बिहार के पूर्वी चंपारन जिला मुख्यालय मोतिहारी में बंद पड़ी चीनी मिल के मजदूर करीब 134 महीने की सैलरी और किसानों को गन्ने का बकाया भुगतान दिलाने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
बिहार के पूर्वी चंपारन ज़िला मुख्यालय मोतिहारी में बंद पड़ी चीनी मिल के मज़दूर करीब 134 महीने के वेतन और किसानों को गन्ने का बकाया भुगतान दिलाने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
बिहार समेत पूरे देश में इन दिनों चंपारन सत्याग्रह शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है, लेकिन उसी चंपारन ज़िले के मज़दूर और किसान जंतर मंतर पर अपने हक के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
मोतिहारी के इस मिल पर करीब 7000 किसानों और 600 मज़दूरों का पैसा बकाया है. इस मुद्दे को लेकर 10 अप्रैल को दो मज़दूर- नरेश श्रीवास्तव और सूरज बैठा ने आत्मदाह कर लिया था. दोनों की मौत हो गई थी.
अब उनके साथी मज़दूर इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने, पीड़ित परिवारों को उचित मुआवज़ा दिलवाने, तकरीबन 135 महीने की मज़दूरी और किसानों को गन्ने का बकाया भुगतान दिलाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं.
प्रदर्शन कर रहे मजदूर संघ के संयुक्त मंत्री विनोद सिंह बताते हैं, ‘नरेश और सूरज के आत्मदाह से पहले हमने इसकी लिखित चेतावनी बिहार सरकार को दी थी, लेकिन सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं किया. यही नहीं घटना के बाद पुलिस आई और उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़े.’
उन्होंने आगे कहा, ‘चीनी मिल 2002 से ठीक तरीके से नहीं चल रही है. हमारी करीब 135 महीने का वेतन नहीं मिला है लेकिन चीनी मिल मालिक, भूमाफिया, प्रशासन और पुलिस के बीच साठ-गांठ होने के कारण हम पर ही मुक़दमा कर दिया गया है. हमारी प्रताड़ना की परवाह किसी को नहीं है.’
ग़ौरतलब है कि आत्मदाह मामले में पूर्वी चंपारन द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी में कुल 29 लोगों को नामज़द आरोपी, जबकि 125 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है. इसमें चीनी मिल मालिक विजय नोपानी और मिल प्रबंधक आरपी सिंह नामज़द आरोपी हैं.
मोतिहारी स्थित हनुमान चीनी मिल के सेवानिवृत कर्मचारी विपिन बिहारी तिवारी इस पूरे मामले में बिहार सरकार की आलोचना करते हैं. वे कहते हैं, ‘बिहार सरकार किसी राक्षस की तरह हम पर टूट पड़ी है, इसलिए हम दिल्ली आने के लिए मजबूर हुए हैं. बिहार सरकार अगर ठीक तरीके से काम करती और उसकी मिल मालिक के साथ मिलीभगत नहीं होती तो हमारे दो साथियों को आत्मदाह नहीं करना पड़ता.’
वे आगे कहते हैं, ‘हमने आमरण अनशन और आत्मदाह की चेतावनी पहले ही दी थी, लेकिन सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. जब हमारे साथियों ने आत्मदाह कर लिया तो सरकार ने सही तरीके से इलाज नहीं कराया जिसके चलते उनकी मौत हो गई है. अब इस मामले में सरकार ने खुद का बचाव करने के लिए हमारे ही ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करा दी है.’
बहुत सारे प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि जब वो जंतर मंतर प्रदर्शन के लिए आ रहे थे तो रेलवे स्टेशन पर उन्हें रोकने की कोशिश प्रशासन द्वारा की गई. सूरज बैठा की पत्नी माया देवी ने बताया, ‘बुधवार को मेरे साथ कुछ मज़दूरों को ट्रेन में नहीं बैठने दिया गया. इसलिए मैं अपने बेटे के साथ दो जून को दिल्ली पहुंची, जबकि यह प्रदर्शन एक जून से शुरू हो गया था. यहां पर जितने लोग बैठे हुए हैं ये सब पुलिस से छिपकर दिल्ली पहुंचे हैं.’
किसानों और मज़दूरों का जंतर मंतर पर यह प्रदर्शन बंधुआ मुक्ति मोर्चा के बैनर तले हो रहा है. ग़ौरतलब है कि इस मसले पर मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और जदयू नेता स्वामी अग्निवेश के नेतृत्व में एक टीम ने बीते एक और दो मई को घटनास्थल का निरीक्षण किया था और इस हादसे को लेकर स्थानीय लोगों से बातचीत करने के बाद एक जांच रिपोर्ट तैयार की थी. लेकिन वह यह जांच रिपोर्ट बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नहीं सौंप पाए थे.
स्वामी अग्निवेश ने बताया, ‘हम लोगों ने इस बाबत तैयार की गई जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सौंपने के लिए उनसे समय मांगा था, पर उनकी व्यस्तता के कारण समय नहीं मिल पाया. इस मसले पर मुख्यमंत्री से फोन पर हुई बात के दौरान उन्हें इस जांच रिपोर्ट के बारे में बताया गया. रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय भेज दी गई है.’
स्वामी अग्निवेश ने आगे बताया, ‘यह राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित हत्याकांड है. केंद्र सरकार भी पूरी तरह से इसमें लिप्त है. सरकार चीनी मिल मालिक को बचाकर 10 करोड़ रुपये के घोटाले को छिपाने की कोशिश कर रही है. मज़दूरों को पिछले 15 वर्षों से भुगतान राशि नहीं मिली है, इससे वे भुखमरी के कगार पर आ गए. जब तक इन मांगों को माना नहीं जाएगा, अनिश्चितकालीन धरना जारी रहेगा.’
वहीं जंतर-मंतर पर इन मज़दूरों का साथ देने आए स्वराज इंडिया संगठन के संस्थापक सदस्य योगेंद्र यादव ने कहा, ‘चंपारन से निलहे (नील की खेती करने वाले ज़मींदार) चले गए और अब मिलहे (मिल मालिक) आ गए. स्वतंत्र भारत में इस तरह की औपनिवेशिक घटनाएं हो ये तो हमारी आज़ादी पर धब्बा है. हमारे स्वतंत्रता आंदोलन पर धब्बा है.’
यादव कहते हैं, ‘यह महात्मा गांधी और चंपारन के नाम पर धब्बा है. ऐसे में एक न्यूनतम मांग लेकर मज़दूर धरने पर बैठे हैं ताकि मामले की सीबीआई जांच हो. इन विधवाओं के साथ न्याय किया जाए. इस पूरी घटना में जितने भी अफसर दोषी हैं उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए. मिलें जिस तरह से मज़दूरों और किसानों का पैसा दबाकर बैठी हैं उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए.’
फिलहाल मज़दूरों के जंतर मंतर पर चल रहे प्रदर्शन के बाद दो जून की शाम को नीतीश सरकार ने हनुमान चीनी मिल के दो कर्मचारियों द्वारा आत्मदाह करने के मामले की जांच अब सीबीआई से कराए जाने की अनुशंसा कर दी है.