मध्य प्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा की आयोजित प्रारंभिक परीक्षा के पेपर में पूछा गया था सवाल. इससे पहले मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित जीवाजी विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के पेपर में क्रांतिकारियों को कथित तौर पर आतंकवादी बताने पर विवाद हो गया था.
इंदौर/भोपाल: मध्य प्रदेश की राज्य प्रशासनिक सेवा की रविवार को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा के पेपर में भील समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियों से विवाद खड़ा हो गया है, जिसके बाद भाजपा ने दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है. वहीं कांग्रेस के एक विधायक ने मुख्यमंत्री से खेद जताने की मांग कर दी है.
पेपर के एक गद्यांश में ‘आपराधिक प्रवृत्ति’ वाले लोगों के रूप में भीलों का विवादास्पद सामान्यीकरण किया गया है. इसके साथ ही, विवाह से जुड़ी एक प्रथा के कारण भील समुदाय को ‘शराब में डूबती जा रही जनजाति’ बताया गया है.
इस पर मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और भाजपा विधायक राम दांगोरे समेत कांग्रेस के कुछ विधायकों ने दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है, तो वहीं कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह ने कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री कमलनाथ को भी सदन में खेद व्यक्त करना चाहिए.
विवाद बढ़ने के बीच मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) की सचिव रेणु पंत ने सोमवार को कहा, ‘यह मामला दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन प्रश्न पत्र में संबंधित गद्यांश रखे जाने के पीछे किसी भी व्यक्ति की कोई दुर्भावना नहीं थी. हम देख रहे हैं कि यह चूक कैसे हुई और इसे दुरुस्त करने के लिए हम कौन-सा कदम उठा सकते हैं.’
उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि एमपीपीएससी की आयोजित भर्ती परीक्षाओं के प्रश्न पत्र तैयार करने वाले लोगों को हमेशा हिदायत दी जाती है कि वे इनमें किसी भी वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली विषयवस्तु न रखें.
प्रदेश के खंडवा जिले के पंधाना क्षेत्र के भाजपा विधायक राम दांगोरे (30) ने भी मामले में आपत्ति जताई है. पेशे से शिक्षक दांगोरे भील जनजाति से ही ताल्लुक रखते हैं. वह एक उम्मीदवार के रूप में उसी एमपीपीएससी परीक्षा में शामिल हुए थे, जिसके पर्चे में इस समुदाय को लेकर विवादास्पद गद्यांश रखा गया था.
दांगोरे ने कहा, ‘हम कांग्रेस के राज में भील जनजाति का अपमान सहन नहीं करेंगे. टंट्या भील सरीखे हमारे बहादुर पुरखों ने अंग्रेजों के खिलाफ छेड़े गए स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति तक दी है.’
उन्होंने मांग की कि प्रदेश सरकार एमपीपीएससी की सचिव रेणु पंत को तत्काल पद से हटाए. इसके साथ ही, प्रश्न पत्र तैयार करने में आपत्तिजनक चूक के जिम्मेदार लोगों पर अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की जाए.
दांगोरे आदिवासी बच्चों को पीएससी की कोचिंग भी देते हैं.
आदिवासीयों का देश की आजादी के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ये हमारी संस्कृति के रक्षक है। #MPPSC परीक्षा के प्रश्नपत्र में भोले भाले भीलो को आपराधिक प्रवर्ति का बताया जाना शर्मनाक और सम्पूर्ण आदिवासी समाज का अपमान है। @OfficeOfKNath जी तत्काल दोषियों पर कार्रवाई करें। pic.twitter.com/pS3wQrXFtF
— Gopal Bhargava (@bhargav_gopal) January 13, 2020
मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने सोमवार को ट्वीट किया, ‘आदिवासियों का देश की आजादी के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. ये हमारी संस्कृति के रक्षक हैं. एमपीपीएससी परीक्षा के प्रश्न पत्र में भोले-भाले भीलों को आपराधिक प्रवृत्ति का बताया जाना शर्मनाक है और संपूर्ण आदिवासी समाज का अपमान है.’
उन्होंने कहा है, ‘पहले आदिवासी विधायकों का अपमान और अब पूरे भील समाज को इस तरह कहना प्रदेश सरकार की आदिवासी विरोधी सोच को उजागर करता है. मुख्यमंत्री कमलनाथ तत्काल दोषियों पर कार्रवाई करे.’
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्वियज सिंह के छोटे भाई विधायक लक्ष्मण सिंह ने इस मामले में मुख्यमंत्री कमलनाथ से खेद व्यक्त करने की मांग के साथ ट्वीट किया, ‘भील समाज पर प्रदेश शासन के प्रकाशन पर अशोभनीय टिप्पणी से आहत हूं. अधिकारी को तो सजा मिलनी ही चाहिए, परंतु मुख्यमंत्री को भी सदन में खेद व्यक्त करना चाहिए, आखिर वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. इससे अच्छा संदेश जाएगा.’
