नरेंद्र मोदी ने कम से कम एक ऐसा आर्थिक समाज तो बना दिया है जो नतीजे से नहीं नीयत से मूल्यांकन करता है. मूर्खता की ऐसी आर्थिक जीत कब देखी गई है? गीता गोपीनाथ जैसी अर्थशास्त्री को नीयत का डेटा लेकर अपना नया शोध करना चाहिए.
मोदी सरकार के चार सालों में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ़ किए हैं. यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है. सख़्त और ईमानदार होने का दावा करने वाली मोदी सरकार में तो लोन वसूली ज़्यादा होनी चाहिए थी, मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई.
नाबार्ड द्वारा एक आरटीआई में दी गई जानकारी के अनुसार नोटबंदी के दौरान 10 जिला सहकारी बैंकों में सबसे ज़्यादा नोट बदले गए, उनके अध्यक्ष भाजपा, कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के नेता हैं.
बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि भीड़ द्वारा पीट-पीट कर जान लेने की घटनाएं दलितों तथा मुसलमानों के प्रति भाजपा के पक्षपातपूर्ण रवैये का नतीजा है. साथ ही उन्होंने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर रावण से कोई नाता होने से इनकार किया.
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने रिजर्व बैंक से आरटीआई के तहत नोटबंदी से संबंधित बैंक अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों, विभिन्न खातों में जमा धन और लोगों द्वारा आदान-प्रदान की गई मुद्रा की कुल मात्रा के बारे में जानकारी मांगी थी.
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन की नीतियों के चलते अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा न कि नोटबंदी से.
सरकार में हर कोई दूसरा टॉपिक खोजने में लगा है जिस पर बोल सकें ताकि रुपये और पेट्रोल पर बोलने की नौबत न आए. जनता भी चुप है. यह चुप्पी डरी हुई जनता का प्रमाण है.
मीडिया बोल की 65वीं कड़ी में उर्मिलेश नोटबंदी पर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट, सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी और मीडिया पर सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार शीतल प्रसाद सिंह और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु से चर्चा कर रहे हैं.
भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, मार्च 2017 तक लोन न चुकाने का मार्जिन 8,249 करोड़ था जो मार्च 2018 तक बढ़कर 16,111 करोड़ रुपये हो गया.
जन गण मन की बात की 298वीं कड़ी में विनोद दुआ नोटबंदी पर आई हालिया रिपोर्ट पर नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर चर्चा कर रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री ने 15-20 पूंजीपतियों के लिए नोटबंदी की थी. यह ग़लती नहीं बल्कि छोटे उद्योगों और छोटे व्यापारियों पर हमला था.
सरकार का कहना था कि बंद किए गए नोटों में से लगभग 3 लाख करोड़ मूल्य के नोट बैंकों में वापस नहीं आएंगे और यह काले धन पर कड़ा प्रहार होगा, लेकिन रिज़र्व बैंक मुताबिक अब नोटबंदी के बाद जमा हुए नोटों का प्रतिशत 99 के पार पहुंच गया है. यानी या तो इन नोटों में कोई काला धन था ही नहीं या उसके होने के बावजूद सरकार उसे निकालने में विफल रही.
जन गण मन की बात की 297वीं कड़ी में विनोद दुआ रिज़र्व बैंक द्वारा नोटबंदी पर दी गई वार्षिक रिपोर्ट पर चर्चा कर रहे हैं.
रिजर्व बैंक के दावे के उलट एसबीआई के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि 2000 और 500 के नए नोट आने के बावजूद नकली नोटों में इजाफा हो सकता है.
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में 2017-18 वित्तीय वर्ष में 50 और 100 रुपये के नकली नोटों में बीते वर्षों की अपेक्षा रिकॉर्ड बढ़ोतरी देखी गई है. 50 रुपये के नोटों में 154.3 प्रतिशत, तो 100 रुपये के नोटों में क़रीब 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई.