उर्दू की वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शिरीन दलवी ने नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में महाराष्ट्र राज्य उर्दू साहित्य अकादमी की ओर से मिला सम्मान लौटा दिया है.
नागरिकता संशोधन विधेयक के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को जो गै़रक़ानूनी तरीक़े से भारत में रहते हैं, भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.
हालांकि इस विधेयक में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है, जबकि इस मुल्क में रहते हुए नागरिकता हासिल करने का मुसलमानों का भी उतना ही हक़ है. देश के संविधान में धारा 14 के तहत धर्म या आस्था की बुनियाद पर दो धर्मों के बीच फ़र्क़ नहीं किया जा सकता, बिल पारित करने से पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए था.
इस बिल के मंज़ूर किए जाने से देश के लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर सवालिया निशान खड़ा होता है. इस विधेयक में ये प्रस्ताव पेश किया गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग अगर छह सालों से भारत में रह रहे हैं, तो वो भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है, मगर यही सुविधा मुसलमान शरणार्थियों के लिए नहीं है.
इस बिल की एक अहम बात ये है कि छह धर्मों के लोगों को देश से बाहर करने के अनुच्छेद को भी ख़त्म करने का प्रावधान है, मगर इसमें भी मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है. नागरिकता संशोधन विधेयक को जब से पेश किया गया है, देश के मुसलमानों में बेचैनी पाई जा रही थी और अब इस बेचैनी में इज़ाफ़ा होने के साथ-साथ लोग अपना विरोध भी दर्ज करवा रहे हैं.
ख़बरों में जैसा कि हम पढ़ते और सुनते आए हैं इस बिल के पास होने के बाद सभी मुस्लिम शरणार्थियों को गै़रक़ानूनी शरणार्थी घोषित किया जाएगा. मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ गै़रक़ानूनी तरीके से आए लोगों को उनके मुल्क वापिस भेज दिया जाएगा या हिरासत में लिया जा सकता है.
ऐसी जानकारियां देश के मुसलमानों को बेचैन कर रही हैं.
ग़ैर-मुस्लिम शरणार्थी को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए इस देश में 11 साल की अवधि गुज़ारना लाज़िम था अब ग़ैर मुस्लिम मुहाजिर छह साल का वक़्त भारत में गुज़ारने के बाद यहां की नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदन कर सकता है.
ये अधिनियम देश को धर्म की बुनियाद पर बांटने का काम करेगा जो कि बराबरी के क़ानून के ख़िलाफ़ है.
नार्थ ईस्ट के राज्यों में इस बिल का सख्त विरोध हो रहा है, वहां के लोगों का मानना है कि बांग्लादेश से ज़्यादातर हिंदू आकर असम, अरुणाचल, मणिपुर जैसे राज्यों में बसे हैं जिससे इन राज्यों का समाजी माहौल बिगड़ रहा है.
मुसलमान इस देश में अल्पसंख्यक होकर भी दूसरी बड़ी बहुसंख्यक समुदाय है, मगर अब जो सूरत-ए-हाल है इससे ये होगा कि पड़ोसी देशों के हिंदू शरणार्थी को इस देश की नागरिकता दी जाएगी और मुसलमानों के लिए ये दरवाज़ा बंद है और जो गै़रक़ानूनी शरणार्थी मुसलमान हैं, उन्हें देश निकाला दिया जाएगा. इस तरह इस मुल्क में आबादी का अनुपात भी बिगड़ सकता है और मुसलमान इस देश में अल्पसंख्यक हो कर रह जाऐंगे.
आज इस देश में मुसलमानों की इतनी बड़ी आबादी के बावजूद वो किसी भी विभाग में आटे में नमक के बराबर नज़र आते हैं. हिंदुस्तानी सियासत में भी मुसलमानों की संख्या नहीं के बराबर है.
इस तरह इस मुल्क में रहने वाले मुसलमानों के साथ नाइंसाफ़ी और गैरबराबरी का मुआमला भी है. इस पर देश के कोने-कोने से विरोध दर्ज किया जा रहा है और विरोध दर्ज किया जाना भी चाहिए.
नागरिकता संशोधन विधेयक को जिस अंदाज़ से पेश किया गया और पारित किया गया, उसमें मुसलमानों को सरासर नज़रअंदाज किया गया है. ये देश गंगा जमुनी संस्कृति का मानने वाला है, यहां धर्म की बुनियाद पर फर्क नहीं किया जा सकता मगर इस बिल से एक ही समुदाय के साथ फ़र्क़ किया जा रहा है. सेकुलर मिज़ाज के लोग इस मुल्क की बेहतरी और गंगा जमुनी तहज़ीब की ख़ातिर ज़रूर इस पर ग़ौर करेंगे.
मुझे इस ख़बर से बेहद सदमा पहुंचा है कि बीजेपी सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक पास किया है, ये देश की अवाम के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है, मैं इस ग़ैर-इंसानी क़ानून के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज करवाते हुए, महाराष्ट्र राज्य सरकार की साहित्य अकादमी की तरफ से दिए जाने वाले अवार्ड को लौटा रही हूं.
ये विधेयक हमारे समुदाय के साथ नाइंसाफ़ी और नाबराबरी का परिचायक है. मैं ये अवार्ड वापस लौटा कर अपने समुदाय, सेकुलर अवाम और लोकतंत्र के हक़ के लिए उठने वाली आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ मिला रही हूं. हम सबको इस विरोध में शामिल हो कर मुल्क की गंगा जमुनी तहज़ीब की रक्षा करनी चाहिए.