महिलाओं की सुरक्षा की चिंता और उनको हिंसा, बलात्कार आदि से बचाने को लेकर कड़े क़ानून बनाने का नेताओं का आश्वासन उनके दिए महिला-विरोधी बयानों के बरक्स बौना नज़र आता है.
हैदराबाद में 27 वर्षीय पशु चिकित्सक का चार युवकों ने बेरहमी से सामूहिक बलात्कार कर उसे मारकर जला दिया. घटना की वीभत्सता ने 2012 का दिल्ली का ‘निर्भया कांड’ याद करा दिया.
बहरहाल, जितनी वीभत्स हैदराबाद की घटना रही, उतना ही अधिक शर्मनाक तेलंगाना के गृह मंत्री मोहम्मद महमूद अली का बयान माना गया. घटना के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘अफसोस की बात है कि वो डॉक्टर पढ़ी-लिखी होने के बाद भी अपनी बहन को फोन किया, अगर वो 100 नंबर पर कॉल करती तो बच जाती.’
कहीं न कहीं मृतक चिकित्सक को पढ़ी-लिखी नासमझ ठहराते गृहमंत्री के इन शब्दों पर उनकी चौतरफा आलोचना हुई, तो वे सफाई देते भी नजर आए. लेकिन यह पहली बार नहीं था कि जब हमारे राजनेता बलात्कार जैसे बेहद नाजुक मसले पर भी संवेदनहीनता का परिचय देते नजर आए हों.
महमूद अली के बयान पर विवाद जरूर हुआ लेकिन इतिहास खंगालें तो हमारी राजनीतिक जमात बलात्कार की घटनाओं पर महमूद अली के बयान से भी कई गुना अधिक शर्मनाक और संवेदनहीन बयान दे चुकी है. बता दूं कि यहां राजनेताओं की संवेदनहीनता का जिक्र करना इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि वे हमारे जनप्रतिनिधि हैं, वे ही हमारे लिए नीति निर्माण का कार्य करते हैं, क़ानून बनाते हैं.
अगर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पर उनकी ही सोच दूषित होगी, तो समाज किससे सुरक्षा और न्याय की आस लगाएगा?
2012 में जब निर्भया कांड हुआ था तो सारा देश महिला सुरक्षा के मुद्दे पर सड़कों पर उतर आया था. सरकार से बलात्कार के खिलाफ कड़े कानूनों की मांग की जा रही थी. जन मुहिम ने असर भी दिखाया और सरकार क़ानून भी लेकर आई. लेकिन, हकीकत यह है कि तब से अब तक बलात्कार के मामलों में कमी तो नहीं आई, उल्टा बढ़ोतरी ही हुई है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, निर्भया कांड के समय देश में हर दिन 69 बलात्कार होते थे. हाल में जारी एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों (वर्ष 2017) में हर दिन 90 बलात्कार हो रहे हैं. आज 2019 की स्थिति तो और भी अधिक भयावह होगी.
लेकिन, दुर्भाग्य कि जिस रफ्तार से बलात्कार की घटनाओं का ग्राफ ऊपर चढ़ता जा रहा है, उसी रफ्तार से बलात्कार की घटनाओं और महिलाओं को लेकर हमारे राजनीतिक नेतृत्व के संवेदनहीन रवैये में भी बढ़ोतरी हो रही है, जो कहीं न कहीं महिलाओं के खिलाफ दूषित मानसिकता को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि बलात्कार की कुसंस्कृति को प्रोत्साहन दे रहा है.
साथ ही यह मानने को विवश कर रहा है कि हमें राजनीतिक नेतृत्व से महिला अपराध और बलात्कार की घटनाओं पर लगाम कसने संबंधी उम्मीद छोड़ देनी चाहिए. चूंकि, निर्भया कांड के समय माना गया था कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और उनकी सुरक्षा को लेकर अब समाज जागरूक हुआ है तो बदलाव दिखेगा. लेकिन उसी समाज से निकले नेताओं की सोच बिल्कुल नहीं बदली.
