केंद्र ने एनआईए को सौंपा भीमा-कोरेगांव मामला, महाराष्ट्र सरकार ने जताई आपत्ति

महाराष्ट्र की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार द्वारा भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र की समीक्षा के लिए की गई बैठक के एक दिन बाद शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी.

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भीमा-कोरेगांव में बना विजय स्तंभ. भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में पेशवा बाजीराव द्वितीय पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने जीत दर्ज की थी. इसकी याद में कंपनी ने विजय स्तंभ का निर्माण कराया था, जो दलितों का प्रतीक बन गया. कुछ विचारक और चिंतक इस लड़ाई को पिछड़ी जातियों के उस समय की उच्च जातियों पर जीत के रूप में देखते हैं. हर साल 1 जनवरी को हजारों दलित लोग श्रद्धाजंलि देने यहां आते हैं. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

महाराष्ट्र की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार द्वारा भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र की समीक्षा के लिए की गई बैठक के एक दिन बाद शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी.

भीमा-कोरेगांव में बना विजय स्तंभ. भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में पेशवा बाजीराव द्वितीय पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने जीत दर्ज की थी. इसकी याद में कंपनी ने विजय स्तंभ का निर्माण कराया था, जो दलितों का प्रतीक बन गया. कुछ विचारक और चिंतक इस लड़ाई को पिछड़ी जातियों के उस समय की उच्च जातियों पर जीत के रूप में देखते हैं. हर साल 1 जनवरी को हजारों दलित लोग श्रद्धाजंलि देने यहां आते हैं. (फोटो साभार: विकीपीडिया)
भीमा-कोरेगांव में बना विजय स्तंभ. भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में पेशवा बाजीराव द्वितीय पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने जीत दर्ज की थी. इसकी याद में कंपनी ने विजय स्तंभ का निर्माण कराया था, जो दलितों का प्रतीक बन गया. कुछ विचारक और चिंतक इस लड़ाई को पिछड़ी जातियों के उस समय की उच्च जातियों पर जीत के रूप में देखते हैं. हर साल 1 जनवरी को हजारों दलित लोग श्रद्धाजंलि देने यहां आते हैं. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

मुंबई: महाराष्ट्र की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार द्वारा भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र की समीक्षा के लिए की गई बैठक के एक दिन बाद शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार और केंद्र सरकार में विवाद पैदा हो गया है.

31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में लोगों को कथित रूप से उकसाने के लिए नौ अधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों को महाराष्ट्र पुलिस ने 2018 में गिरफ्तार किया था. पुलिस ने दावा किया था कि कार्यकर्ताओं और वकीलों ने लोगों को उकसाया और इससे अगले दिन भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई.

राज्य सरकार ने संकेत दिए थे कि यदि पुणे पुलिस आरोपों को साबित करने में विफल रही तो मामला एक विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंपा जा सकता है. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पिछली भाजपा सरकार ने आरोपियों को फंसाने की साजिश रची थी इसलिए राज्य और पुलिस द्वारा सत्ता के घोर दुरुपयोग के कारण मामले की समीक्षा आवश्यकता है.

इसके बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एनसीपी के एक प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त करते हुए कहा कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में दलित कार्यकर्ताओं के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों को जल्द से जल्द वापस लिया जाएगा.

इस मामले में गिरफ्तार किए गए नौ लोगों में रोना विल्सन, शोमा सेन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, सुधीर धवले, सुधा भारद्वाज, वरवारा राव, वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा हैं.

अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय कुमार ने पुष्टि की कि केंद्रीय गृह मंत्रालय से जांच के हस्तांतरण के बारे में एक पत्र प्राप्त हुआ है.

केंद्र सरकार के इस फैसले से संघवाद और एनआईए अधिनियम पर बहस बढ़ने की संभावना है कि यह अधिनियम संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है या नहीं क्योंकि एनआईए अधिनियम एजेंसी को किसी भी राज्य में दर्ज अपराध के मामले में राज्य सरकारी अनुमति के बिना मुकदमा करने की अनुमति देता है.

बता दें कि, कांग्रेस नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार ने इस महीने की शुरुआत में एनआईए अधिनियम की संवैधानिकता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है.

वहीं, इस पूरे घटनाक्रम पर आश्चर्य जताते हुए महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने शुक्रवार शाम ट्वीट किया कि महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की नई सरकार ने ‘मामले की तह तक’ जाने का फैसला किया. इसके बाद केंद्र ने यह फैसला किया. एनसीपी से जुड़े मंत्री ने कहा, ‘मैं इस फैसले की निंदा करता हूं. यह संविधान के खिलाफ है.’

बता दें कि, एल्गार परिषद मामले से ही पुणे पुलिस ने ‘शहरी नक्सल’ शब्द का इस्तेमाल किया था. पुलिस ने कहा था कि उन्हें गिरफ्तार आरोपियों में से एक, दिल्ली स्थित कार्यकर्ता रोना विल्सन का एक पत्र मिला है, जिसमें कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश की ओर इशारा किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)