गृहमंत्री अमित शाह का दावा है कि पिछली सरकार ने हिंदू धर्म को आतंकवाद से जोड़ने के लिए असली दोषियों को छोड़ दिया था, यदि ऐसा है तो एनआईए उन्हें पकड़ने की दिशा में कोई कदम क्यों नहीं उठा रही है?
पाकिस्तान की एक महिला ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दाख़िल की याचिका. फरवरी 2007 में दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फोट के मामले के चारों आरोपियों स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को बीते मार्च महीने में अदालत ने बरी कर दिया था.
हाईकोर्ट ने चार आरोपियों मनोहर नावरिया, राजेंद्र चौधरी, धन सिंह और लोकेश शर्मा को जमानत दी है. तीन साल पहले एनआईए ने लोकेश शर्मा और धन सिंह को 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में बरी किया था.
लोग कह रहे हैं कि इस चुनाव में भाजपा का भरोसा छूट रहा है, उसने साध्वी को लाकर ब्रह्मास्त्र चलाया है. यह परीक्षा वास्तव में भाजपा की नहीं है, यह हिंदुओं का इम्तिहान है. क्या वे धर्म के इस अर्थ को स्वीकार करने को तैयार हैं?
समझौता एक्सप्रेस मामले की सुनवाई कर रहे जज ने कहा कि अभियोजन कई गवाहों से पूछताछ और उपयुक्त सबूत पेश करने में नाकाम रहा इसलिए मजबूरन आरोपियों को बरी करना पड़ा. जब एनआईए जैसी शीर्ष जांच एजेंसी एक भयानक आतंकी हमले के हाई-प्रोफाइल मामले में इस तरह बर्ताव करती है, तो देश की जांच और अभियोजन व्यवस्था की क्या साख रह जाती है?
एनआईए अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, 'मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका.'
पश्चिम बंगाल के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, ‘मैं उन्हें लंबे समय से जानता हूं. मैंने असीमानंद को बताया कि बंगाल में स्थिति ख़राब है और हमें यहां काम करने की ज़रूरत है. इस पर वो सहमत हैं.’
एनआईए की विशेष अदालत के जज रवींद्र रेड्डी ने 16 अप्रैल को मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में मुख्य आरोपी असीमानंद समेत पांच लोगों को बरी करने के बाद इस्तीफ़ा दे दिया था.
हम भी भारत की 30वीं कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी मक्का मस्जिद ब्लास्ट में एनआईए कोर्ट के सभी आरोपियों को बरी करने के फ़ैसले पर चर्चा कर रही हैं.
हैदराबाद की मक्का मस्जिद धमाका मामले में 16 अप्रैल को एनआईए कोर्ट ने स्वामी असीमानंद समेत सभी पांच आरोपियों को बरी किया था. 2007 में हुए इन धमाकों में नौ लोग मारे गए थे, जबकि करीब 58 लोग घायल हुए थे.
एनआईए की विशेष अदालत के जज के. रवींद्र रेड्डी ने इस्तीफ़े के पीछे निजी कारणों को वजह बताया है.
हैदराबाद में एनआईए की विशेष अदालत ने दिया फैसला, कहा एनआईए द्वारा दिए गए सबूत काफ़ी नहीं.
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जमानत दे दी लेकिन सह आरोपी और पूर्व कर्नल प्रसाद पुरोहित को कोई राहत देने से इनकार कर दिया.
साल 2007 में हुए अजमेर दरगाह बम विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने साध्वी प्रज्ञा और संघ के नेता इंद्रेश कुमार को क्लीनचिट दे दी है.
जयपुर की विशेष अदालत ने अजमेर दरगाह बम विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद समेत सात आरोपियों को बुधवार को बरी कर दिया जबकि तीन अभियुक्तों को मामले में दोषी पाया गया है.