निर्भया कांड से ही शुरू करें तो जब निर्भया अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही थी, तब भाजपा के वर्तमान महासचिव कैलाश विजयवर्गीय उसे ही इस घटना का जिम्मेदार ठहराते हुए कह रहे थे, ‘सीता लक्ष्मण रेखा लांघेगी तो रावण उसका अपहरण करेगा ही.’
विजयवर्गीय के शब्दों का अर्थ था कि लड़कियों को रात को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए. हालांकि, जिस समय निर्भया के साथ घटना घटी, वह रात के साढ़े आठ-नौ बजे के करीब का समय था. क्या एक महिला सूरज ढलते ही घर में कैद हो जाए? इस तरह विजयवर्गीय ने क़ानून व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठाने के बजाय निर्भया की स्वतंत्रता को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था.
इस हमाम में क्या भाजपा, क्या कांग्रेस सभी दल नंगे हैं. जब निर्भया के न्याय के लिए प्रदर्शन हो रहे थे तब केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के सांसद अभिजीत मुखर्जी (पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे) प्रदर्शनकारी महिलाओं पर यह टिप्पणी कर रहे थे, ‘हाथ में मोमबत्ती जलाकर सड़कों पर आना फैशन हो गया है. ये सजी-संवरी महिलाएं पहले डिस्को थेक में गईं और फिर इस गैंगरेप के खिलाफ विरोध दिखाने इंडिया गेट पर पहुंचीं.’
निर्भया पर बात हुई है तो पूर्व समाजवादी पार्टी प्रमुख, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद मुलायम सिंह यादव का भी जिक्र जरूरी हो जाता है.
मुंबई के शक्ति मिल्स रेप केस के फैसले वे भरे मंच से कहते नजर आए, ‘बच्चे हैं, गलती हो जाती है. इसका मतलब क्या फांसी चढ़ा दोगे? उन तीन बेचारे लड़कों को फांसी दे दी गई. बताइए रेप के लिए भी फांसी होगी क्या? हम ऐसे क़ानून बदलने की कोशिश करेंगे.’
मुलायम सिंह बलात्कारों को लेकर कितनी घिनौनी सोच रखते हैं, इसकी बानगी एक बार फिर वर्ष भर बाद देखने तब मिली जब वे गैंगरेप के बचाव में दलील देते नजर आए, ‘चार लोग एक महिला के साथ बलात्कार कर ही नहीं सकते. एक व्यक्ति बलात्कार करता है, चार लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी जाती है.’
तब उत्तर प्रदेश में उनके बेटे अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे. सरकार के बचाव में मुलायम यहां तक कह गये, ‘राजनीतिक दुश्मनी के चलते सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है जबकि प्रदेश में क्राइम रेट बहुत कम है.’
मुलायम सिंह की बात चली तो उनकी ही पार्टी के सांसद आज़म खान का जिक्र भी यहां जरूरी हो जाता है. 2016 के चर्चित बुलंदशहर गैंगरेप के समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और आज़म खान मंत्री थे. गैंगरेप की उस घटना को उन्होंने सरकार को बदनाम करने की विपक्ष की साजिश ठहरा दिया था.
उन्होंने कहा था, ‘हमें यह जांच करनी चाहिए कि कहीं यह मामला राजनीति से प्रेरित होकर सरकार को बदनाम करने की साजिश तो नहीं. सरकार को विपक्षी पार्टियों की विचारधारा का संज्ञान लेना चाहिए जो सत्ता में आने के लिए ऐसे कुकर्म तो नहीं करा रहीं. चुनाव करीब होने के चलते सपा को बदनाम करने का इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं हो सकता.’
वैसे उत्तर प्रदेश में सरकार तो बदल गई लेकिन बलात्कारों को विपक्ष की साजिश बताना अब भी जारी है. इसी साल जून में राज्य में बलात्कार की घटनाओं पर सरकार के बचाव में भाजपा सांसद प्रवीण निषाद कहते नजर आए, ‘रेप की घटनाएं विपक्ष और महागठबंधन के द्वारा हमारी सरकार बदनाम करवाने के लिए करवाई जा रही हैं.’
