स्मृति शेष: बीते 10 फरवरी को पाकिस्तान के प्रतिष्ठित शायर, नाटककार, अनुवादक अमजद इस्लाम अमजद का देहांत हो गया. मुशायरे की भाषा में कहें तो वे ‘भीड़ खींचने वाले’ शायर थे. उनकी अभूतपूर्व शोहरत मोहब्बत की थीम को शानदार तरीके से बरतने के उनके हुनर पर आधारित थी.
हाल ही में पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज में बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने की पचासवीं वर्षगांठ पर होने वाले एक पांचदिवसीय सम्मलेन को रद्द कर दिया गया. इस बारे में पाकिस्तान के पत्रकार वुसतुल्लाह ख़ान का नज़रिया.
मंटो नूरजहां को लेकर कहते थे, 'मैं उसकी शक्ल-सूरत, अदाकारी का नहीं, आवाज़ का शैदाई था. इतनी साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ आवाज़, मुर्कियां इतनी वाज़िह, खरज इतना हमवार, पंचम इतना नोकीला! मैंने सोचा अगर ये चाहे तो घंटों एक सुर पर खड़ी रह सकती है, वैसे ही जैसे बाज़ीगर तने रस्से पर बग़ैर किसी लग्ज़िश के खड़े रहते हैं.'
पुस्तक समीक्षा: किसी यात्रा वृतांत को पढ़ने के बाद अगर उस जगह जाने की इच्छा न जगे, तो ऐसे वृतांत का बहुत अर्थ नहीं है. पत्रकार समीर अरशद खतलानी द्वारा अपनी एक लाहौर यात्रा पर लिखी गई किताब 'द अदर साइड ऑफ द डिवाइड' इस मायने पर खरी उतरती है.
पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस के विमान ने शुक्रवार दोपहर लाहौर से कराची के लिए उड़ान भरी थी. राष्ट्रीय विमानन कंपनी के एयरबस ए320 में 91 यात्री और चालक दल के आठ सदस्य सवार थे.
चुनाव आयोग को भाजपा नेताओं के ख़िलाफ़ सबसे अधिक आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतें मिलने समेत दिनभर की महत्वपूर्ण ख़बरों का अपडेट.
शादमान चौक पर 23 मार्च 1931 को अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ाया था. उस दौरान यह चौक एक जेल का हिस्सा था.
‘मित्रो मरजानी’ के बाद सोबती पर पाठक फ़िदा हो उठे थे. ये इसलिए नहीं हुआ कि वे साहित्य और देह के वर्जित प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़ी थीं. ऐसा हुआ क्योंकि उनकी महिलाएं समाज में तो थीं, लेकिन उनका ज़िक्र करने से लोग डरते थे.
पुण्यतिथि विशेष: यह भी एक क़िस्म की विडंबना ही है कि जिस साहिर के कलाम गुनगुनाकर अनगिनत इश्क़ परवान चढ़े, उसकी अपनी ज़िंदगी में कोई इश्क़ मुकम्मल न हुआ.
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने के लिए पाकिस्तान के लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दाख़िल करने वाले भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष और वकील इम्तियाज़ राशिद क़ुरैशी से बातचीत.
मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा. जब मैंने उसे नास्तिक होने की बात बताई तो उसने कहा, ‘अपने अंतिम दिनों में तुम विश्वास करने लगोगे.’ मैंने कहा, ‘नहीं, प्यारे दोस्त, ऐसा नहीं होगा. मैं इसे अपने लिए अपमानजनक तथा भ्रष्ट होने की बात समझता हूं. स्वार्थी कारणों से मैं प्रार्थना नहीं करूंगा.’
पाकिस्तान सरकार से लाहौर के शादमान चौक पर भगत सिंह की प्रतिमा लगाने की भी मांग की गई है.
साल 1913 में आज ही के दिन (03 मई) भारत की पहली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र प्रदर्शित की गई थी. इस मूक फिल्म को दादा साहेब फाल्के ने बनाया था.
अगर बेग़म जान या पाकिस्तान के बाहर विभाजन पर बनी कोई भी फिल्म सरकार को इतना डरा देती है कि उसे बैन करने से पहले देखना तक ज़रूरी नहीं समझा जाता, तो यह दिखाता है कि ये मुल्क किस कदर असुरक्षा और डर में जी रहा है.
'गद्दीनशीं अब्दुल वाहिद दरगाह आने वालों को ‘पाक़’ करने के लिए उनकी मर्ज़ी से उन्हें पीटता था. शनिवार को उसने 20 ज़ायरीनों की जान ले ली'