सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम-वीवीपीएटी के सौ फ़ीसदी सत्यापन से जुड़ी याचिका ख़ारिज की

आदालत ने अपने फैसले में दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि ईवीएम में सिंबल लोडिंग प्रक्रिया पूरी होने पर सिंबल लोडिंग यूनिट को सील कर दिया जाना चाहिए और और उन्हें कम से कम 45 दिनों के लिए सहेज कर रखा जाना चाहिए. 

इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 अप्रैल) को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के वोटों की वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पर्चियों से सौ फीसदी सत्यापन की मांग वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दीं.

रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने इस मामले में अलग-अलग लेकिन एक सहमति वाले फैसले लिखे.

लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘हमने प्रोटोकॉल, तकनीकी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है. इसके बाद हमने एकमत से फैसला दिया है.’

मालूम हो कि  खारिज की गई याचिकाओं में पेपर बैलेट से मतदान, सौ फीसदी ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन और वीवीपैट पर्चियों को भौतिक रूप से जमा करने की याचिकाएं शामिल थीं.

फैसला सुनाते हुए अदालत ने दो बड़े निर्देश दिए.

1. अपने पहले निर्देश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिंबल लोडिंग प्रक्रिया पूरी होने के बाद सिंबल लोडिंग यूनिट (एसएलयू) को सील कर दिया जाना चाहिए और उन्हें कम से कम 45 दिनों के लिए सहेज कर रखा जाना चाहिए.

2. इसके अलावा दूसरे निर्देश में कोर्ट ने कहा कि प्रति विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र प्रति संसदीय क्षेत्र में घोषणा के बाद ईवीएम के निर्माताओं के इंजीनियरों की एक टीम द्वारा जांच और सत्यापन किया जाएगा. उम्मीदवार 2 और 3 के लिखित अनुरोध पर परिणाम घोषित होने के सात दिनों के भीतर ये जांच होनी चाहिए. वास्तविक लागत इसका अनुरोध करने वाले उम्मीदवार द्वारा वहन की जाएगी. ईवीएम से छेड़छाड़ पाए जाने पर खर्चा वापस किया जाएगा.

जस्टिस दीपांकर दत्ता ने फैसला सुनाते समय कहा कि किसी प्रणाली पर आंख मूंदकर संदेह करना सही नहीं है. इसके लिए सार्थक आलोचना की आवश्यकता है. सिस्टम की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्य और कारण द्वारा निर्देशित एक महत्वपूर्ण लेकिन रचनात्मक दृष्टिकोण का पालन किया जाना चाहिए.

ज्ञात हो कि इस मामले में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अभय भाकचंद छाजेड़ और अरुण कुमार अग्रवाल द्वारा रिट याचिकाएं दायर की गई थीं. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि सभी वीवीपीएटी गणना से चुनावी प्रक्रिया में नागरिकों का विश्वास बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी. इसके लिए अंतिम परिणामों में कुछ दिन इंतजार करना एक छोटी-सी कीमत है.

वीवीपीएटी मशीनें मतदाताओं को एक कागज़ की पर्ची देखने देती हैं जो सात सेकेंड की अवधि के लिए मशीन के भीतर प्रिंट होती है, इसमें जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है. इसके बाद यह कागज मशीन के भीतर एक सीलबंद बॉक्स में चला जाता है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार चुनाव आयोग प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच रैंडम रूप से चयनित मतदान केंद्रों में वीवीपीएटी पर्चियों का सत्यापन करता है.

इससे पहले सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ईवीएम के लिए सोर्स कोड जारी करने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा था कि इसका दुरुपयोग हो सकता है. जैसा कि द वायर ने रिपोर्ट किया था, यह रुख उस बात से विरोधाभासी है, जो भारत का चुनाव आयोग बार-बार कहता रहा है कि मशीनें सौ प्रतिशत छेड़छाड़-रोधी हैं और उन्हें हैक नहीं किया जा सकता है.

16 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने ईवीएम की आलोचना और मतपत्रों को वापस लाने की मांग की निंदा करते हुए कहा था कि भारत में चुनावी प्रक्रिया एक ‘बहुत बड़ा काम’ है और इस ‘सिस्टम को गिराने’ की कोशिश नहीं की जानी चाहिए.