केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बीते शुक्रवार को संसद में कहा था कि किसी भी भारतीय अध्ययन से नहीं दिखता कि प्रदूषण का लोगों के जीवन और स्वास्थ्य पर असर पड़ता है.
नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा हाल ही में प्रदूषण के प्रभाव के संबंध में दिए गए विवादास्पद बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा कि काश प्रदूषण की वजह से लोगों की मौत न होती, लेकिन अफसोस की ऐसा ही होता है.
जावड़ेकर ने बीते शुक्रवार को संसद में कहा था कि किसी भी भारतीय अध्ययन से नहीं दिखता कि प्रदूषण का लोगों के जीवन और स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. उनके इस बयान की देश भर के पर्यावरण विशेषज्ञों ने कड़ी आलोचना की और इसे बिना सोचा-समझा बयान करार दिया.
स्पेन के मैड्रिड चल रहे कॉप 25 में डब्ल्यूएचओ के निदेशक (पब्लिक हेल्थ) डॉ. मारिया नीरा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि इस बात के बेहद पुख्ता वैज्ञानिक साक्ष्य हैं जो ये दर्शाते हैं कि प्रदूषण की वजह से स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है.
जावड़ेकर के बयान पर उन्होंने कहा, ‘काश ऐसा होता की इसकी वजह से लोग न मरते, लेकिन अफसोस कि प्रदूषण से लोग मरते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘प्रभावी कदम उठाना बेहद जरूरी हो गया है क्योंकि कि भारत के कई शहरों में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ गया है और बिल्कुल इसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है. इसके प्रमाण मौजूद हैं, विशेषज्ञता भी है और कार्ययोजना भी है.’
डॉ नीरा ने भारत सरकार से गुजारिश की कि वे वायु प्रदूषण को रोकने और इससे प्रभावित लोगों की मदद की दिशा में जल्द प्रभावी कदम उठाएंगे.
इसके अलावा डब्ल्यूएचओ के कोऑर्डिनेटर डायर्मिड कैम्पबेल-लेंड्रम ने मंत्री के बयान पर कहा, ‘हमने विश्व के हर हिस्से से प्रदूषण की वजह से स्वास्थ्य पर पड़ने वालें प्रभावों पर तैयार किए गए सैकड़ों हजारों अध्ययनों का आकलन किया है. हमें अभी तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं मिला है जो ये दिखाता हो कि प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव नहीं पड़ता है.’
साल 2015 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में खुद जावड़ेकर ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट द्वारा दिल्ली में बच्चों पर प्रदूषण के प्रभाव पर तैयार की गई रिपोर्ट का हवाला दिया था.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषण की वजह से स्कूल जाने वाले दिल्ली के 43.5 फीसदी बच्चों के फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी आती है. जावड़ेकर ने कहा था, ‘पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) प्रदूषण की मात्रा बढ़ने से श्वसन और हृदय संबंधी कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.’
लेकिन इस बार लोकसभा में एक सवाल के जवाब में जावड़ेकर ने कहा कि भारत में किसी भी अध्ययन से पता नहीं चलता है कि प्रदूषण का संबंध जीवन के छोटा होने से है. मंत्री ने सदन में कहा, ‘हमें लोगों के बीच भय का माहौल नहीं बनाना चाहिए.’
विश्व स्वास्थ्य संगठन, लांसेट, विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र तथा अन्य संगठनों की तरफ से कराए गए कई अध्ययनों से पता चलता है कि देश में प्रदूषण के कारण मौतें हो रही हैं.
लांसेट की तरफ से पिछले वर्ष कराए गए अध्ययन के मुताबिक भारत में 2017 में आठ में से एक मौत प्रदूषण के कारण हुई. सीएसई की तरफ से कराए गए एक अन्य अध्ययन में पता चला कि भारत में प्रति वर्ष वायु प्रदूषण के कारण पांच वर्ष से कम उम्र के एक लाख बच्चों की मौत हो जाती है.