अगर असम को एनआरसी अपडेट की पूरी ज़िम्मेदारी दी गई होती तो कोई गड़बड़ी नहीं होती: मुख्यमंत्री

दिसंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद असम में एनआरसी अपडेट करने की तैयारी शुरू की गई थी. एनआरसी का अंतिम प्रकाशन अगस्त 2019 में किया गया था, जिससे असम में रह रहे 19 लाख से ज़्यादा लोग बाहर हो गए थे. पिछले साल असम सरकार में मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने बताया था कि राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से एनआरसी के मौजूदा स्वरूप को ख़ारिज करने का अनुरोध किया है.

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Dibrugarh: Assam Chief Minister Sarbananda Sonowal addresses his party workers during a meeting, at Chowkidinghee field in Dibrugarh, Thursday, Feb. 21, 2019. (PTI Photo)(PTI2_21_2019_000147B)
सर्बानंद सोनोवाल. (फोटो: पीटीआई)

दिसंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद असम में एनआरसी अपडेट करने की तैयारी शुरू की गई थी. एनआरसी का अंतिम प्रकाशन अगस्त 2019 में किया गया था, जिससे असम में रह रहे 19 लाख से ज़्यादा लोग बाहर हो गए थे. पिछले साल असम सरकार में मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने बताया था कि राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से एनआरसी के मौजूदा स्वरूप को ख़ारिज करने का अनुरोध किया है.

Dibrugarh: Assam Chief Minister Sarbananda Sonowal addresses his party workers during a meeting, at Chowkidinghee field in Dibrugarh, Thursday, Feb. 21, 2019. (PTI Photo)(PTI2_21_2019_000147B)
सर्बानंद सोनोवाल. (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा है कि यदि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने का पूरा काम राज्य सरकार को सौंपा गया होता तो वह सही होती.

सोनोवाल ने विधानसभा के एक दिन के विशेष सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कहा कि लोगों को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से भयभीत होने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार उनके हितों के विपरीत कुछ भी नहीं करेगी.

उन्होंने सदन में कहा, ‘भाजपा सही एनआरसी चाहती है. मैं यह पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अगर असम सरकार को एनआरसी को अपडेट करने की पूरी जिम्मेदारी सौंपी जाती तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि यह पूरी तरह से सही एनआरसी होती.’

सोनोवाल ने अपने संबोधन में कहा कि चूंकि उच्चतम न्यायालय की निगरानी में एनआरसी की पूरी कवायद हुई इसलिए राज्य की अद्यतन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने कहा, ‘असम सरकार ने इस प्रक्रिया में अपने 55 हजार कर्मचारियों और सुरक्षा से लिए अपना पुलिस बल उपलब्ध कराया था.’

दिसंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद असम में एनआरसी अपडेट करने की तैयारी शुरू की गई थी और शीर्ष अदालत की निगरानी में ही यह जारी रही. एनआरसी का अंतिम प्रकाशन अगस्त 2019 में किया गया था, जिससे असम में रह रहे 19 लाख से ज्यादा लोग बाहर हो गए थे.

गृह मंत्री अमित शाह ने बीते साल 20 नवंबर को राज्यसभा में कहा था कि असम में एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया भारत के बाकी हिस्से के साथ नए सिरे से चलाई जाएगी, जिसके बाद असम सरकार में मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने बताया था कि राज्य सरकार ने केंद्रीय गृहमंत्री से एनआरसी के मौजूदा स्वरूप को खारिज करने का अनुरोध किया है.

बहरहाल, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर मुख्यमंत्री सोनोवाल ने कहा कि लोग इस लिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें इस कानून के बारे में गलत सूचनाएं दी जा रहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘कितने लोग नागरिकता के लिए आवेदन करेंगे इस बारे में चर्चाएं अभी काल्पनिक हैं. सीएए राष्ट्रीय कानून है और पूरा भारत इसे लागू करेगा. कृपया करके इस बारे में कयास न लगाएं. अभी नियम नहीं बनें हैं और हमने अपने सुझाव दिए हैं.’

मुख्यमंत्री ने कहा कि एक बार लोग नागरिकता के लिए आवेदन दे दें, इसके बाद सभी आवेदनों की जांच होगी और हो सकता है कि सभी आवेदकों को नागरिकता न मिले.

इससे पहले राज्य के वित्त मंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने विधानसभा में अपने भाषण में कहा था कि सीएए से राज्य में अधिकतम पांच लाख बांग्लादेशी हिंदुओं को फायदा होगा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले पांच जनवरी की शाम विधानसभा में भाजपा नेता और राज्य के वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा था कि विदेशियों के खिलाफ छह साल तक प्रदर्शन के बाद साल 1985 में हुए असम समझौते में राज्य में एनआरसी तैयार करने का जिक्र नहीं था.

उन्होंने कहा था कि असम समझौते के तहत एनआरसी के लिए कट ऑफ साल 1971 की जगह 1967 होना चाहिए.

रिपोर्ट के अनुसार, असम समझौता के चलते नागरिकता कानून में धारा 6(ए) को जोड़ा गया था. धारा 6(ए) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जिसने एक जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश किया है उसे क्षेत्रीय विदेशी पंजीकरण कार्यालय में रजिस्टर कराना की जरूरत होगी. उन्हें वोट देने के अधिकार के अलावा अन्य नागरिकों की तरह अधिकार होगा. 10 साल रहने के बाद ही उसे वोट देने का अधिकार मिलेगा.

एनआरसी नोट में कहा गया है कि जिन्होंने साल 1966 से 1971 के बीच असम में प्रवेश किया है, लेकिन अपना रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है, उन्हें बाहर किया जाएगा. असम एनआरसी 24 मार्च 1971 की आधी रात की कट ऑफ तारीख तैयार किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)