मुलायम के समाजवादी कुनबे की दुष्कर्म के मामलों पर विकृत सोच की विरासत उनके बेटे अखिलेश यादव ने भी आगे बढ़ाई. चर्चित बदायूं कांड पर जब एक महिला पत्रकार ने उनसे प्रदेश में महिला सुरक्षा संबंधी सवाल किया तो मुख्यमंत्री अखिलेश ने जवाब दिया, ‘आपको तो खतरा नहीं हुआ.’
उन्हीं के पार्टी के तत्कालीन राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल (वर्तमान में भाजपा में हैं) ने रेप की एक घटना को एक तरह से खारिज करते हुए कहा था, ‘आप एक बछिया को भी घसीटकर नहीं ले जा सकते…’
वैसे मुलायम सिंह महिलाओं को लेकर कैसी सोच रखते हैं यह कई बार देखा जा चुका है. 2010 में महिला आरक्षण विधेयक पर कहते नजर आए थे, ‘अगर वर्तमान स्वरूप में महिला आरक्षण विधेयक पास हुआ तो संसद में उद्योगपतियों और अधिकारियों की ऐसी-ऐसी लड़कियां आ जाएंगी जिन्हें देखकर लड़के पीछे से सीटी बजाएंगे.’
इसी विधेयक के बारे में उन्होंने एक अन्य मौके पर कहा था, ‘विधेयक आने पर बड़े घर की महिलाएं ऊपर जा सकती हैं क्योंकि उनमें आकर्षण होता है. गांव की महिलाएं आकर्षक नहीं होतीं.’
संसद में बैठकर बलात्कार के खिलाफ कानून बनाने वाले ही जब बलात्कारियों के प्रति सहानुभूति और महिलाओं के प्रति विकृत सोच रखें तो महिलाओं के खिलाफ अपराध का आंकड़ा बढ़ने पर आश्चर्य कैसा होना!.
मुलायम सिंह की तरह ही छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा भी 2014 में बलात्कारियों की पैरवी करते दिखे थे. राज्य में लगातार घटती दुष्कर्म की घटनाओं पर उन्होंने कहा था, ‘बलात्कार कोई जानबूझकर नहीं करता, बल्कि धोखे से हो जाता है.’
तो तत्कालीन कांग्रेस विधायक और वर्तमान में भाजपा नेता रामदयाल उइके का मानना था, ‘दुष्कर्म तभी होता है, जब प्रेमप्रसंग का मामला बिगड़ जाता है. जब प्रेम रहता है, तब तक ठीक है और जब बिगड़ जाता है, तब बलात्कार होता है’
रामदयाल उइके जैसी सोच और भी नेताओं की है. मुलायम के समाजवादी कुनबे के ही उनके भाई सांसद रामगोपाल यादव भी उनमें से एक हैं. उनका कहना रहा था, ‘जब लड़के-लड़कियों का प्रेम संबंध खुलकर सामने आ जाता है तो उसे रेप कह दिया जाता है.’
बदायूं गैंगरेप पर हुई सरकार की किरकिरी पर नाराज रामगोपाल यादव ने एक चैनल की महिला पत्रकार से यह कहा, ‘आप ही जाकर वहां का माहौल ठीक कर दो. यूपी में हो रहे रेप के मामलों से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है. मीडिया ही हमारे साथ पक्षपात करता है. दूसरे राज्यों में भी रेप की घटनाएं होती हैं. लेकिन मीडिया सिर्फ यूपी की ही खबर दिखाता है.’
ऐसे बयानों के संबंध में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी विवादित रहे हैं. उन्होंने सरकार के बचाव में कहा था, ‘बलात्कार और छेड़छाड़ की 80-90 फीसदी घटनाएं जानकारों के बीच में होती हैं. काफी समय तक इकट्ठे घूमते हैं, एक दिन अनबन हो गई तो एफआईआर करा देते हैं कि मेरा रेप किया.’
