निजता विधेयक बेहद खतरनाक, यह देश को ‘ऑरवेलियन राज्य’ में बदल सकता है: जस्टिस श्रीकृष्णा

जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के पहले मसौदे को तैयार किया गया था. हालांकि सरकार ने इसमें कई संशोधन कर दिए हैं, जिसके तहत केंद्र को ये अधिकार मिलता है कि वे ‘देश की संप्रभुता और अखंडता के हित में’ किसी सरकारी एजेंसी को निजता नियमों के दायरे से बाहर रख सकते हैं.

जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के पहले मसौदे को तैयार किया गया था. हालांकि सरकार ने इसमें कई संशोधन कर दिए हैं, जिसके तहत केंद्र को ये अधिकार मिलता है कि वे ‘देश की संप्रभुता और अखंडता के हित में’ किसी सरकारी एजेंसी को निजता नियमों के दायरे से बाहर रख सकते हैं.

Justice B.N. Srikirishna. Photo Facebook Rizvi Institute of Management Studies and Research
जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा. (फोटो साभार: फेसबुक/Rizvi Institute of Management Studies and Research)

नई दिल्ली: भारत के व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक के पहले मसौदे को तैयार करने वाले पैनल के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) बीएन श्रीकृष्णा ने विधेयक के अंतिम संस्करण की आलोचना करते हुए इसे ‘खतरनाक’ बताया और कहा कि यह कानून देश को ‘ऑरवेलियन राज्य’ में बदल सकता है. इस विधेयक को निजता विधेयक भी कहा जाता है.

‘ऑरवेलियन’ उस स्थिति, विचार या सामाजिक स्थिति को कहते हैं जो कि एक स्वतंत्र और खुले समाज के कल्याण के लिए विनाशकारी है. लेखक जॉर्ज ऑरवेल की प्रसिद्ध किताब ‘1984’ के आधार पर ये विशेषण तैयार किया गया है.

इकोनॉमिक टाइम्स को की गई एक टिप्पणी में, सेवानिवृत्त जज ने उल्लेख किया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने मूल मसौदे में मौजूद सुरक्षा उपायों को हटा दिया है.

बीएन श्रीकृष्णा ने कहा, ‘उन्होंने सुरक्षा उपायों को हटा दिया है. यह सबसे खतरनाक है. सरकार किसी भी समय संप्रभुता या सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर निजी डेटा या सरकारी एजेंसी के डेटा का उपयोग कर सकती है. इसके खतरनाक प्रभाव हो सकते हैं.’

इस विधेयक के अंतिम संस्करण को इसी हफ्ते लोकसभा में पेश किया गया और बाद में इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया. यह विधेयक केंद्र को ये अधिकार देता है कि वे ‘देश की संप्रभुता और अखंडता के हित में’ किसी सरकारी एजेंसी को निजता नियमों के दायरे से बाहर रख सकते हैं.

उदाहरण के तौर पर जस्टिस श्रीकृष्णा समिति ने ड्राफ्ट विधेयक में कहा था कि किसी को भी छूट तभी दिया जाना चाहिए जब उसे विशेष कानून का सहारा दिया गया हो.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, ‘राज्य की सुरक्षा के हितों में व्यक्तिगत डेटा का प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) करने की अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी जब तक कि यह कानून के अनुसार अधिकृत न हो, और संसद द्वारा बनाए गए और इस तरह के कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार हो.’

रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘किसी भी अपराध या कानून के किसी अन्य उल्लंघन को रोकने, पता लगाने, जांच और मुकदमा चलाने के हितों में व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण की अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि यह संसद और राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून द्वारा अधिकृत न हो और इसके लिए आवश्यक हो.’

हालांकि सरकार ने इन बिंदुओं पर संशोधन करके इसे बेहद कमजोर कर दिया है.

विधेयक के अंतिम संस्करण के मुताबिक, ‘जहां केंद्र सरकार संतुष्ट है कि इसमें भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था का हित है या भारत की संप्रभुता और अखंडता से संबंधित किसी भी संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था का मामला है तो ऐसी स्थिति में निर्देश दिया जा सकता है कि इस अधिनियम के सभी या कोई भी प्रावधान ऐसे व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के संबंध में सरकार की किसी भी एजेंसी पर लागू नहीं होंगे.’

जस्टिस श्रीकृष्णा ने कहा कि ऐसा प्रावधानों को हटाया जाना चाहिए. रिटायर्ड जज ने कहा, ‘संयुक्त प्रवर समिति के पास इसमें बदलाव करने का अधिकार है. अगर वे मुझे बुलाते हैं तो मैं उन्हें बताउंगा कि ये बकवास है. मेरा मानना है कि सरकारी पहुंच पर न्यायिक निगरानी होनी चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘यह विधेयक को कमजोर कर देगा और भारत को ऑरवेलियन राज्य में तब्दील कर देगा.’