मोहन भागवत ‘वोक पीपल’ और ‘वोक़िज़्म’ को लेकर इतना ग़ुस्से में क्यों है?

कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘सांस्कृतिक मार्क्सवादी’ और ‘वोक पीपल’ (Woke People) को लेकर संघ सुप्रीमो की ललकार एक तरह से उत्पीड़ितों की दावेदारी और स्वतंत्र चिंतन के प्रति हिंदुत्व वर्चस्ववाद की बढ़ती बेचैनियों  को ही बेपर्द करती है.

बड़े लेखक अपने साहित्य के लिए पढ़े-सराहे जाते हैं, अपनी विचारधारा के कारण नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विचारधारा से प्रतिबद्ध वही लेखक बड़े या महान हुए जिन्होंने अपने साहित्य में अपनी ही विचारधारा का अतिक्रमण करने का दुस्साहस किया, कह सकते हैं, अपने साहित्य-विचार के पक्ष में. यह अतिक्रमण न विरोध होता है, न ही विचलन. शमशेर और मुक्तिबोध ऐसे अतिक्रमण के उजले उदाहरण हैं.

वरवरा राव: कवि जीता है अपने गीतों में, और गीत जीता है जनता के हृदय में…

विशेष: मुक्तिबोध ने कहा था ‘तय करो किस ओर हो तुम?’ और ‘पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ वरवरा राव इस सवाल से आगे के कवि हैं. वे तय करने के बाद के तथा पॉलिटिक्स को लेकर वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले कवि हैं. उनके लिए कविता स्वांतः सुखाय या मनोरंजन की वस्तु न होकर सामाजिक बदलाव का माध्यम है.

प्रोफेसर तुलसीराम: अपने समय के कबीर

पुण्यतिथि विशेष: प्रोफेसर तुलसीराम जाति व्यवस्था को परमाणु बम से भी ज़्यादा घातक मानते और कहते थे कि आप किसी शहर पर परमाणु बम गिरा दें तो वह उसकी एक-दो पीढ़ियों को ही नष्ट कर पाएगा. पर हमारे समाज पर थोपी गई जाति व्यवस्था पीढ़ी दर पीढ़ी संभावनाओं का संहार करती आ रही है.

बाबू जगदेव प्रसाद: ‘पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी के जेल जाएंगे और तीसरी पीढ़ी राज करेगी’

जन्मदिन विशेष: 'बिहार के लेनिन' कहे जाने वाले बाबू जगदेव प्रसाद कहते थे कि आज का हिंदुस्तानी समाज साफ तौर से दो भागों में बंटा हुआ है- दस प्रतिशत शोषक और नब्बे प्रतिशत शोषित. यह इज़्ज़त और रोटी की लड़ाई हिंदुस्तान में समाजवाद या कम्युनिज़्म की असली लड़ाई है. भारत का असली वर्ग संघर्ष यही है.

चीन: राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सत्ता में रिकॉर्ड तीसरी बार वापसी की

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग पार्टी संस्थापक माओ त्से तुंग के बाद सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के ऐसे पहले नेता हैं, जिन्हें तीसरा कार्यकाल मिला है. उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना सीपीसी की 20वीं केंद्रीय समिति का महासचिव चुना गया. इसके अलावा चिनफिंग को केंद्रीय सैन्य आयोग का अध्यक्ष भी नामित किया गया.

सवाल कविता कृष्णन पर नहीं, सीपीआई माले पर है

कविता कृष्णन के सवालों पर चुप्पी साधते हुए सीपीआई माले के उन्हें विदा करने के बाद बहुत सारे पुराने, निष्क्रिय ‘मार्क्सवादियों’ ने इस बात के लिए दोनों की तारीफ़ की कि उन्होंने अलग होने में ‘शालीनता दिखाई.’ ज़रूरी सवालों पर चुप रह जाना शालीनता नहीं होती, बल्कि उठाए गए सवालों पर सहमति होती है.

एजाज़ अहमद: साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ रहे एक विचारक का जाना

स्मृति शेष: देश के सबसे प्रभावशाली मार्क्सवादी चिंतकों में से एक एजाज़ अहमद का बीते महीने निधन हो गया. अहमद को साहित्य और समाज, इतिहास, अर्थतंत्र और राजनीति के जटिल अंतर्संबंधों की अंतर्दृष्टिपूर्ण व्याख्या के लिए जाना जाता था.

दक्षिणपंथियों को ‘समाजवादी’ शब्द से इतनी चिढ़ क्यों है?

भाजपा और शिवसेना की ओर से कई बार संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी शब्द हटाने की मांग उठ चुकी है. बीते दिनों संघ के विचारक और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने इसे हटाने के लिए सदन में प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कही है.

चार्वाक के वारिस: विचारों को द्रोह माने जाने के काल में द्रोह पर आमादा किताब

यह निबंध-संग्रह 'एक राष्ट्र, एक जन, एक संस्कृति’ के स्वनामधन्य पैरोकारों की असली-नकली अवधारणाओं और कुतर्कों की बिना पर रचे जा रहे तिलिस्म को वैज्ञानिक चिंतन प्रक्रिया की कसौटी पर कसकर न सिर्फ बेपरदा बल्कि पूरी तरह ख़ारिज भी करता है.

वामपंथ से इतनी घृणा क्यों?

सुब्रमण्यम स्वामी ने पूछा कि ‘विदेशी आतंकवादी’ लेनिन की मूर्ति देश में कहीं भी क्यों होनी चाहिए? काश कोई उन्हें बताता कि लेनिन तब से भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की प्रेरणा हैं, जब स्वामी की पार्टी के पुरखे अंग्रेज़ों का हुक्का भरने में मगन थे.