यह सही है कि कई मामलों में ऐसा भी हुआ है, लेकिन इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना बयान बलात्कार और बलात्कारियों के समर्थन में नजर आते हैं. और मुख्यमंत्री खट्टर ने एक अन्य मौके पर बलात्कार को लड़कियों के पहनावे से जोड़ते हुए कहते हैं, ‘अगर कोई लड़की शालीन दिखने वाले कपड़े पहनती है, तो कोई लड़का उसे गलत ढंग से नहीं देखेगा.’
बलात्कारों को लेकर जवाबदेही पुरुषों की तय होनी चाहिए लेकिन महिलाओं के कपड़ों को ही बलात्कार का कारण ठहराने वाले खट्टर जैसी सोच के नेता और भी हैं.
समाजवादी कुनबे के महाराष्ट्र से विधायक और महाराष्ट्र प्रदेशाध्यक्ष अबू आजमी की भी यही सोच रही है.
निर्भया कांड के दोषियों को फांसी की बात पर उनका कहना था, ‘नंगेपन को रोकने के लिए कानून होना चाहिए. कम कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगना चाहिए. मैं दिल्ली गैंगरेप के आरोपियों को फांसी देने के पक्ष में हूं, पर एक कानून ऐसा भी होना चाहिए जो महिलाओं के छोटे कपड़ों पर भी प्रतिबंध लगाए.’
साल 2017 में बेंगलुरु के एक क्लब में नए साल के जश्न के समय लड़कियों के साथ अभद्रता की घटना सामने आई थी. तब आज़मी ने कहा था कि अगर मेरी बहन-बेटी सूरज डूबने के बाद गैर मर्द के साथ 31 दिसंबर मनाए और उसका भाई या पति साथ नहीं है तो ये ठीक नहीं है. जहां पेट्रोल होगा, वहीं आग लगेगी. शक्कर गिरेगी तो चींटी जरूर आएगी. इससे बहुत लोग मुझसे नाराज होंगे, लेकिन चलेगा क्योंकि यह सच्चाई है.
वे यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा, ‘आज मॉडर्न जमाने में जितनी औरत नंगी नजर आती है उतना उसे फैशनेबल कहा जाता है.’
एक बार तो बलात्कार के मामलों में सजा को लेकर उन्होंने यहां तक कहा कि इस्लाम के अनुसार बलात्कार के दोषी को फांसी की सज़ा दी जानी चाहिए लेकिन इसके लिए महिलाओं को कुछ नहीं होता, सिर्फ़ पुरुषों को सज़ा दी जाती है. महिलाएं भी दोषी हैं.
इसी तरह 2013 में मुंबई में हुए एक गैंगरेप के बाद नरेश अग्रवाल ने सलाह दी थी, ‘सामाजिक सोच को बदलना होगा. टीवी की अश्लीलता, रहन-सहन और कपड़े पहनने के तौर-तरीकों पर ध्यान देना होगा.’
एंटी रेप बिल के विरोध में उन्होंने यह कहा था कि अधिकारी महिला पीए रखने से घबराते हैं.
महिलाओं के साथ हुए अपराध के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार बताना पितृसत्तात्मक सोच का परिणाम है और देश के नेताओं की यह सोच विभिन्न अवसरों पर दिखती रही है.
उनके अनुसार मोबाइल फोन के इस्तेमाल से लेकर चाउमीन खाना भी बलात्कार की वजह हो सकता है.
2018 में जब जम्मू कश्मीर में आठ साल की मासूम के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या को लेकर देश में हंगामा मचा हुआ था, तब बलिया के भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा था, ‘नाबालिग लड़कियों का खुलेआम घूमना ठीक नहीं. उन्हें मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इसी कारण रेप जैसी घटनाएं होती हैं.’
हैदराबाद कांड के दो ही दिन बाद 30 नवंबर को राजस्थान के टोंक जिले के खेड़ली गांव में एक छह वर्षीय मासूस से बलात्कार करके उसका गला इस बर्बरता से दबाया गया कि उसकी आंखें ही बाहर निकल आईं.
अबू आजमी, मनोहरलाल खट्टर, नरेश अग्रवाल जैसे नेताओं को बताना चाहिए कि क्या टोंक जिले की इस मासूम या ऐसी अनेकों बच्चियों के साथ हो रही हिंसा और बलात्कार के लिए भी छोटे कपड़ों को कारण माना जाए?
