उदयपुर हत्या के बहाने समाज बांटने की कोशिश करने वालों से सावधान रहना ज़रूरी है

उदयपुर में हुई नृशंसता के बावजूद इस प्रचार को क़बूल नहीं किया जा सकता कि हिंदू ख़तरे में हैं. इस हत्या के बहाने जो लोग मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा प्रचार कर रहे हैं, वे हत्या और हिंसा के पैरोकार हैं. यह समझना होगा कि एक सुनियोजित षड्यंत्र चलाया जा रहा है कि किसी घटना पर हिंदू, मुसलमान एक साथ एक स्वर में न बोल पाएं. 

क्या हिंदू समाज हत्यारों का साझीदार हुआ?

यह भारत का सामाजिक स्वभाव बनता जा रहा है कि मुसलमानों को खुलेआम मारा जा सकता है, उनके ख़िलाफ़ हिंसक प्रचार किया जा सकता है और पुलिस-प्रशासन से लेकर राजनीतिक दलों तक कोई भी इसे गंभीर मामला मानने को तैयार नहीं.

मुस्लिमों के उत्पीड़न की वजह अब ध्रुवीकरण नहीं, उन्हें अपमानित ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर करना है

देश के नेता विगत कोई बीस सालों के अथक प्रयास से समाज का इतना ध्रुवीकरण पहले ही कर चुके हैं कि आने वाले अनेक वर्षों तक उनकी चुनावी जीत सुनिश्चित है. फिर कुछ लोग अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और उन्हें अपमानित करने के लिए जोशो-ख़रोश से क्यों जुटे हुए हैं?

हिंसा, क्रूरता कितनी भी नियमित हो जाए, उसे सामान्य मानने से इनकार करने की मानवीयता बची रहती है

डासना की घटना से मालूम होता है कि जो हिंसा का निशाना बनाया गया है, पुलिस उसके साथ खड़ी हो सकती है. जिसने हिंसा की, पुलिस उसे खोजकर उसके साथ इंसाफ की प्रक्रिया शुरू कर सकती है. इंसानियत के बचे रहने की उम्मीद क़ानून या संविधान के बोध के जीवित और सक्रिय रहने पर ही निर्भर है.

राजस्थान: भूमि विवाद की जांच करने गए पुलिस कॉन्स्टेबल की पीट-पीटकर हत्या

मामला राजस्थान के राजसमंद जिले का है. हालांकि, उदयपुर रेंज की आईजी बिनीता ठाकुर ने कहा कि यह मॉब लिंचिंग का मामला नहीं है.

भारत में अल्पसंख्यकों की हालत पाकिस्तान-बांग्लादेश से काफ़ी बेहतर है: तस्लीमा नसरीन

तस्लीमा ने राजस्थान के राजसमंद मामले में पुलिस कार्रवाई की तारीफ़ करते हुए कहा कि भारत में उसे जेल में डाल दिया गया, लेकिन बांग्लादेश में इस तरह के लोग अब भी खुले घूम रहे हैं.

शंभूलाल जैसे मानव बम राजनीति और मीडिया ने ही पैदा किए हैं

बीसियों साल से जिस तरह की विभाजनकारी राजनीति हो रही है, मीडिया के सहयोग से जिस तरह समाज में ज़हर बोया जा रहा है, उसकी फसल अब लहलहाने लगी है.