सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने बीते 26 दिसंबर को नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों की आलोचना की थी. उनके इस बयान को पूर्व सैन्य कर्मियों और विपक्षी पार्टियों ने रक्षा कर्मियों के लिए तय आचार संहिता का उल्लंघन बताया था.
नई दिल्ली: केरल के त्रिशूर से कांग्रेस सांसद टीएन प्रथपन ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र लिखकर मांग की है कि वे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लोगों के विरोध प्रदर्शनों की आलोचना करने वाले सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को उनके पद से बर्खास्त करें.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जनरल बिपिन रावत पर रक्षा कर्मियों के लिए तय आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए प्रथपन ने कहा कि सेना प्रमुख के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए.
पत्र में लिखा गया, ‘सेना प्रमुख द्वारा अनुशासन के इस बहुत ही गंभीर उल्लंघन के मद्देनजर मैं विनम्रतापूर्वक महामहिम से अपील करता हूं कि वे जनरल बिपिन रावत को तुरंत सेना प्रमुख के पद से हटा दें और न्याय के हित में गंभीर और कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई करें.’
कांग्रेस सांसद ने आगे कहा कि सेना प्रमुख ने देश के कुछ फासीवादी राजनीतिक संगठनों की ओर से अपनी राजनीतिक राय देकर सभी हदें पार कर दीं. उन्होंने पत्र में लिखा, ‘यह गंभीर अनुशासनात्मक, आचार संहिता और विभिन्न रक्षा सेवा नियमों के उल्लंघन से कम नहीं है.’
नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था, ‘नेता वे नहीं हैं जो गलत दिशाओं में लोगों का नेतृत्व करते हैं, जैसा कि हम बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय और कॉलेज छात्रों को देख रहे हैं, जिस तरह वे शहरों और कस्बों में आगजनी और हिंसा करने में भीड़ की अगुवाई कर रहे हैं. यह नेतृत्व नहीं है.’
सेना प्रमुख ने कहा कि नेता जनता के बीच से उभरते हैं, नेता ऐसे नहीं होते जो भीड़ को अनुचित दिशा में ले जाएं. नेता वह होते हैं, जो लोगों को सही दिशा में ले जाते हैं.
#WATCH Army Chief Gen Bipin Rawat: Leaders are not those who lead ppl in inappropriate direction. As we are witnessing in large number of universities&colleges,students the way they are leading masses&crowds to carry out arson&violence in cities & towns. This is not leadership. pic.twitter.com/iIM6fwntSC
— ANI (@ANI) December 26, 2019
इस बयान के बाद सेना प्रमुख विवाद में घिर गए और विपक्षी पार्टियों ने इसकी आलोचना की. कांग्रेस ने रावत पर सैन्य-नागरिक संबंधों से समझौते करने और सत्ताधारी पार्टी की भाषा बोलने का आरोप लगाया तो वहीं माकपा ने सवाल उठाया कि क्या सेना का राजनीतिकरण करके भारत को पाकिस्तान बनाया जा रहा है.
पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एल. रामदास ने भी जनरल रावत के बयान को गलत बताया. उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल के लोगों को राजनीतिक ताकतों के बजाय देश की सेवा करने के दशकों पुराने सिद्धांत का पालन करना चाहिए.
सैन्य कानून की धारा 21 के तहत सैन्यकर्मियों के किसी भी राजनीतिक या अन्य मकसद से किसी के भी द्वारा आयोजित किसी भी प्रदर्शन या बैठक में हिस्सा लेने पर पाबंदी है. इसमें राजनीतिक विषय पर प्रेस से संवाद करने या राजनीतिक विषय से जुड़ी किताबों के प्रकाशन कराने पर भी मनाही है.’
हालांकि, सेना प्रमुख की टिप्पणी पर विवाद उत्पन्न होने पर सेना ने एक स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि सेना प्रमुख ने सीएए का उल्लेख नहीं किया है.
मालूम हो कि जनरल रावत 31 दिसंबर को सेना प्रमुख पद से सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उन्हें देश का पहला चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनाए जाने की संभावना है. जनरल रावत ने सेना प्रमुख के तौर पर अपने तीन वर्ष के कार्यकाल के दौरान राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं रहने के आरोपों का सामना किया.