बीएचयू के 51 प्रोफेसरों ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाकर विरोध जताया. शिक्षकों ने कहा है कि यह सांप्रदायिक आधार पर समाज को बांटने की साफ कोशिश है. फिल्मी हस्तियों ने हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की. एक पत्र जारी कर कहा गया है कि वे कथित पुलिस गोलीबारी और अत्यधिक बल प्रयोग से उत्तर प्रदेश में हुई मौतों को लेकर बेहद चिंतित हैं.
नई दिल्ली/वाराणसी: मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बीते गुरुवार को आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में ‘आतंक का राज’ है और वहां की पुलिस संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कुचलने के लिए लोगों को झूठे मामलों में फंसा रही है.
मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कानून के मुताबिक सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल ‘संदेहास्पद नागरिकों’ की पहचान करने के लिए कर सकती है और बाद में इसका इस्तेमाल एनआरसी के लिए किया जा सकता है.
🎙️ Press Conference
Movement activists and Bollywood Actors speak to the media on state repression in Uttar Pradesh.Press Club New Delhi
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उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अपने विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एनआरसी और एनपीआर पर ‘सफेद झूठ’ बोल रही है.
मंदर ने एएमयू छात्रों पर ‘पुलिस की बर्बरता’ का जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि ऐसा लगता है कि समूचे राज्य ने ‘अपने नागरिकों के एक हिस्से के खिलाफ खुला युद्ध छेड़ रखा है.’ ‘स्वराज इंडिया’ के नेता योगेंद्र यादव ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में आंतक का राज चल रहा है.’
मेरठ जाने वाले फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की सदस्य कविता कृष्णन ने आरोप लगाया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों को कुचलने के लिए पुलिस लोगों पर झूठे मामले दर्ज कर रही है.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि राज्य में पुलिस की कार्रवाई और हत्याओं के बारे में सच्चाई का पता लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच जरूरी है. वहीं उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन ने किसी भी अतिवादी या गलत कार्रवाई से इनकार किया है.
बॉलीवुड के कई कलाकारों, निर्देशकों ने यूपी के हालत और पुलिस के रवैये पर चिंता ज़ाहिर की और सरकार, न्यायपालिका से अपील की:
"नागरिकता कानून के विरोध में जो कुछ भी उत्तर प्रदेश में हो रहा है उसने हम सबको अंदर से हिला कर रख दिया है।"@ReallySwara @Mdzeeshanayyub
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कई मानवाधिकार समूहों से मिलकर बने ‘हम भारत के लोग: नागरिकता संशोधन के खिलाफ राष्ट्रीय कार्रवाई’ की ओर से बीते गुरुवार को दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन का आयोजन हुआ था. इस मौके पर इस समूह ने बीते हफ्ते नागरिकता कानून के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा एवं पुलिस बर्रबरता पर एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पेश की.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समूह ने एक बयान में ‘विरोध का बर्बरतापूर्वक दमन’ तत्काल खत्म करने और ‘पुलिस की ज्यादतियों’ की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की.
नागरिकता क़ानून के विरोध में उत्तर प्रदेश में बीते 21 दिसंबर को हुई हिंसा के बाद से 327 केस दर्ज है. अब तक 1100 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया गया, जबकि साढ़े पांच हज़ार से अधिक लोगों को एहतियातन हिरासत में लिया गया है. सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट के संबंध में 124 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर 19 हज़ार से ज़्यादा प्रोफाइल ब्लॉक किए गए.
शुक्रवार को उत्तर प्रदेश में सभी संवेदनशील स्थानों की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. प्रदर्शनों के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के 21 जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है.
बीएचयू के 51 प्रोफेसरों ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाकर विरोध जताया
उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और उससे संबद्ध कॉलेजों के 50 से ज्यादा संकाय सदस्यों ने एक बयान जारी करके विवादित संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) एवं प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की निंदा की है.
संकाय सदस्यों के हस्ताक्षर वाले इस बयान में कहा गया है, ‘हम बीएचयू, आईआईटी बीएचयू और संबद्ध कॉलेजों के शिक्षक संसद द्वारा हाल में पारित संशोधित नागरिकता कानून और इसके बाद एनआरसी को लागू करने की घोषणा से बेहद दुखी और अचंभित हैं.’
इस बयान पर विश्वविद्यालय और संबद्ध कॉलेजों के प्रोफेसरों, एसोसिएट प्रोफेसरों समेत 51 संकाय सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं. इनमें बीएचयू में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एनके मिश्रा, भूगोल के प्रोफेसर सरफराज आलम, आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर पी. शुक्ला, प्रोफेसर आरके मंडल और प्रोफेसर एके मुखर्जी आदि प्रमुख हैं.
इसमें कहा गया है, ‘यह स्वतंत्रता के संघर्ष की भावना और बहुलवादी लोकतंत्र के विचार के खिलाफ है. यह गांधी और टैगोर की भूमि पर कतई स्वीकार्य नहीं है. यह सांप्रदायिक आधार पर समाज को बांटने की साफ कोशिश है. इससे आम आदमी की रोज़मर्रा की जिंदगी से जुड़े असल मुद्दे पीछे चले गए हैं.’
