बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के एक दिन बाद बातचीत के लिए आगे आने की अपील की पर उल्फा-आई के प्रमुख परेश बरुआ ने कहा कि यदि हम एक संप्रभु और स्वतंत्र असम के बारे में चर्चा करने और इस मुद्दे पर निष्कर्ष पर आने में सक्षम हैं, तो हम निश्चित रूप से इस तरह के एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे.
गुवाहाटी: बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के एक दिन बाद असम के वरिष्ठ मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार उल्फा (आई) गुट के साथ शांति वार्ता के लिए तैयार है. पूर्वोत्तर में ‘स्थायी शांति’ के लिए उन्होंने यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) गुट के नेता परेश बरुआ से बातचीत के लिए आगे आने की अपील की.
पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (नेडा) के संयोजक सरमा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को स्पष्ट रूप से कहा था कि अगर उल्फा (आई) गुट वार्ता के लिए तैयार है, तो असम और पूर्वोत्तर में स्थायी शांति के लिए केंद्र बातचीत को उनसे कहीं अधिक इच्छुक है.’
उन्होंने कहा, ‘यह पहली बार है कि सरकार उल्फा (आई) से वार्ता के लिए सार्वजनिक अपील कर रही है. यदि वे वार्ता के इच्छुक हैं, तो केंद्र असम और पूर्वोत्तर में स्थायी शांति की इच्छा और समान शक्ति के साथ इस पर आगे बढ़ेगा.’
राज्य के शिक्षा मंत्री सरमा ने बोडो समझौते का जिक्र करते हुए कहा, ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के सभी गुटों के साथ चर्चा के माध्यम से सोमवार को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. केंद्र और राज्य सरकार बातचीत के माध्यम से क्षेत्र में शांति चाहते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इस संदर्भ में, मैं बरुआ और उनके वार्ता-विरोधी गुट से अनुरोध करना चाहूंगा कि वे एक सार्थक वार्ता में शामिल होने पर विचार करें. केंद्र और राज्य सरकार इस क्षेत्र में शांति चाहते हैं.’
उन्होंने कहा कि असम और मणिपुर के कुछ उग्रवादी संगठनों को छोड़कर पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकतर उग्रवादी संगठन बातचीत कर रहे हैं, लेकिन अगर हम इस क्षेत्र में शांति चाहते हैं, तो वार्ता में सभी गुटों और संगठनों को शामिल होना होगा.
सरमा ने कहा, ‘अब केवल असम और मणिपुर में ही कुछ उग्रवादी गतिविधियों की सूचना है. इसलिए, हम उनसे (विद्रोहियों) मुख्यधारा में शामिल होने और स्थायी शांति के लिए केंद्र के साथ चर्चा करने का अनुरोध कर रहे हैं.’ उन्होंने जनता से भी अपील की कि वह उल्फा (आई) से बातचीत के लिए आगे आने का आग्रह करें.
सरमा ने कहा, ‘अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा के वार्ता-समर्थक गुट पहले से ही केंद्र के साथ बातचीत में शामिल है और यह जारी रहेगा लेकिन स्थायी शांति के लिए, यह आवश्यक है कि सभी संगठन और उनके गुट बातचीत की मेज पर आएं.’
उन्होंने कहा कि इससे पूर्व दो बोड़ो समझौतों पर दस्तख्वत किए गए लेकिन इससे भी बोडोलैंड टेरिटोरियल एडमिनस्ट्रेटिव डिस्ट्रिक (बीटीएडी) में शांति बहाल नहीं हुई, क्योंकि पिछली वार्ताओं में एनडीएफबी शामिल नहीं थी.
सरमा ने कहा कि इस बार सभी चारों गुट वार्ता में शामिल हुए और एक एतिहासिक समझौता हुआ है.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, वहीं, उल्फा-आई के प्रमुख परेश बरुआ ने मंगलवार को कहा कि प्रतिबंधित संगठन केंद्र के साथ बातचीत में तभी शामिल होगा जब संप्रभुता मुख्य एजेंडा हो.
गुवाहाटी के एक स्थानीय समाचार चैनल को एक टेलीफोनिक साक्षात्कार में बरुआ ने कहा कि संगठन केवल औपचारिकताएं नहीं होने पर वार्ता में शामिल होगा, विश्वास के माहौल में बातचीत होती है और संप्रभुता ‘एक-बिंदु एजेंडा’ होगी.
उन्होंने कहा, ‘हम संप्रभुता की मांग कर रहे हैं और यह हमारे लिए एक बिंदु एजेंडा है. यह बातचीत की मेज पर होना चाहिए. चर्चा के लिए दिल्ली जाने की आवश्यकता नहीं है, हम चाहते हैं कि वार्ता असम में हो.’
1979 में एक संप्रभु असम बनाने के उद्देश्य से गठित उल्फा असम में सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन है. उल्फा के पूर्व अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व में एक गुट 2011 में शांति प्रक्रिया में शामिल हो गया, लेकिन बरुआ ने अपने गुट का नाम बदलकर उल्फा (स्वतंत्र) कर दिया, जिसने आज तक वार्ता के सभी प्रस्तावों को रद्द कर दिया है.
साक्षात्कार में बरुआ ने साफ किया कि एनडीएफबी का मुख्य एजेंडा एक अलग राज्य का निर्माण था जबकि उल्फा के लिए अलग है, जो संप्रभुता की मांग कर रहा है और इसलिए दोनों मांगों को एक ही संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए.
बरुआ ने कहा, ‘हम उन वार्ताओं में शामिल नहीं होंगे जो हमें औपचारिकताओं में बांधती हैं. हम एक बिंदु के एजेंडे के साथ सकारात्मक माहौल में वार्ता चाहते हैं. सरकार को ईमानदार होना चाहिए. हम हमेशा सकारात्मक होते हैं लेकिन केंद्र के उद्देश्यों के बारे में संदेह रखते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यदि हम एक संप्रभु और स्वतंत्र असम के बारे में चर्चा करने और इस मुद्दे पर निष्कर्ष पर आने में सक्षम हैं, तो हम निश्चित रूप से इस तरह के एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे.’ ऐसा माना जाता है कि बरुआ म्यांमार या चीन में छिपे हुए हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)