महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने दावा किया है कि नई दिल्ली के बिड़ला भवन स्थित गांधी स्मृति से एक फ्रेंच फोटोग्राफर द्वारा खींची गई महात्मा गांधी के अंतिम समय की तस्वीरों को हटा दिया गया है. गांधी स्मृति के निदेशक का कहना है कि ऐसा नहीं है, बस कुछ तस्वीरों को डिजिटलाइज़ किया गया है.
महात्मा गांधी की 72वीं पुण्यतिथि में सिर्फ 13 दिन ही बचे हैं, लेकिन इस बीच नई दिल्ली के गांधी स्मृति भवन (बिड़ला भवन) से उनकी हत्या से संबंधित कुछ ऐतिहासिक तस्वीरों को हटाने को लेकर बहस छिड़ी हुई है.
नई दिल्ली के तीस जनवरी मार्ग के पुराने बिड़ला भवन को गांधी स्मृति भवन कहा जाता है, जहां महात्मा गांधी की 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 9 सितंबर, 1947 से 30 जनवरी, 1948 तक महात्मा गांधी इस घर में रहे थे. इस भवन में उनके जीवन के अंतिम 144 दिनों की स्मृतियां संजोई हुई हैं.
पुराने बिड़ला भवन को भारत सरकार ने 1971 में अधिग्रहित कर लिया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया जिसे 15 अगस्त 1973 को आम जनता के लिए खोल दिया गया था. इस भवन में गांधी के यहां बिताए गए समय और उनकी हत्या समेत अन्य ऐतिहासिक घटनाओं की तस्वीरें और जानकारियां संजोई गई हैं.
यहां से कुछ तस्वीरें हटाए जाने की बहस की शुरुआत तब हुई, जब महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया था कि गांधी स्मृति में फोटोग्राफर हेनरी कार्तियर ब्रेसन द्वारा ली गई राष्ट्रपिता के अंतिम क्षणों की तस्वीरों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है और बिना किसी लिखित सामग्री के साथ उन्हें एलईडी स्क्रीन पर दिखाया जा रहा है, जिससे इन तस्वीरों के संदर्भ का पता नहीं चलता.
तुषार गांधी का कहना था कि इन तस्वीरों को हटाना ऐतिहासिक साक्ष्य को मिटाने के समान है. उन्होंने इसकी तुलना फ्रांस में लूव्रे संग्रहालय में लगी पुनर्जागरण काल की पेंटिंग को हटाकर उनका डिजिटलीकरण करने जैसा प्रयास बताया.
Shocked. The evocative photo gallery of Henri Cartier Brasson displaying the post murder photographs from the Gandhi Smriti have been removed from display on the orders of The Pradhan Sevak. Bapu’s Murderers are obliterating Historic evidence. He Ram!
— Tushar बेदखल (@TusharG) January 16, 2020
तुषार गांधी ने ट्वीट किया था, ‘मैं हैरान हूं. गांधी स्मृति से गांधी जी की हत्या को प्रदर्शित करने वाली हेनरी कार्तियर ब्रेसन की तस्वीरों को फोटो गैलरी से प्रधान सेवक के आदेश पर हटा दिया गया है. बापू की हत्या से संबंधित ऐतिहासिक सबूतों को खारिज़ किया जा रहा है. हे राम!’
ज्ञात हो कि 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या से करीब एक घंटा पहले ब्रेसन ने उनकी तस्वीरें खींची थीं. उन्होंने महात्मा के अंतिम संस्कार की तस्वीरों के साथ आम लोगों के दुख को भी अपने कैमरे में उतारा था.
बिड़ला हाउस के जिस हिस्से में संध्या वंदना के बाद नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मारी थी, उसे संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है, जहां ब्रेसन की तस्वीरों के साथ महात्मा गांधी की अन्य यादगार वस्तुएं और तस्वीरें लगाई गई हैं.
तुषार गांधी के इस दावे की पड़ताल के लिए जब द वायर की टीम गांधी स्मृति भवन पहुंची, तो वहां के कर्मचारियों और निदेशक इस पर स्पष्ट रूप से कुछ भी बोलने से मना कर रहे थे. उनका कहना है कि कुछ बदला नहीं है. तस्वीरें अब भी वहीं हैं.
फोटो गैलरी की बात करें तो बाकी सभी फोटो वैसी ही हैं लेकिन सिर्फ फोटोग्राफर हेनरी कार्तियर ब्रेसन की बापू की हत्या से संबंधित तस्वीरों को वहां से हटाया गया है. उसकी जगह पर 42 इंच की एलईडी स्क्रीन लगा दी गई हैं, जिसमें कुछ देर के अतंराल पर तस्वीरें बदलती रहती हैं.
इस स्क्रीन पर तस्वीर बदलने का पता आसानी से नहीं चल सकता क्योंकि इनके बदलने की अवधि ज़्यादा है और पहली नज़र में देखने वाले को यह एहसास भी नहीं होगा कि उसमें तस्वीरें बदल रही हैं.