संकाय सदस्यों ने एनआरसी और सीएए के खिलाफ बुधवार को हस्ताक्षर अभियान चलाया था और सरकार से अपील की है कि वह इन कवायदों के दीर्घकालिक निहितार्थों पर पुन: विचार करे.
बयान में कहा गया है कि एक आधुनिक राष्ट्र में ‘प्रतिगामी और बिना जानकारी के बनाई गई नीतियां’ अस्वीकार्य हैं जिनमें ऐतिहासिक और सामाजिक समझ पर विचार नहीं किया गया है.
इसमें कहा गया है कि सरकार का नागरिकता को लेकर कदम भारतीय समावेशी परंपरा के खिलाफ है जिसका समर्थन भारतीय दर्शन में किया गया है.
बयान में कहा गया है, ‘हम भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस अधिनियम के दीर्घकालिक निहितार्थों के बारे में पुनर्विचार करे और उम्मीद करते हैं कि राष्ट्रीय हित दलगत राजनीतिक से ऊपर रहेंगे. हम प्रदर्शनकारियों से भी आग्रह करते हैं कि वे हिंसा में शामिल नहीं हों और शांतिपूर्ण तथा लोकतांत्रिक तरीके से अपनी असहमति जताएं. हम जामिया मिलिया इस्लामिया समेत कई विश्वविद्यालयों के छात्रों पर पुलिस की बर्बरता की भी निंदा करते हैं.’
कुछ दिन पहले बीएचयू के कुछ छात्रों को एनआरसी और सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया है.
फिल्मी हस्तियों ने उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा की न्यायिक जांच का अनुरोध किया
फिल्मकार अनुराग कश्यप और अपर्णा सेन समेत फिल्म जगत से जुड़ी हस्तियों के एक समूह ने उत्तर प्रदेश में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा की न्यायिक जांच कराने का बृहस्पतिवार को अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि वे किसी तरह की गुंडागर्दी का समर्थन नहीं करते.
अदालत से की गई अपील को अभिनेत्री स्वरा भास्कर और अभिनेता मोहम्मद जीशान अयूब ने नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में पढ़कर सुनाया.
अपील में कहा गया है कि वे किसी भी तरह की हिंसा या गुंडागर्दी का समर्थन नहीं करते. शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के नागरिकों के अधिकार का राज्य में हनन किया गया है.
पत्र पर फिल्मकारों अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवानी, अपर्णा सेन और अलंकृता श्रीवास्तव के साथ-साथ अभिनेत्री कुब्रा सैत, मल्लिका दुआ, कोंकणा सेन शर्मा, जीशान अयूब और भास्कर के हस्ताक्षर हैं.
इसमें अनुरोध किया गया है कि उत्तर प्रदेश में जो कुछ भी हुआ, अदालतें उस पर स्वत: संज्ञान लें. साथ ही लोगों की मौत और संपत्ति को हुए नुकसान की न्यायिक जांच का भी अनुरोध किया गया है.
पत्र में कहा गया है, ‘सीएए ने एक कानून के रूप में स्वयं विपरीत विचारों को जन्म दिया है. लेकिन कानून के गुणों पर किसी एक के विचारों से परे, कुछ ऐसे मौलिक सिद्धांत हैं जिनको लेकर हम सभी सहमत हैं. इनमें भारत के संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप- नागरिकों का शांतिपूर्वक विरोध करने का अधिकार; राज्य का कानूनी ढांचे के भीतर उनसे निपटना; और अपराध तथा सजा निर्धारित करने में अदालतों की अंतिम भूमिका शामिल है.’
पत्र में आरोप लगाया गया है कि उनका मानना है कि मोटे तौर पर सरकार की ज्यादतियों के कारण इन सभी सिद्धांतों को उत्तर प्रदेश में कमजोर किया गया है.
पत्र में कहा गया है, ‘राज्य में जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, बिना बाधा की आदि के अधिकार खतरे में हैं.’
उन्होंने कहा कि वे कथित पुलिस गोलीबारी और अत्यधिक बल प्रयोग से राज्य में मौतों को लेकर बेहद चिंतित हैं.
पत्र में कहा गया है, ‘मीडिया में आ रहीं खबरों से पता चला है कि उत्तर प्रदेश में 19 लोगों की मौत हुई है, जिनमें से ज्यादातर लोगों की मौत गोली लगने से हुई… जिससे यह माना जा सकता है कि प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.’
इसमें कहा गया है कि विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए प्रशासन निर्धारित मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन नहीं कर रहा.
स्वरा भास्कर और मोहम्मद जीशान अयूब द्वारा पढ़ी गई अपील में कहा गया है, ‘हम मौतों की निंदा करते हैं और सभी पीड़ितों को तुरंत न्याय दिलाने का अनुरोध करते हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)