सीएए विरोधी शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले राष्ट्रद्रोही और गद्दार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ होने वाले एक प्रदर्शन पर धारा 144 के तहत रोक लगाने वाले आदेश को रद्द करते हुए कहा कि देश को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता विरोध प्रदर्शनों के ज़रिये ही मिली थी.

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New Delhi: Protestors hold placards during a protest march from Mandi House to Jantar Mantar against the amended Citizenship Act, NRC and NPR, in New Delhi, Monday, Feb. 10, 2020. (PTI Photo/Kamal Singh) (PTI2_10_2020_000064B)

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ होने वाले एक प्रदर्शन पर धारा 144 के तहत रोक लगाने वाले आदेश को रद्द करते हुए कहा कि देश को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता विरोध प्रदर्शनों के ज़रिये ही मिली थी.

New Delhi: Protestors hold placards during a  protest march from Mandi House to Jantar Mantar against the amended Citizenship Act, NRC and NPR, in New Delhi, Monday, Feb. 10, 2020. (PTI Photo/Kamal Singh) (PTI2_10_2020_000064B)
सीएए-एनआरसी के खिलाफ नई दिल्ली में हुआ एक प्रदर्शन. (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने गुरुवार को संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों को लेकर टिप्पणी की.

बेंच ने कहा कि उन्हें केवल इसलिए देशद्रोही और गद्दार नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे एक कानून का विरोध कर रहे हैं. बेंच ने सीएए के खिलाफ आंदोलन के लिए पुलिस द्वारा अनुमति न दिए जाने के खिलाफ डाली गई याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही.

लाइव लॉ के मुताबिक एक महत्वपूर्ण फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन के मद्देनजर आयोजित विरोध और प्रदर्शनों को प्रतिबंधित करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत पारित एक आदेश को रद्द कर दिया है.

जस्टिस टीवी नलवाड़े और जस्टिस एमजी सेवलिकर की खंडपीठ ने इफ्तिखार ज़की शेख़ की याचिका पर यह फैसला दिया है.

शेख़ ने बीड़ जिले के मजलगांव में पुराने ईदगाह मैदान में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अनुरोध किया था, हालांकि बीड़ के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की ओर से धारा 144 लागू किए के आदेश का हवाला देते हुए उन्हें अनुमति नहीं दी गई.

अदालत ने कहा कि भले ही धारा 144 के आदेश को आंदोलनों पर लगाम लगाने के लिए लागू किया गया था, लेकिन इसका असली उद्देश्य सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को चुप कराना था. आदेश में नारेबाजी, गाने और ढोल बजाने पर भी रोक लगाई गई थी.

अदालत ने कहा, ‘यह कहा जा सकता है कि आदेश देखने में सभी के खिलाफ प्रतीत होता है, लेकिन यह आदेश उन लोगों के खिलाफ है जो आंदोलन करना चाहते हैं, सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना चाहते हैं. वर्तमान में ऐसे आंदोलन हर जगह चल रहे हैं और इस इलाके से किसी अन्य आंदोलन की सूचना नहीं है. इसलिए यह कहा जा सकता है यह आदेश निष्पक्ष और ईमानदार हीं है.’

साथ ही कोर्ट ने कहा कि सीएए का विरोध कर रहे व्यक्तियों को देशद्रोही या राष्‍ट्र विरोधी नहीं कहा जा सकता है और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के उनके अधिकार पर निश्‍चित रूप से विचार किया जाना चाहिए.

अदालत ने 13 फरवरी को दिए आदेश में कहा, ‘यह अदालत कहना चाहती है कि ऐसे व्यक्तियों को देशद्रोही या राष्ट्रभक्त नहीं कहा जा सकता है, वह भी केवल इसलिए कि वे एक कानून का विरोध करना चाहते हैं.’

जजों ने आदेश में यह भी याद किया कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता विरोध प्रदर्शनों के जर‌िए ही हासिल की थी.

कोर्ट ने कहा, ‘यह कहा जा सकता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन लोगों को अब अपनी सरकार के खिलाफ आंदोलन करने की आवश्यकता है, केवल उस आधार पर आंदोलन को दबाया नहीं जा सकता है.’

अदालत ने कहा कि अगर आंदोलन करने वाले लोग यह मानते हैं कि सीएए अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त ‘समानता’ के अधिकार के ख‌िलाफ है, तो उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अपनी भावनाओं का अभिव्यक्त करने का अधिकार है.

अदालत ने आगे कहा कि यह सुनिश्चित करने का उसका कर्तव्य है कि नागरिकों के आंदोलन के अधिकार को बरकरार रखा जाए. यह तय करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है कि विरोध प्रदर्शन के पीछे का कारण वैध है, यह विश्वास का विषय है.

कोर्ट ने कहा, ‘हम एक लोकतांत्रिक गणराज्य हैं और हमारे संविधान ने हमें कानून का शासन दिया है, न कि बहुमत का शासन. जब ऐसा कानून बनाया जाता है तो कुछ लोगों, वे किसी विशेष धर्म के भी हो सकते हैं जैसे कि मुसलमान को लग सकता है कि यह उनके हितों के खिलाफ है और विरोध करने की आवश्यकता है. यह उनकी धारणा और विश्वास का मामला है.’

कोर्ट उस धारणा या विश्वास के गुणवत्ता का मूल्यांकन नहीं कर सकती है. कोर्ट यह देखने के लिए बाध्य है कि क्या इन व्यक्तियों को आंदोलन करने का, कानून का विरोध करने का अधिकार है. अगर अदालत ये पाती है कि यह उनके मौलिक अधिकार का हिस्सा है, तो यह तय करना अदालत पर नहीं है कि इस तरह के अधिकार का प्रयोग कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा करेगा या नहीं.’

आगे अदालत ने कहा कि यह सरकार द्वारा बनाए गए कानून के खिलाफ लोगों का असंतोष है और नौकरशाही को, कानून द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए संवेदनशील होने की आवश्यकता है. दुर्भाग्य से स्वतंत्रता पाने के बाद कई कानूनों को रद्द कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें अब तक जारी रखा गया है. नौकरशाही अब उनका इस्तेमाल आज़ाद भारत के नागरिकों के खिलाफ कर रही है.

अदालत ने कहा कि नौकरशाही में शामिल अधिकारी, जिन्हें शक्तियां दी गई हैं, उन्हें संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में शामिल मानवाधिकारों का उचित प्रशिक्षण देकर संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है.

बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान धारा 144 लगाने को गैरकानूनी बताया है.