बोडो संगठन लगभग पांच दशक से पृथक राज्य की मांग करते रहे हैं. केंद्र सरकार ने असम के उग्रवादी समूहों में से एक एनडीएफबी और दो अन्य संगठनों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. समझौते में कहा गया है कि एनडीएफबी के सदस्यों के ख़िलाफ़ ग़ैर-जघन्य आपराधिक मामलों को वापस लिया जाएगा.
नई दिल्ली: असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में स्थायी शांति लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने सोमवार को असम के खूंखार उग्रवादी समूहों में से एक नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और दो अन्य संगठनों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें राजनीतिक और आर्थिक फायदे दिए गए हैं लेकिन अलग राज्य या केंद्रशासित क्षेत्र की मांग पूरी नहीं की गई है.
समग्र बोडो समाधान समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) और यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन (यूबीपीओ) भी शामिल हैं. एबीएसयू 1972 से ही अलग बोडोलैंड राज्य की मांग के लिए आंदोलन चला रहा था.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में त्रिपक्षीय समझौते पर एनडीएफबी के चार धड़ों, एबीएसयू, यूबीपीओ के शीर्ष नेताओं, गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्येन्द्र गर्ग और असम के मुख्य सचिव कुमार संजय कृष्णा ने हस्ताक्षर किए.
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी समझौते पर गवाहों में से एक के रूप में हस्ताक्षर किए.
समझौते पर हस्ताक्षर होने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह समझौता शांति, सद्भाव और एकजुटता की नई सुबह लेकर आएगा और जो लोग सशस्त्र संघर्ष समूहों से जुड़े हुए थे वे मुख्यधारा में शामिल होंगे और राष्ट्र की प्रगति में योगदान देंगे.
उन्होंने कहा कि इस समझौते के बोडो लोगों के लिए परिवर्तनकारी परिणाम होंगे क्योंकि यह प्रमुख पक्षकारों को एक साथ एक प्रारूप में लेकर आएगा और बोडो लोगों की पहुंच विकास केंद्रित पहल तक होगी.
#BodoAgreement – another success of PM’s vision of Sabka Saath, Sabka Vikas, Sabka Vishwas’: Union Home Minister @AmitShah
Presides over the signing of Historic Comprehensive Bodo Settlement Agreement to end the over 50-year-old Bodo Crisishttps://t.co/gHrLRcWzBa pic.twitter.com/sGgXG54TzZ
— PIB India (@PIB_India) January 27, 2020
प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, ‘शांति, सद्भाव और एकजुटता की नई सुबह. आज भारत के लिए एक बेहद खास दिन. बोडो समूहों के साथ आज जिस समझौते पर दस्तखत किए गए, बोडो लोगों के लिए उसके परिवर्तनकारी परिणाम होंगे.’’
गृह मंत्री ने समझौते को ‘ऐतिहासिक’’ करार दिया और कहा कि इससे बोडो लोगों की दशकों पुरानी समस्या का स्थायी समाधान होगा. उन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद कहा, ‘इस समझौते से बोडो क्षेत्रों का सर्वांगीण विकास होगा और असम की क्षेत्रीय अखंडता से समझौता किए बगैर उनकी भाषा और संस्कृति का संरक्षण होगा.’’
गृह मंत्री ने कहा कि बोडो उग्रवादियों की हिंसा में पिछले कुछ दशकों में चार हजार से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी. शाह ने कहा कि असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी.
एनडीएफबी पिछले कुछ दशकों में सिलसिलेवार हिंसक कृत्यों के लिए जिम्मेदार रहा है जिनमें दिसंबर 2014 में लगभग 70 आदिवासियों की हत्या भी शामिल है.
शाह ने कहा, ‘असम की क्षेत्रीय अखंडता को कायम रखते हुए मांगों का एक अंतिम और समग्र समाधान हो चुका है. समझौते पर हस्ताक्षर के बाद एनडीएफबी के धड़े हिंसा का रास्ता छोड़ेंगे, अपने हथियार डाल देंगे और समझौते के एक महीने के भीतर उनके सशस्त्र संगठन भंग कर दिए जाएंगे.’’
असम के मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि समझौते के बाद राज्य में विभिन्न समुदाय सौहार्द के साथ रह सकेंगे और इससे उज्ज्वल भविष्य की नींव पड़ेगी, लोगों की आकांक्षाएं पूरी होंगी.
उन्होंने कहा, ‘असम की शांति और प्रगति के लिए एक ऐतिहासिक दिन. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के दिशा-निर्देशन और नेतृत्व में त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर से दशकों पुराने एक संघर्ष का समाधान हो गया है तथा असम की क्षेत्रीय अखंडता की स्थायी रूप से पुन: पुष्टि हुई है.’’
केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने कहा कि समझौते से बोडो मुद्दे का समग्र समाधान होगा. उन्होंने कहा, ‘यह ऐतिहासिक समझौता है.’’
असम के मंत्री ने कहा कि समझौते के मुताबिक एनडीएफबी के 1,550 उग्रवादी 30 जनवरी को हथियार छोड़ देंगे, अगले तीन वर्षों में 1,500 करोड़ रुपये का आर्थिक कार्यक्रम लागू किया जाएगा जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों की 750 — 750 करोड़ रुपये की बराबर भागीदारी होगी.
केंद्र और राज्य सरकार एनडीएफबी (पी), एनडीएफबी (आरडी) और एनडीएफबी (एस) के लगभग 1,550 कैडरों का पुनर्वास करेंगी. शर्मा ने कहा कि बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद् (बीटीसी) के वर्तमान ढांचे को और शक्तियां देकर मजबूत किया जाएगा तथा इसकी सीटों की संख्या 40 से बढ़ाकर 60 की जाएगी.
बोडो बहुल गांवों को बीटीसी में शामिल करने, गैर बोडो बहुल गांवों को इससे बाहर करने के लिए एक आयोग का गठन किया जाएगा. यह पिछले 27 वर्षों में तीसरा बोडो समझौता है.
पहला समझौता 1993 में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के साथ हुआ था जिसका परिणाम सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ बोडोलैंड स्वायत्त परिषद के रूप में निकला.
दूसरा समझौता 2003 में उग्रवादी समूह ‘बोडो लिबरेशन टाइगर्स’ के साथ हुआ था जिसका परिणाम असम के चार जिलों-कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदलगुड़ी को मिलाकर बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के गठन के रूप में निकला. इन चारों जिलों को बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिला (बीटीएडी) कहा जाता है.
सोमवार को हुए समझौते के अनुसार बीटीएडी का नाम बदलकर अब बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) होगा और इसके पास अधिक कार्यकारी, प्रशासनिक, विधायी तथा वित्तीय शक्तियां होंगी.
बीटीसी का इस समय शिक्षा, वन, बागवानी जैसे 30 से अधिक क्षेत्रों पर नियंत्रण है, लेकिन पुलिस, राजस्व और सामान्य प्रशासनिक विभागों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है और ये असम सरकार के नियंत्रण में हैं. बीटीसी का गठन संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत किया गया था.
असम सरकार जल्द ही बोडो भाषा को राज्य की एक सह-आधिकारिक भाषा के रूप में देवनागरी लिपि में अधिसूचित करेगी.
समझौते में कहा गया है कि पृथक राज्य के लिए हुए आंदोलन में मारे गए लोगों के परिजनों को राज्य सरकार पांच-पांच लाख रुपये देगी और एनडीएफबी के सदस्यों के खिलाफ गैर जघन्य आपराधिक मामलों को वापस लिया जाएगा, जबकि जघन्य अपराधों की मौजूदा नियमों के अनुरूप मामले दर मामले के आधार पर समीक्षा की जाएगी. बोडो संगठन लगभग पांच दशक से पृथक राज्य की मांग करते रहे हैं.
शांति समझौते के विरोध में गैर बोडो संगठनों के बंद से जनजीवन प्रभावित
विभिन्न बोडो पक्षकारों के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर के केंद्र के कदम के विरोध में गैर बोडो संगठनों द्वारा सोमवार को आहूत 12 घंटे के बंद के कारण असम में बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के तहत आने वाले चार जिलों में जनजीवन प्रभावित हुआ है.
आधिकारिक सूत्रों ने पीटीआई-भाषा को बताया कि कोकराझार, बक्सा, चिरांग और उदलगुड़ी जिलों में जनजीवन प्रभावित हुआ है, लेकिन बंद का असर राज्य के अन्य हिस्सों पर नहीं पड़ा है.
कोकराझार जिले के कुछ हिस्सों में टायर जलाए गए, लेकिन अब तक किसी अप्रिय घटना की कोई खबर नहीं है. सभी शैक्षिक संस्थान बंद रहे. हालांकि, कॉलेजों में पूर्व निर्धारित कुछ परीक्षाएं हुईं. सड़कों पर वाहनों की आवाजाही नजर नहीं आई और सभी दुकानें तथा कारोबारी प्रतिष्ठान बंद हैं.
पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के एक प्रवक्ता ने बताया कि रेल सेवाएं बंद से बेअसर हैं और सभी बड़ी ट्रेन समय पर चल रही हैं.
गैर बोडो संगठनों की मांग है कि बोडोलैंड क्षेत्रीय प्रशासनिक जिलों (बीटीएडी) में रह रहे सभी गैर बोडो लोगों को शांति समझौते में शामिल किया जाना चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)