सुरेंद्र सिंह बताएं कि उस मासूम के पास क्या मोबाइल फोन था, क्या वह खुलेआम घूम रही थी?
जब ग्रामीण क्षेत्रों में बलात्कार की बात कर रहे हैं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख उन मोहन भागवत का भी जिक्र जरूरी हो जाता है जो हैदराबाद कांड पर दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं.
एक वक्त यही भागवत कहते नजर आए थे, ‘रेप ‘इंडिया’ में होते हैं, ‘भारत’ में नहीं.’ कुछ सालों पहले दिए इस बयान में उन्होंने समझाया था कि शहरों की पश्चिमी सभ्यता के चलते बलात्कार इंडिया में होते हैं, भारत (गांवों) में नहीं.’
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर भी भागवत और आजमी जैसी ही सोच रखते थे. उनका बयान था, ‘विदेश में महिलाएं जींस-टी शर्ट पहनती हैं, पराए मर्दों के साथ डांस करती हैं, शराब भी पीती हैं. पर ये उनकी संस्कृति है. ये उनके लिए ठीक है, भारत के लिए नहीं.’
यहां बता दें कि यह बात गौर ने राज्य के गृहमंत्री रहते कही थी, जिस पर कि सीधे तौर पर बलात्कार और महिला अपराध रोकने की जिम्मेदारी होती है. उन्होंने और भी कई मौकों पर महिलाओं के खिलाफ जहर उगला था.
भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह जब मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहते हुए कहा था, ‘सेक्स एजुकेशन जिन देशों में है, वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़े हैं.सेक्स एजुकेशन को लेकर हमें सोच-समझकर आगे बढ़ने की जरूरत है. अमेरिका के सिलेब्स में सेक्स एजुकेशन शामिल है, पर स्टूडेंट्स को सिर्फ सेक्शुअल रिलेशन बनाना सिखाया जा रहा है.’’
आज वे सांसद हैं और देश की संसद में बैठकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया में शामिल हैं.
बलात्कार को गलत न बताकर नैतिकता की दुहाई देने वाले भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए खतरा हैं. भाजपा सांसद साक्षी महाराज ऐसे ही लोगों में शामिल हैं.
यौन उत्पीड़न और बलात्कार के दोषी स्वयंभू संत गुरमीत राम रहीम के बचाव में उन्होंने कहा था, ‘एक व्यक्ति ने राम रहीम पर दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए शिकायत दी. वहीं, करोड़ों लोग उन्हें भगवान मानते हैं. ऐसे में आप किसे सही समझते हैं? यह भारतीय संस्कृति को बदनाम करने की साजिश है.’
ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने अपनी सोच के अनुसार बलात्कार के पैमाने और परिभाषाएं भी गढ़ रखे हैं. त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस जब छत्तीसगढ़ की रायपुर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद थे, तब बलात्कार के मामले में उनकी सोच यह थी, ‘बड़ी लड़कियों और महिलाओं से बलात्कार तो समझ आता है लेकिन अगर कोई बच्ची के साथ रेप करे तो यह घिनौना अपराध है.’
वहीं भाजपा के ही एक अन्य नेता और यूपी सरकार में मंत्री उपेंद्र तिवारी का कहना था, ‘अगर किसी बच्ची से बलात्कार किया जाता है तो वह जघन्य अपराध है. जबकि किसी विवाहित महिला से बलात्कार किया जाता है तो वह अलग बात है.’
ऐसे नेताओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है. कैराना से भाजपा सांसद रहे हुकुम सिंह मानते थे, ‘बलात्कार मुस्लिम लड़के करते हैं. आज तक किसी हिंदू ने लड़की के साथ बलात्कार नहीं किया.’
बलात्कार के मामले में पीड़ित महिलाओं के चरित्र पर सवाल उठाना बेहद आम है और देश के नेता इससे अछूते नहीं हैं.
2018 के जालंधर के चर्चित नन रेप मामले, जहां एक के बाद एक कई ननों ने बिशप पर रेप के आरोप लगाए, में केरल के निर्दलीय विधायक पीसी जॉर्ज ने इस बारे में खुलासा करने वाली नन को ही वेश्या बता दिया था.
बिशप के समर्थन में उन्होंने कहा था, ‘इस बात में किसी को शक नहीं है कि नन वेश्या है. 12 बार उसने एंजॉय किया तो 13वीं बार यह बलात्कार कैसे हो गया? उसने पहली बार ही शिकायत क्यों नहीं की?’
बलात्कार: एक ‘छोटी-सी’ बात
महिलाओं के शरीर के साथ मन पर गहरा घाव देने वाली कोई बर्बरता नेताओं को अक्सर ‘छोटी-सी बात’ नजर आयी है.
2014 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने निर्भया कांड के संदर्भ में कहा था, ‘दिल्ली में एक छोटी सी दुष्कर्म की घटना को दुनियाभर में इतना प्रचारित किया गया कि वैश्विक पर्यटन के क्षेत्र में देश को अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा.’
जम्मू कश्मीर के चर्चित कठुआ गैंगरेप और हत्या मामले पर राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे कविंदर गुप्ता ने घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ‘यह एक छोटी से बात है… हमें इसे इतना ज्यादा भाव नहीं देना चाहिए.’
2018 में ही केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने कहा था, ‘इतने बड़े देश में एक-दो घटनाएं हो जाए तो बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए.’
एक अन्य केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने पत्रकारों से बलात्कार पर बात करते हुए कहा था, ‘एक-दो घटनाएं हुई होंगी. उन पर कार्रवाई हो रही है, इसमें कौन-सी बड़ी बात है.’
बलात्कार को लेकर ऐसी ही बेतुकी सोच का परिचय साल 2015 में तब मिला था, जब कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री रहे केएस ईश्वरप्पा से विपक्षी नेता होने के नाते एक प्रेस वार्ता के दौरान महिला पत्रकार ने उनसे बलात्कार पर सवाल किया, जिस पर उन्होंने जवाब दिया था, ‘आप एक महिला हैं और इस वक्त यहां मौजूद हैं. कोई खींचकर आपका रेप कर दे तो इसमें विपक्ष क्या करेगा?’
इस तरह की बेतुकी बयानबाजी के बीच हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने बलात्कार की समस्या का हल कम उम्र में शादी करने को बताया था.
महिला नेता भी पीछे नहीं
इस संबंध में सिर्फ पुरुष नेता ही नहीं, महिला नेताओं के बयान भी संवेदनहीन और विवादस्पद नजर आए हैं.
कठुआ कांड पर भाजपा सांसद और पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी यह कहती नजर आईं, ‘केंद्र पर आरोप लगाने की यह कांग्रेस की योजना है. पहले अल्पसंखयक, फिर दलित-दलित और अब महिला-महिला चिल्ला रहे हैं.’
इसी घटना को वर्तमान भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने बलात्कार मानने से ही इनकार कर दिया था. उनका कहना था कि यह राजनीतिक साजिश है. बच्ची की हत्या हुई है लेकिन बलात्कार नहीं हुआ है.
हरियाणा की भाजपा नेता और महिला मोर्चे की प्रदेशाध्यक्ष निर्मल बैरागी ने राज्य में बढ़ती बलात्कार की घटनाओं पर उन्होंने कहा था, ‘संसार के सृजन के समय से ही बलात्कार होते हैं.’
बसपा प्रमुख मायावती के उस मौन का जिक्र भी यहां जरूरी हो जाता है जब यूपी भाजपा उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने उन पर विवादित टिप्पणी की और इसके बदले में बसपा कार्यकर्ता उनकी बहन और बेटी को सामने पेश करने की चुनौती देते नजर आए.
मायावती बस यह कहकर रह गईं कि उनके खिलाफ हुई टिप्पणी से गुस्साकर बसपा कार्यकर्ताओं ने मांं-बेटी के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया.
दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस सबके बाद भी ऐसे नेता दिन-ब-दिन सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं. न तो उनकी पार्टी और न ही जनता उन्हें सबक सिखाती है.
