एफआईआर सरल भाषा में हो ताकि आम लोग आसानी से समझ सके, इसके लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाख़िल की गई है. सरल शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है या नहीं, इसकी जांच लिए हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के 10 थानों से एफआईआर की 10-10 कॉपी मंगाई है.
नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने शहर के विभिन्न पुलिस थानों से 100 एफआईआर की प्रतियां मंगाई हैं, ताकि यह पता चल सके कि शिकायतें दायर करने में ‘उर्दू’ या ‘फारसी’ भाषा के 383 शब्दों के इस्तेमाल को रोकने के एक हालिया पुलिस परिपत्र का पालन हो रहा है नहीं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘राज़ीनामा’, ‘तहरीर’, ‘अदम तामील’, ‘मुजरिम’, ‘गुफ्तगू’, ‘संगीन अपराध’ और ‘ज़ेर-ए-तफ्तीश ‘ ये उर्दू और फारसी के उन 383 में से हैं, जिन्हें एफआईआर में इस्तेमाल न करने का परिपत्र जारी किया गया है.
अदालत का कहना है कि एफआईआर में इस्तेमाल में लाई जाने वाली भाषा सरल होनी चाहिए, जो आम लोगों को समझ में आ सके.
पीठ ने पुलिस को 10 पुलिस थानों में दर्ज कम से कम 10-10 एफआईआर अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया था. दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि अगली तारीख पर पीठ के समक्ष हलफनामे के साथ कम से कम 100 एफआईआर पेश की जानी चाहिए.
इससे पहले अगस्त में दिल्ली उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा था कि पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के दौरान अधिक अलंकृत भाषा का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि एफआईआर आम लोगों के लिए ही होती है. एफआईआर की भाषा इस तरह की नहीं होनी चाहिए कि इसे समझने के लिए किसी को संस्कृत, उर्दू या फारसी भाषा में डॉक्टरेट की उपाधि की जरूरत पड़े.
20 नवंबर को डीसीपी (लीगल सेल) राजेश देव ने सभी डीसीपी को एक मेमो भेजा था, जिसमें एफआईआर दर्ज करते समय सरल शब्दों का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए गए थे.
इस मेमो में गया गया था, ‘दिल्ली पुलिस मुख्यालय ने उर्दू और फारसी शब्दों की एक सूची तैयार की है, जिन्हें हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ दिल्ली पुलिस के दैनिक कामकाज में इस्तेमाल में लाया जा रहा है. आपके तहत काम कर रहे अधिकारियों को इस तरह के उर्दू, फारसी शब्दों के इस्तेमाल से बचने के लिए सचेत होना चाहिए. जहां तक संभव हो सरल शब्दों का उपयोग किया जाए, जिसे आम लोग आसानी से समझ सके.’
पीठ ने कहा कि एफआईआर अदालत में बार-बार पढ़ी जाती है और इसलिए इसे सरल भाषा में होना चाहिए.
अदालत ने अधिवक्ता विशालाक्षी गोयल की जनहित याचिका पर यह निर्देश दिया.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘फारसी अदालती भाषा थी, जिसका इस्तेमाल प्रशासनिक मामलों में होता था. प्रशासनिक मामलों में अभी भी इनके इस्तेमाल होने से पता चलता है कि ये शब्द अभी भी हमारे शब्दकोष का हिस्सा बने हुए हैं. अब पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज अनाधिकारिक रूप से अपने स्टाफ को इस तरह के कठिन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं.’
दिल्ली पुलिस ने पीठ से कहा कि उसने 20 नवंबर को अपने सभी थानों को एक परिपत्र जारी कर उन्हें एफआईआर दर्ज करने के दौरान उर्दू और फारसी के शब्दों की जगह सरल शब्दों का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया है.
मालूम हो कि सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने पीठ के समक्ष उर्दू या फारसी के ऐसे 383 शब्दों की सूची पेश की थी.
अदालत ने इस मामले पर अगली सुनवाई 11 दिसंबर के लिए निर्धारित की है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)