द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
फैक्ट-चेक: इज़रायल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के बीच लगातार साझा की जा रही फ़र्ज़ी ख़बरों के बीच इज़रायल समर्थकों ने एक वीडियो क्लिप में एक फ़िलिस्तीनी व्यक्ति के 'शव के हिलने' का दावा करते हुए मौत के आंकड़ों पर सवाल उठाया गया था. ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल में यह दावा ग़लत पाया गया है.
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दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उनके ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द करने की मांग की गई थी, क्योंकि उन्होंने एक ट्विटर यूज़र को जवाब दिया था, जिसने उन्हें गाली दी थी और उनके पेज पर सांप्रदायिक टिप्पणियां भी की थीं.
फैक्ट-चेक: ट्विटर पर वायरल हुए एक वीडियो में आरएसएस समर्थक हिंदू महिला को मुस्लिमों द्वारा गोली मारने का दावा किया जा रहा है. पड़ताल में सामने आया है कि यह 2017 में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक नुक्कड़ नाटक का दृश्य है.
फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने शिकायत की है कि उन्हें ऑनलाइन जान से मारने की धमकी मिली थी और कूरियर के माध्यम से धर्म विशेष के लिए प्रतिबंधित मांस उनके घर भेजा गया था. उन्होंने इसके लिए 16 ट्विटर हैंडल को जिम्मेदार बताया था.
फैक्ट-चेक करने वाली वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को धमकियां मिलने का सिलसिला तब से शुरू हुआ, जब उनके संस्थान ने तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी मज़दूरों पर हो रहे हमलों संबंधी कथित दावों का पर्दाफाश किया था.
फैक्ट चेक: कई चैनलों, पत्रकारों और भाजपा नेताओं का दावा है कि एनआईए, ईडी और पुलिस की संयुक्त छापेमारी में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के सौ से अधिक नेताओं की गिरफ़्तारी के विरोध में पुणे में हुए एक प्रदर्शन में 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' के नारे लगाए गए थे. हालांकि पड़ताल में पाया गया कि यह दावा ग़लत है.
साक्षात्कार: चार साल पुराने एक ट्वीट के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने क़रीब तीन हफ्ते जेल में बिताए. इस बीच यूपी पुलिस द्वारा उन पर कई मामले दर्ज किए गए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ज़मानत देते हुए कहा कि उनकी लगातार हिरासत का कोई औचित्य नहीं है. उनसे बातचीत.
फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को ज़मानत देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उन्हें लगातार हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है. अदालत ने उन्हें बुधवार को ही रिहा करने का आदेश दिया. साथ ही उनके ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में दर्ज सभी मामले दिल्ली पुलिस को जांच के लिए सौंप दिए और यूपी सरकार द्वारा गठित एसआईटी को भी समाप्त करने का निर्देश दिया.
मानवाधिकार समूह ‘एमनेस्टी इंडिया’ ने फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को तत्काल और बिना शर्त रिहा करने की मांग करते हुए कहा कि उन्हें लगातार हिरासत में रखना इस बात की ख़तरनाक चेतावनी है कि आपको भारत में सच बोलने की अनुमति नहीं है.
फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में दो और सीतापुर, लखीमपुर खीरी, ग़ाज़ियाबाद और मुज़फ़्फ़रनगर ज़िलों में एक-एक केस दर्ज किए गए हैं. यूपी पुलिस ने इन मामलों की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन भी किया है. ज़ुबैर इन एफ़आईआर को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की है. अगली सुनवाई 20 जुलाई को होगी.
वीडियो: साल 2018 में किए गए एक ट्वीट को लेकर ‘धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने’ के आरोप में ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर बीते 27 जून को दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. इसके अलावा वह उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में एक साथ छह मुक़दमों का सामना कर रहे हैं. इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का नज़रिया.
दिल्ली पुलिस द्वारा ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दर्ज चार साल पुराने ट्वीट संबंधी मामले में ज़मानत देते हुए दिल्ली की अदालत ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज़ ज़रूरी है. किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करना उचित नहीं है.
फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में दो और सीतापुर, लखीमपुर खीरी, ग़ाज़ियाबाद और मुज़फ़्फ़रनगर ज़िलों में एक-एक केस दर्ज किए गए हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते 12 जुलाई को इन मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन भी किया है.