क्या समाज और राजनीति को बलात्कार की घटनाओं से कोई खास फर्क नहीं पड़ता? एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के आंकड़े तो यही इशारा करतेे हैं.
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान लोकसभा में 19 सांसदों पर महिलाओं पर अत्याचार से जुड़े, तो तीन सांसदों पर बलात्कार से जुड़े मामले दर्ज हैं.
गौरतलब है कि हैदराबाद की घटना पर सोमवार को संसद में चर्चा हो रही थी, जब उसी संसद में खुद ऐसे आरोपों का सामना कर रहे 22 सांसद हैं, तब क्या ऐसी चर्चाओं के परिणाम सकारात्मक और सुखद निकलेंगे?
हमारे राजनीतिक दलों ने ही इन्हें संसद में भेजा है. इसके पीछे तर्क हो सकता है कि उन पर आरोप साबित नहीं हुए हैं. लेकिन, आज जब वे सांसद हैं तो क्या अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके आरोप साबित होने देंगे?
उन्नाव गैंगरेप में कुलदीप सेंगर मामले दिख ही चुका है कि किस तरह इस ‘प्रभाव का इस्तेमाल’ किया जाता है. इसलिए अगर राजनीति महिलाओं की सुरक्षा को लेकर वास्तव में गंभीर होती तो बलात्कारी चुनाव लड़ ही नहीं पाते.
इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों और राजनेताओं का पाखंड समझना है तो एक माकूल उदाहरण राजस्थान विधानसभा चुनावों का भी है.
तब एक तरफ तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक अखबार को इंटरव्यू देते हुए महिला सुरक्षा की बात कर रहे थे, उसी दौरान भंवरी देवी कांड के आरोपियों महिपाल सिंह मदेरणा और मलखान विश्नोई के परिजनों को पार्टी चुनाव लड़ा रही थी.
भाजपा एक वक्त नाबालिग से बलात्कार के आरोपी अपने विधायक कुलदीप सेंगर के बचाव में उतर आई थी. सेंगर का पार्टी से निष्कासन भी हुआ तो लंबी मीडिया ट्रायल के बाद.
बिहार में लालू यादव की पार्टी राजद से विधायक राजवल्लभ दुष्कर्म में दोषी साबित हुए, फिर भी पार्टी ने उनकी पत्नी को लोकसभा चुनाव लड़ा दिया.
हर पार्टी का यही हाल है. खुद विचार कीजिए कि क्या ऐसे सियासतदां बलात्कार रोकथाम पर कोई कड़ा फैसला ले सकते हैं? महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई कानून बना सकते हैं?
निर्भया कांड से लेकर हैदराबाद कांड तक तस्वीर न बदलने का कारण सिर्फ सियासत का यह शर्मनाक चेहरा ही है.
जहां चुनाव में अपनी विरोधी महिला उम्मीदवार पर अशोभनीय टिप्पणी करने वाले आजम खान मौजूद हैं. जहां एक ऐसा नेता सर्वश्रेष्ठ सांसद का खिताब पा लेता है जो महिलाओं को परकटी बताकर आरक्षण न दिए जाने की वकालत करता हो, एक राज्य की मुख्यमंत्री को मोटी कह देता हो, वोट की इज्जत को बेटी की इज्जत से बढ़कर बताता हो और महिलाओं का पीछा करने व घूरने को अपराध की श्रेणी में रखने के प्रावधान का विरोध करता हो. बात शरद यादव की हो रही है.
जब संसद में शरद यादव दक्षिण भारतीय महिलाओं की शारीरिक बनावट हाथों के इशारों से समझाते हुए कहते हों, ‘दक्षिण भारत की महिला जितनी खूबसूरत होती है… जितना उसकी बॉडी देखने में…’ और इस पर संसद के अन्य सदस्य ठहाके मारकर हंसते हों, तब आप कल्पना भी कैसे कर सकते हैं कि इस देश में महिलाओं की अस्मिता और गरिमा को इस देश की सियासत बचा सकती है!
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)