, उस घर को छूट गए लाभार्थी (लेफ्ट आउट बेनिफिशरी) में शामिल किया गया, जिसे हाल ही में जोड़ा गया है. ऐसे में बेसलाइन सर्वे के आंकड़े में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए.’ आदर्श रूप में कॉलम 6 को जस का तस रहना चाहिए.

लेकिन ऐसा है नहीं. हमने पाया कि पिछले साल से लेकर अब तक, कॉलम 6 में दर्ज घरों की संख्या में 1,03,768 की कमी आ गयी. उपरोक्त अधिकारी का कहना है, ‘ऐसा इसलिए किया गया ताकि पहले से ही मौजूद शौचालयों को स्वच्छ भारत के तहत निर्मित शौचालयों के तौर पर दिखाया जा सके.‘

इसका मतलब यह निकलना चाहिए था कि कॉलम 3 में भी कॉलम 6 जितनी ही संख्या की कमी आती. लेकिन जैसा कि पहले जिक्र किया गया है, इसमें कहीं ज्यादा कमी आई है.

उदाहरण के लिए वाराणसी में कॉलम 6 में 10,790 की कमी आई है और कुल लक्ष्य में 11,168 की कमी आई है. बस्ती में बेसलाइन सर्वे में से 27,917 लोग गायब हो गए हैं और कुल लक्ष्य में 36,220 लोगों की कमी आई है.

यह विसंगति अधिकारियों के लिए भी हैरान करनेवाली है. यह मुमकिन है कि बिना शौचालय वाले घरों की सूची में से भी घरों को हटा दिया गया हो. लेकिन मेरे अनुभव में मैंने ऐसा होता नहीं देखा है. वर्तमान में मध्य यूपी में काम कर रहे एक अधिकारी ने बताया कि बेसलाइन में संख्या को घटाना एक आम बात है.

उन्होंने कहा, ‘स्वच्छ भारत अभियान का डेटाबेस एक धोखा है. सारा ध्यान डेटाबेस में यह दिखाने पर है कि लक्ष्य को पूरा कर लिया गया है. जमीन पर स्थिति यह है कि जितने शौचालय बनाने का दावा सरकार कर रही है, उसका सिर्फ 40 फीसदी ही वास्तव में बनाया गया है.’

जैसा कि एक अधिकारी ने पहले टिप्पणी की थी, स्वच्छ भारत मिशन के डेटाबेस में हाल ही में एक नया कॉलम ‘छूट गए लाभार्थी’ का जोड़ा गया है, जिसमें उन घरों को शामिल किया गया है, जिन्हें बेसलाइन सर्वेक्षण में शामिल नहीं होने के कारण डेटाबेस में जगह नहीं मिल पाई थी.

इस तरह से सरकार ने यह स्वीकार कर लिया है कि बेसलाइन सर्वे में सभी घरों को जगह नहीं मिली थी. यह कॉलम 6 और 3 से एंट्रीज को हटाने को और पहेलीनुमा बना देता है.

अधिकारी ने कहा, ‘शुरुआत में छूट गए लाभार्थियों को सूची में शामिल नहीं किया गया था. इसलिए छूट गए लाभार्थियों को जोड़ना बेसलाइन या कुल लक्ष्य में से नामों को हटाने का स्पष्टीकरण नहीं हो सकता है. इसे सिर्फ लक्ष्य को आसानी से हासिल करने के लिए किया गया है.’

इस में सवालों की एक सूची जलशक्ति मंत्रालय को भी भेजी गई है और उनका जवाब प्राप्त होने के बाद उसे रिपोर्ट में उसे जोड़ दिया जाएगा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq