गायक और सामाजिक कार्यकर्ता ज़ुबीन गर्ग ने कहा कि असम का यह सामाजिक-सांस्कृतिक सौहार्द कुछ ऐसा है, जिसे भाजपा पसंद नहीं करती, इसलिए नागरिकता संशोधन क़ानून के ज़रिये वे राज्य को हिंदू-मुस्लिम और असमिया-बंगाली के बीच बांटना चाहते हैं.
गुवाहाटी: गायक ज़ुबीन गर्ग ने कहा है कि असम राज्य में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ एक क्रांति शुरू हुई है और लोग इस अनुचित विधान के खिलाफ खड़े हुए हैं और वे दबाव में झुकेंगे नहीं.
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार संशोधित नागरिकता कानून को लेकर विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर असम में कश्मीर जैसी स्थिति उत्पन्न करना चाहती है.
बॉलीवुड में गैंगस्टर फिल्म के गाने ‘या अली’ के अलावा ‘सुबह-सुबह’ और ‘जाने क्या चाहे मन बावरा’ जैसे गाने गा चुके गर्ग ने कहा, ‘हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक रहा है लेकिन इसके बावजूद सुरक्षा बलों की कार्रवाई में लोग मारे गए. यह खेदजनक है लेकिन हम असमी किसी भी दबाव में नहीं झुकेंगे. हम किसी भी कीमत पर सीएए को स्वीकार नहीं करेंगे, उसे जाना होगा.’
उन्होंने असम की स्थिति की तुलना जम्मू कश्मीर से की जहां राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त होने के बाद कर्फ्यू लगाया गया था और इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी गई थी.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, ‘सरकार हम पर हावी होने का प्रयास कर रही है. असम में कभी भी ऐसा कर्फ्यू नहीं देखा. उसके बाद उन्होंने इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी. यह तानाशाही है. वे असम में वैसी ही स्थिति उत्पन्न करना चाहते हैं जैसी उन्होंने कश्मीर में की.’
उन्होंने सवाल किया कि क्या लोग मूर्ख हैं और सीएए के मुद्दे को नहीं समझते. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोग इस आंदोलन की मुख्य शक्ति हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि लोग इसके खिलाफ आ गए हैं और क्रांति अभी शुरू ही हुई है. इस संघर्ष में समाज के सभी वर्ग एकजुट हैं. हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे, असम सरकारी प्राधिकारियों की यह तानाशाही बर्दाश्त नहीं करेगा.’
गुवाहाटी में कर्फ्यू 11 दिसंबर की शाम को लगाया गया था और इसे बीते 20 दिसंबर को गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश के बाद हटा लिया गया था, इंटरनेट सेवाओं पर उसी दिन रोक लगाई गई थी जिसे शुक्रवार सुबह बहाल कर दिया गया.
गायक एवं सामाजिक कार्यकर्ता ने पिछले वर्ष नागरिकता संशोधन विधेयक पर एक गाना ‘राजनीति नोकोरिबा बंधु’ लिखा था और यह इस आंदोलन का गाना बन गया है.
ऑफ असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) या कलाकार समुदाय द्वारा आयोजित विभिन्न प्रदर्शनों में गर्ग ने सार्वजनिक रूप से कानून की निंदा की है. प्रदर्शनकारियों ने इस कानून को ‘संविधान विरोधी, अत्यंत ध्रुवीकरण करने वाला’ बताने के साथ ही कहा कि यह ‘1985 के असम समझौते का उल्लंघन करता है.’
उन्होंने कहा, ‘समझौता स्पष्ट तौर पर कहता है कि 24 मार्च 1971 के बाद आए सभी अवैध प्रवासियों को वापस भेजा जाएगा. असम कोई डस्टबिन नहीं हो सकता जहां राजनीतिक हितों की पूर्ति के वास्ते अवैध प्रवासियों को डाला जाए.’
गायक के अनुसार, यह आंदोलन असमी लोगों द्वारा लड़ा जा रहा है और इसमें सभी आस्था या संस्कृति वाले समुदाय शामिल हैं. इसमें असमी बोलने वाले सभी शामिल हुए हैं जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बंगाली, मारवाड़ी, आदिवासी और कई अन्य शामिल हैं.’
उन्होंने कहा, ‘असम का यह सामाजिक-सांस्कृतिक सौहार्द कुछ ऐसा है जिसे भाजपा पसंद नहीं करती, इसलिए सीएए के जरिये वे राज्य को हिंदू-मुस्लिम और असमिया-बंगाली के बीच बांटना चाहते हैं.’ उन्होंने आरोप लगाया कि लेकिन हम असम को किसी की प्रयोगशाला बनने की अनुमति नहीं देंगे.
गर्ग ने कहा कि असम को 2021 में राज्य चुनाव से पहले एक राजनीतिक विकल्प की जरूरत है.
मालूम हो कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के हिंसक होने के बाद 11 दिसंबर की शाम असम में मोबाइल और ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई थीं. प्रदर्शनों में अब तक पांच लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. इसके अलावा विवादित कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर 11 दिसंबर से गुवाहाटी में लगा कर्फ्यू 17 दिसंबर को हटा लिया गया था.
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 19 दिसंबर की शाम से मोबाइल इंटरनेट सेवा बहाल करने का आदेश दिया था, जिसके बाद 20 दिसंबर की सुबह से इंटरनेट सेवाओं को बहाल कर दिया गया.
इस आदेश के खिलाफ असम में भाजपा नेतृत्व वाली सर्बानंद सोनोवाल सरकार ने पुनर्विचार याचिका भी दायर की थी, जिसे गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बीते 20 दिसंबर को खारिज कर दिया था.
मालूम हो कि बीते 11 दिसंबर को संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद से असम एवं उत्तर-पूर्व के कई हिस्सों में बड़े विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. बीते 12 दिसंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के साथ ही ये विधेयक अब कानून बन गया है.
इस विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है. नागरिकता संशोधन विधेयक में उन मुसलमानों को नागरिकता देने के दायरे से बाहर रखा गया है जो भारत में शरण लेना चाहते हैं.
पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासियों को डर है कि इन लोगों के प्रवेश से उनकी पहचान और आजीविका खतरे में पड़ सकती है. वहीं असम में रहने वाले लोगों का कहना है कि इससे असम समझौता 1985 के प्रावधान निरस्त हो जाएंगे, जिसमें बिना धार्मिक भेदभाव के अवैध शरणार्थियों को वापस भेजे जाने की अंतिम तिथि 24 मार्च 1971 तय है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)