गांधी स्मृति के निदेशक दीपांकर श्री ज्ञान से तस्वीरों के हटाए जाने के बारे में सवाल किया, तब पहले तो उन्होंने तस्वीरें वहां से हटाने की बात को ही खारिज़ किया. उनका कहना था, ‘वो तस्वीरें भी हैं और एलईडी स्क्रीन भी हैं. आप चाहें तो दोनों को देख सकते हैं.’
हालांकि उन्होंने कैमरे पर कुछ भी बोलने से साफ मना कर दिया. उन्होंने हमें सभी तस्वीरों को तो नहीं दिखाया, लेकिन एक तस्वीर लाकर ठीक एलईडी स्क्रीन के बगल में रखवाई. विभिन्न तस्वीरों और आलेख वाला पैनल जो हमारे लिए लाकर दिखाया गया, उसकी लंबाई-चौड़ाई करीब 4×6 फीट थी.
दीपांकर ने बताया कि इस तरह के कुल 13 पैनल हैं जिन्हें किसी स्टोररूम में रखा गया है, जिसे हमें दिखाने से वो हिचकिचा रहे थे. इसके बाद उन्होंने बताया कि डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया के तहत कुछ तस्वीरों को हटाया गया है और उन्हीं तस्वीरों को स्क्रीन पर 2-2 मिनट के अंतराल में दिखाया जाएगा.
तस्वीरों को हटाने के कारण के बारे में उन्होंने कहा, ‘तस्वीरों को लोग, खासकर बच्चे छूते थे. अब डिजिटलाइजेशन करने से कोई छू नहीं पाएंगे. बैकग्राउंड में संगीत भी चलता रहेगा, जिससे लोगों को अच्छा लगेगा.’
लेकिन यहां सवाल उठता है कि अगर लोगों के छूने से ही परेशानी हो रही है तो इसके लिए दूसरे उपाय भी किए जा सकते हैं, जैसे लोगों के पहुंच से दूर रखना या तस्वीरों पर शीशे लगवाना आदि.
इसके अलावा एक बड़ा सवाल यह भी है कि सिर्फ महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित तस्वीरें ही क्यों हटायी गईं? उनके जीवन संबंधी बाकी दूसरी तस्वीरें तो वैसी ही लगी हुई हैं, उनकों क्यों नहीं हटाया गया या डिजिटलाइजेशन के लिए उन्हें क्यों नहीं चुना गया?
गैलरी में जो पैनल हमें दिखाने के लिए लाया गया था, उसमें तस्वीर और आलेख स्पष्ट दिख रहा था, इसे आसानी से पढ़ा जा सकता है. लेकिन फोटो गैलरी में लगी स्क्रीन पर जो तस्वीरें दिखाई दे रही थीं, वो आकार में अपेक्षाकृत छोटी थीं और साफ दिख भी नहीं रही थीं.
साथ ही इन तस्वीरों के साथ लिखे टेक्स्ट को दो मिनट के अंदर ही पढ़ना होगा क्योंकि इसके बाद यह तस्वीर बदल जाती है और दूसरी तस्वीर चलने लगती है. जब हमने इन तस्वीर और पैनल को लेकर अपना अनुभव बताया, तब दीपांकर का कहना था, ‘ये आपका ‘परसेप्शन’ होगा.’
जब उनसे हटायी गई तस्वीरों के पैनल के बारे में सवाल किया, तब उन्होंने बताया कि वो वैसे ही रहेंगे. अगर कहीं प्रदर्शनी आदि में जरूरत हुई, तो उन्हें वहां प्रयोग किया जायेगा.
यह पूछे जाने पर कि यह बदलाव किसके निर्देश पर और क्यों किए गए, उन्होंने पहले तो जवाब देने से मना कर दिया, लेकिन कई बार पूछे जाने पर बताया कि उच्च प्रबंधन समिति के आदेश पर हत्या संबंधी तस्वीरों को हटाया गया है.
तस्वीरों को हटाने में सरकार की भूमिका के बारे में पूछने से उन्होंने कहा, ‘गांधी स्मृति एक स्वतंत्र निकाय है. सरकार इसमें सिर्फ फडिंग करती है.’
लेकिन तुषार गांधी इस बदलाव से काफी हैरान हैं. उन्होंने गांधी की हत्या संबंधी तस्वीरों को हटाकर एलईडी स्क्रीन लगाए जाने पर रोष जताते हुए कहा, ‘वे फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तियर ब्रेसन की ली हुई तस्वीरें थीं. उन्होंने उनके प्रिंट्स बनाकर गांधी स्मृति को भेंट में दिया था.’
उन्होंने आगे कहा, ‘वे बापू की हत्या और उसके बाद की कहानी को प्रदर्शित करती बहुत ही उम्दा और जीवंत तस्वीरें थीं. उन तस्वीरों के जरिये उस दौर का इतिहास और उस घटना को अच्छे से समझाया गया था. लोग जब उन्हें देखते और पढ़ते थे, तब आसानी से समझ आता था कि क्या घटना हुई और क्या इतिहास था.’
तुषार गांधी का दावा है कि यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर किया गया है. उन्होंने कहा, ‘मैंने जब वहां इन तस्वीरों को हटाए जाने के बारे में तहकीकात की, तो पता चला कि नवंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां आए थे और उनके आदेश के मुताबिक उन तस्वीरों को हटाया गया है. ये जानकर मुझे ताज्जुब भी हुआ और दुख भी कि इस तरह से एक ऐतिहासक प्रदर्शनी को हटा दिया जाता है और लोगों को वंचित कर दिया जाता है कि उस दौर के इतिहास और खासकर उस घटना को जान न पाएं.’
तुषार गांधी ने यह भी बताया कि हटायी गई तस्वीरों में गांधी जी की हत्या की शाम को बिड़ला भवन में दिए गए पंडित जवाहरलाल नेहरू के एक ऐतिहासिक भाषण (द लाइट हैज़ गॉन आउट ऑफ अवर लाइव्स) की तस्वीर भी थी, उस भाषण का शब्दरेखन भी उस तस्वीर के साथ लगाया गया था.
तुषार के मुताबिक इसके अलावा एक तस्वीर में गांधी की हत्या की घटना के चश्मदीद गवाह, एक अमेरिकन पत्रकार का बयान भी था, जिसमें उन्होंने उस शाम क्या-क्या देखा था, उसका विवरण तस्वीर के साथ लगाया गया था. जिस बंदूक से बापू की हत्या की गई थी, उसकी तस्वीर भी थी. उनके अनुसार बहुत सारी ऐसी खूबसूरत तस्वीरें थीं, जिन्हें हटा दिया गया है.
उनका कहना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. अगर डिजिटलाइजेशन करना था तो सोच-समझकर करना चाहिए था क्योंकि उन तस्वीरों से बिड़ला हाउस के उस ऐतिहासिक पहलू की गरिमा भी बढ़ती थी.
तुषार गांधी ने भी एलईडी स्क्रीन पर कम अंतराल के लिए प्रदर्शित होने वाली तस्वीरों पर सवाल उठाया है, उनका कहना है, ‘अभी एलईडी स्क्रीन में दो-दो सेकंड के लिए तस्वीरें घूमती हैं, जिससे लोगों के लिए कुछ भी समझ पाना मुश्किल है. वे कुछ भी नहीं समझ पाएंगे कि वहां का क्या इतिहास था और क्या घटा था.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘सब चीजों को डिजिटलाइज नहीं करना चाहिए. कुछ चीजों के दार्शनिक महत्व को समझकर उन्हें वैसे ही रखना चाहिए. इससे मुझे दुख भी हुआ और ये शक भी हुआ कि उनकी ये मंशा थी कि उस इतिहास को लोग न समझ पाएं इसलिए इन तस्वीरों को हटाकर इतिहास को दबोचने की कोशिश की है.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘एलईडी स्क्रीन में सभी तस्वीरें आ तो रही हैं, लेकिन बहुत छोटे-छोटे आकार में हैं, जो आकर्षण उन तस्वीरों को बड़े-बड़े आकार में देखने में था, वो उसमें नहीं है. अब आप तस्वीर को जब तक समझ पाएं तब तक वह तस्वीर चली जाएगी. कई बार लोग वहां से निकल जाते थे, उनको पता भी नहीं चलता कि इन स्क्रीन पर तस्वीरें चलती हैं.’
उन्होंने इस तरह तस्वीरें हटाने को निंदनीय बताया. उन्होंने कहा, ‘जिस तरह से उन्होंने तस्वीरों को हटाया है वह निंदनीय है. इनको हटाने वाले इस इतिहास से सहज नहीं हैं क्योंकि वे इस इतिहास से डरते हैं. इतिहास के सबूतों को मिटाना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि बिड़ला हाउस टिका रहे परंतु उसके इतिहास के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी न हो.’
संस्कृति मंत्री बोले, तस्वीर को हटाने का सवाल ही नहीं
इस बहस के बीच केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल ने शुक्रवार को कहा कि गांधी स्मृति और दर्शन समिति में लगी जाने माने फोटोग्राफर हेनरी कार्टियर ब्रेसन द्वारा खिंची गई महात्मा गांधी के अंतिम क्षणों की मूल तस्वीर की जगह उनका प्रिंट लगाने का कोई सवाल ही नहीं है.
पटेल ने पत्रकारों से कहा, ‘तस्वीरों को हटाने का कोई सवाल नहीं है. दोनों एलईडी स्क्रीन और तस्वीरें अलग-अलग जगहों पर एक ही समय में दिखाई जाएंगी. दर्शक एलईडी स्क्रीन पर तस्वीरों को देखेंगे जबकि बेहतर विस्तृत समझ के लिए फ्रांसीसी फोटोग्राफर की तस्वीरें भी दिखेगी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)