भील समाज पर प्रदेश शासन के प्रकाशन पर अशोभनीय टिप्पणी से आहत हूँ।अधिकारी को तो सजा मिलना ही चाहिए,परन्तु मुख्य मंत्री को भी सदन में खेद व्यक्त करना चाहिए,आखिर वह प्रदेश के मुख्य मंत्री हैं।इससे अच्छा संदेश जाएगा।
— lakshman singh (@laxmanragho) January 13, 2020
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं झाबुआ विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक कांतिलाल भूरिया ने भी इस पर आपत्ति जताते हुए एमपीपीएससी के चेयरमैन और सचिव के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग प्रदेश सरकार से की है.
एमपीपीएससी की आयोजित भर्ती परीक्षा के इस पेपर का एक गद्यांश भील जनजाति पर आधारित था और परीक्षार्थियों को इसे पढ़कर कुछ सवालों के उत्तर देने थे.
इस विवादास्पद गद्यांश में कहा गया है, ‘भीलों की आर्थिक विपन्नता का एक प्रमुख कारण आय से अधिक व्यय करना है.’
भीलों की ‘वधू मूल्य’ (वो राशि और उपहार जो विवाह के वक्त वर पक्ष द्वारा वधू के परिजनों को दिए जाते हैं) प्रथा का जिक्र करते हुए गद्यांश में यह भी कहा गया है, ‘भील वधू मूल्य रूपी पत्थर से बंधी शराब के अथाह सागर में डूबती जा रही जनजाति है. ऊपर से साहूकारों व महाजनों द्वारा दिए गए ऋण का बढ़ता ब्याज इस समंदर में बवंडर का काम करता है, जिसके कुचक्र से ये लोग कभी बाहर नहीं निकल पाते.’
इसमें ये भी लिखा गया है, ‘भीलों की आपराधिक प्रवृत्ति का एक प्रमुख कारण यह भी है कि (वे) सामान्य आय से अपनी देनदारियां पूरी नहीं कर पाते. फलत: धन उपार्जन की आशा में गैर वैधानिक और अनैतिक कामों में भी संलिप्त हो जाते हैं.’
इस गद्यांश पर कई आदिवासी संगठनों, विद्यार्थी संगठनों तथा राजनेताओं ने आक्रोश जताया है. पेपर तैयार करने वाले लोगों के साथ ही एमपीपीएससी के आला अधिकारियों पर प्राथमिकी दर्ज किए जाने की मांग जोर पकड़ रही है.
मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में राजनीति शास्त्र के पेपर में क्रांतिकारियों को कथित तौर पर आतंकवादी बताने पर विवाद हो गया था. ग्वालियर स्थित जीवाजी विश्वविद्यालय में एमए राजनीतिक शास्त्र तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा में प्रश्न पत्र ‘राजनीतिक दर्शन-3, आधुनिक भारत का राजनीतिक विचार’ में एक सवाल पूछा गया था, ‘क्रांतिकारी आतंकवादियों के कार्यकलाप वर्णन कीजिए. उग्रवादी और क्रांतिकारी आतंकवादियों में क्या अंतर है?’
जांचकर्ता से जवाब-तलब
एमपीपीएससी प्रशासन ने इस चूक पर सोमवार को अफसोस जाहिर किया। इसके साथ ही, विवादास्पद प्रश्नपत्र तैयार करने वाले व्यक्ति और तैयार पर्चे को छपाई से पहले जांचने वाले शख्स से हफ्ते भर में जवाब मांगा गया है.
प्रश्नपत्र में भील जनजाति पर आपत्तिजनक टिप्पणियों के मामले से जुड़े सवालों पर मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) के अध्यक्ष भास्कर चौबे ने इंदौर में संवाददाताओं से कहा, ‘हम पता लगा रहे हैं कि राज्य प्रशासनिक सेवा की प्रारंभिक परीक्षा का प्रश्न पत्र तैयार करने में चूक कैसे हुई? हमने संबंधित प्रश्न पत्र के सेटर (प्रश्न पत्र तैयार करने वाला व्यक्ति) और मॉडरेटर (तैयार पर्चे को छपाई से पहले जांचने वाला शख्स) को नोटिस जारी कर उनसे सात दिन के भीतर जवाब-तलब किया है. नोटिस के जवाब के आधार पर आगामी कदम उठाया जाएगा.’
एमपीपीएससी अध्यक्ष ने हालांकि भर्ती परीक्षा की गोपनीयता का हवाला देते हुए विवादास्पद प्रश्न पत्र के ‘सेटर और मॉडरेटर’ के नामों का खुलासा करने से इनकार कर दिया.
चौबे ने बताया कि तय प्रक्रिया के मुताबिक एमपीपीएससी की विषय विशेषज्ञ समिति विवादास्पद प्रश्न को लेकर परीक्षार्थियों की आपत्तियों की जांच करेगी. जांच के बाद इस समिति की सिफारिशों के आधार पर एमपीपीएससी मामले में उचित कदम उठाएगा.
उन्होंने हालांकि बताया कि अगर यह समिति ‘पेपर सेटर’ और ‘मॉडरेटर’ के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा करती है, तो अधिकतम प्रावधानों के मुताबिक उन्हें एमपीपीएससी की परीक्षा प्रणाली से हमेशा के लिए बाहर किया जा सकता है.
चूक के लिए जिम्मेदार लोगों पर एमपीपीएससी द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराए जाने की मांग को चौबे ने यह कहते हुए खारिज कर दिया, ‘यह मामला कोई आपराधिक प्रकरण थोड़े ही है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)