मध्य प्रदेश के सतना ज़िले की एक महिला द्वारा अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को राज्य की बिजली कंपनी ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि सरकार की नीति के तहत अनुकंपा नियुक्ति का लाभ सिर्फ पुत्र, अविवाहित पुत्री, विधवा पुत्री या तलाक़शुदा पुत्री को ही दिया जा सकता है.
भोपाल: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि विवाहित महिलाओं को अनुकंपा पर नियुक्ति के अधिकार से वंचित करने वाली नीति समानता के अधिकार का हनन है.
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस सुजॉय पॉल, जस्टिस जेपी गुप्ता और जस्टिस नंदिता दुबे की पीठ ने कहा कि अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति के लिए शादीशुदा पुत्री के नाम पर विचार न करने की सरकार की नीति संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.
हाईकोर्ट उस संदर्भ का जवाब दे रहा था जिसमें यह सवाल उठाया गया था कि क्या अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के मामले में राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई नीति के क्लॉज 2.2 और 2.4 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25 और 51(ए)(ई) का उल्लंघन कहा जा सकता है, जिसमें आश्रितों की निश्चित श्रेणी निर्धारित की गई है, जिसके तहत अविवाहित, विधवा और तलाकशुदा पुत्री को शामिल किया गया है.
यदि सरकारी कर्मचारी के पास केवल विवाहित पुत्री है और वह पूरी तरह से पिता पर आश्रित थी, ऐसी स्थिति में विवाहित पुत्री को अपने मृतक पिता के अन्य आश्रितों की जिम्मेदारी वहन करने को लेकर अंडरटेकिंग देना होगा.
राजस्थान पत्रिका के मुताबिक सतना जिले की अमरपाटन तहसील के ग्राम खूटा निवासी मीनाक्षी दूबे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता के पिता मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में लाईनमेन के पद पर कार्यरत थे जिनका 5 अप्रैल, 2016 को निधन हो गया. उसके बाद याचिकाकर्ता ने अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए बिजली कंपनी में आवेदन दिया था.
कंपनी ने उसके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि राज्य की 12 दिसंबर, 2014 की नीति के तहत अनुकंपा नियुक्ति का लाभ सिर्फ पुत्र, अविवाहित पुत्री, विधवा पुत्री या तलाकशुदा पुत्री को ही दिया जा सकता है. कंपनी के इस फैसले के खिलाफ मीनाक्षी दुबे ने हाईकोर्ट का रुख किया था.
पीठ ने कहा है कि लिंग के आधार पर भेदभाव के सभी प्रकार मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं और सरकार को महिलाओं के साथ भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानून/नीति को संशोधित करने तथा महिला–विरोधी मौजूदा कानूनों, नियमों, रीति–रिवाजों और प्रथाओं को समाप्त करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए.
पीठ ने कहा कि यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संबंधित क्लॉज 2.2 एक हद तह विवाहित महिला को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए विचार किए जाने से वंचित करता है, यह समानता के अधिकार का हनन करता है और इसे सही नहीं ठहराया जा सकता.
क्लॉज 2.4 लाकर सरकार ने आंशिक तौर पर विवाहित बेटी के नाम पर विचार के अधिकार को मान्यता तो दी है, लेकिन यह अधिकार ऐसी बेटियों तक ही सीमित था, जिसका कोई भाई नहीं था.
क्लॉज 2.2 मृतक सरकारी कर्मचारी की पत्नी/पति को पुत्र या अविवाहित बेटी को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी के लिए नामित करने का विकल्प देता है.
इसमें बेटे के नाम पर विचार करते वक्त उसके विवाहित होने को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है, जबकि पुत्री के मामले में ‘अविवाहित‘ शर्त जोड़ा गया है. कोर्ट ने कहा कि यह शर्त बगैर किसी औचित्य के है और इसलिए यह मनमाना एवं भेदभावपूर्ण है.