83 साल के मुज्तबा हुसैन ने कहा कि हमारा लोकतंत्र बिखर रहा है. अब कोई सिस्टम नहीं है, किसी को सुबह सात बजे शपथ दिलाई जा रही है, सरकारें रात में बन रही हैं. देश भर में डर का माहौल है.
हैदराबाद: नागरिकता कानून को लेकर देश भर में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों के बीच उर्दू लेखक और व्यंग्यकार मुज्तबा हुसैन ने उनको मिला पद्म सम्मान लौटाने की घोषणा की है और कहा है कि वह देश के मौजूदा हालात से खुश नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ‘पहले नेता राजनेता होते थे. अब ऐसा नहीं है.’ पुरस्कार लौटाने की वजह पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘मैं आज के हालात से खुश नहीं हूं. एक नागरिक के तौर पर मैं देश में खुश नहीं हूं. भीड़ लोगों की हत्या कर रही है, बलात्कार हो रहे हैं, आपराधिक गतिविधियां हर रोज बढ़ रही हैं.’
Urdu author Mujtaba Hussain to return Padma Shri Award, says, "Our democracy is being shattered. There is no system prevailing now, someone is being administered oath at 7am in the morning, govts are being made during the night, there is an atmosphere of fear in the country". pic.twitter.com/6T3HtevNv1
— ANI (@ANI) December 18, 2019
उर्दू साहित्य में योगदान के लिए साल 2007 में देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजे गए मुज्तबा हुसैन ने कहा कि जिस लोकतंत्र के लिए हम लड़े थे उस पर हमला हो रहा है और सरकार यह कर रही है. यही वजह है कि मैं खुद को सरकार से जोड़ना नहीं चाहता.
समाचार एजेंसी एनएनआई से बात करते हुए हुसैन ने कहा, ‘हमारा लोकतंत्र बिखर रहा है. अब कोई सिस्टम नहीं है, किसी को सुबह सात बजे शपथ दिलाई जा रही है, सरकारें रात में बन रही हैं. देश भर में डर का माहौल है.’
हुसैन ने आरोप लगाया कि आपराधिक गतिविधियां दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही हैं और लोकतंत्र खतरे में है. उन्होंने बुधवार को समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद और डॉ. आंबेडकर ने जो लोकतांत्रिक ताना-बाना बुना था, उसे तोड़ा जा रहा है.’
83 साल के हुसैन दर्जनों किताबें लिख चुके हैं और उनकी किताबें कई राज्यों के उर्दू पाठ्यक्रमों में शामिल हैं. भारतीय महाद्वीप में वे बेहद लोकप्रिय लेखक हैं और उनके लिखे हुए का हिंदी, अंग्रेजी समेत कई अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया है.
हुसैन ने कहा कि कई लोगों की आवाज दबाई जा रही है, कई को मारा जा रहा है और गरीब लोग हंसने की स्थिति में नहीं हैं.
अमर उजाला के अनुसार उन्होंने कहा, ‘देश में अशांति, भय और नफरत की जो आग भड़काई जा रही है, वह वास्तव में परेशान करने वाली है. जिस लोकतंत्र के लिए हमने इतना संघर्ष किया, तमाम दर्द सहें, जिस तरह से इसे बर्बाद किया जा रहा है वह निंदनीय है. यह देखते हुए मैं किसी सरकारी पुरस्कार को अपने अधिकार में नहीं रखना चाहता हूं.’
उन्होंने यह भी कहा कि वे मौजूदा हालत को देखते हुए काफी चिंतित हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं 83 साल का हूं और इस देश के भविष्य को लेकर अधिक चिंतित हूं. मैं इस देश के माहौल के बारे में चिंतित हूं जो मैं अपने बच्चों और अगली पीढ़ी के लिए छोड़कर जाऊंगा.’
मालूम हो कि बीते हफ्ते उर्दू के दो लेखकों ने इसी कानून के विरोध में अपने अवॉर्ड लौटाने की घोषणा की थी. वरिष्ठ उर्दू पत्रकार और लेखक शिरीन दलवी ने महाराष्ट्र राज्य उर्दू साहित्य अकादमी की ओर से मिला सम्मान लौटा दिया था.
दलवी का कहना था कि ये विधेयक हमारे समुदाय के साथ नाइंसाफ़ी और गैर-बराबरी का परिचायक है. मैं ये अवॉर्ड वापस लौटाकर अपने समुदाय, सेकुलर अवाम और लोकतंत्र के हक़ के लिए उठने वाली आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ मिला रही हूं. हम सबको इस विरोध में शामिल हो कर मुल्क की गंगा जमुनी तहज़ीब की रक्षा करनी चाहिए.
इसी तरह उर्दू लेखक और अनुवादक याकूब यावर ने भी उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू साहित्य अकादमी से मिला सम्मान लौटाने की घोषणा की थी. यह सम्मान उन्हें पिछले साल उनके किए अनुवाद के लिए उन्हें दिया गया था.
उन्होंने द वायर को बताया था, ‘मैं नागरिकता संशोधन कानून के पारित होने से बहुत दुखी हूं. चूंकि मैं बूढ़ा हूं और प्रदर्शन करने में समर्थ नहीं हूं, तो मैंने इसके विरोध में अवॉर्ड लौटने का फैसला लिया है.’
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष रह चुके प्रोफेसर यावर ने तकरीबन 50 किताबों का अनुवाद किया है और उन्हें पिछले साल अनुवाद के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)