कांग्रेस और माकपा समेत कई दलों की ओर से कहा गया है कि वह इस विधेयक का पुरज़ोर विरोध करेंगे. नागरिकता संशोधन विधेयक में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएब) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ राजधानी नई दिल्ली के जंतर मंतर पर विभिन्न समूहों के बैनर तले आयोजित प्रदर्शन में बड़ी संख्या में छात्र एकजुट हुए.
‘यूनाइटेड अगेन्स्ट हेट’ नामक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा आयोजित प्रदर्शन में ‘रिजेक्ट सीएबी! बॉयकॉट एनआरसी!’ और ‘इंडिया नीड जॉब्स, एजुकेशन एंड हेल्थकेयर, नॉट नेशन वाइड एनआरसी’ के पोस्टर थामे प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी.
जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी समेत विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों और आईसा के सदस्यों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया.
जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष एन. साई बालाजी ने कहा, ‘आज, लोगों ने एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध का आह्वान किया क्योंकि यह संविधान के खिलाफ, गरीब-विरोधी, अल्पसंख्यक-विरोधी है. इस सरकार ने एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक के नाम से नफरत फैलाने का एक तरीका चुना है.’
बालाजी ने कहा, ‘जेएनयू के लगभग 300 छात्र यहां आए हैं. हमने रविवार को आंबेडकर भवन में संयुक्त विरोध प्रदर्शन का भी आह्वान किया है.’
मालूम हो कि नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में उत्तर पूर्व के विभिन्न राज्यों में भी लगातार विरोध प्रदर्शन चल रह हैं. असम के डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ तथा कॉटन स्टेट यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ ने मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल सहित सत्तारूढ़ भाजपा, आरएसएस के सदस्यों तथा विधेयक का समर्थन करने वालों को इन दोनों विश्वविद्यालयों के परिसर में प्रवेश पर अनिश्चितकालीन प्रतिबंध लगा रखा है.
इन विरोधों के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सोमवार को लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश करेंगे, जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
लोकसभा में सोमवार को होने वाले कार्यों की सूची के मुताबिक गृह मंत्री दोपहर में विधेयक पेश करेंगे, जिसमें छह दशक पुराने नागरिकता कानून में संशोधन की बात है और इसके बाद इस पर चर्चा होगी और इसे पारित कराया जाएगा.
इस विधेयक के कारण पूर्वोत्तर के राज्यों में व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं और काफी संख्या में लोग तथा संगठन विधेयक का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे असम समझौता 1985 के प्रावधान निरस्त हो जाएंगे, जिसमें बिना धार्मिक भेदभाव के अवैध शरणार्थियों को वापस भेजे जाने की अंतिम तिथि 24 मार्च 1971 तय है.
नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स यूनियन (एनईएसयू) ने 10 दिसंबर को 11 घंटे के पूर्वोत्तर बंद का आह्वान किया.
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जाएगा, बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी.
यह विधेयक 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का चुनावी वादा था. भाजपा नीत राजग सरकार ने अपने पूर्ववर्ती कार्यकाल में इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया था और वहां पारित करा लिया था. लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रदर्शन की आशंका से उसने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया. पिछली लोकसभा के भंग होने के बाद विधेयक की मियाद भी खत्म हो गयी.
कांग्रेस समेत कई दल करेंगे विरोध
कांग्रेस, माकपा समेत कई दल संसद में नागरिकता (संशोधन) विधेयक का पुरजोर विरोध करेंगे. कांग्रेस का कहना है कि यह विधेयक देश के संविधान और पार्टी के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ है.
लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने रविवार को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के 10 जनपथ आवास पर कांग्रेस संसदीय रणनीतिक समूह की बैठक के बाद यह बयान दिया.
चौधरी के अलावा राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, लोकसभा में मुख्य सचेतक कोडिकुन्नील सुरेश और सचेतक गौरव गोगोई सहित अन्य ने बैठक में हिस्सा लिया.
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने रविवार को कहा कि संसद में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश किए जाने पर पार्टी इसमें दो संशोधन लाएगी क्योंकि वह विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध करती है.
उन्होंने कहा, ‘हम धर्म के आधार पर, वह भी तीन देशों के लोगों को नागरिकता देने वाले नागरिकता (संशोधन) विधेयक का पुरजोर विरोध करते हैं.’
उन्होंने कहा कि भारत समान रूप से सभी धर्मों का घर है और सभी धर्मों के लोगों के साथ अवश्य ही समान व्यवहार होना चाहिए.
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कहा है कि पंजाब इस विधेयक को मंजूरी नहीं देगा. उन्होंने कहा कि पंजाब किसी हालत में नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूर नहीं करेगा, क्योंकि यह भी एनआरसी की तरह लोकतंत्र की भावना के विपरीत है.
मालूम हो कि तमाम विरोधों के बाद भी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते चार दिसंबर को नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी थी. इससे पहले यह विधेयक इस साल जनवरी में लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था.
विधेयक लाए जाने के बाद से असम सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस विधेयक का जोरदार विरोध हो रहा है. पूर्वोत्तर में कई संगठनों ने इस विधेयक का यह दावा करते हुए विरोध किया है कि वह क्षेत्र के मूलनिवासियों के अधिकारों को कमतर कर देगा.
हालांकि अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम के ‘इनर लाइन परमिट’ (आईएलपी) क्षेत्रों और पूर्वोत्तर की छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों को नागरिकता संशोधन विधेयक से बाहर रखा गया है.
इसका मतलब यह है कि नागरिकता संशोधन विधेयक का लाभ उठाने वालों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी लेकिन वे अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम में बस नहीं पाएंगे. मौजूदा भारतीय नागरिकों पर भी यह प्रतिबंध लागू रहेगा.
कहा जा रहा है कि असम, मेघालय और त्रिपुरा का एक बड़ा हिस्सा छठी अनुसूची क्षेत्रों के तहत आने की वजह से इस विवादास्पद विधेयक के दायरे से बाहर रहेगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)