सीएए प्रदर्शन में शामिल हुए पोलैंड के छात्र को नहीं छोड़ना होगा देश, हाईकोर्ट ने रद्द किया आदेश

पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय में साहित्य विभाग में मास्टर डिग्री के छात्र कामिल सिदेंजस्की पर आरोप है कि उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून विरोधी रैली में हिस्सा लिया था. छात्र ने अदालत से केंद्र सरकार के आदेश को रोकने और केंद्र को अपना आदेश वापस लेने के लिए निर्देश देने की मांग की थी.

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कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: Twitter/@LexisNexisIndia)

पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय में साहित्य विभाग में मास्टर डिग्री के छात्र कामिल सिदेंजस्की पर आरोप है कि उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून विरोधी रैली में हिस्सा लिया था. छात्र ने अदालत से केंद्र सरकार के आदेश को रोकने और केंद्र को अपना आदेश वापस लेने के लिए निर्देश देने की मांग की थी.

कलकत्ता हाईकोर्ट (फोटो साभार: Twitter/@LexisNexisIndia)
कलकत्ता हाईकोर्ट (फोटो साभार: Twitter/@LexisNexisIndia)

कलकत्ता: कलकत्ता हाईकोर्ट ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ राजधानी कोलकाता में आयोजित रैली में भाग लेने के लिए पोलैंड के छात्र को भारत छोड़ने के केंद्र सरकार के आदेश को रद्द कर दिया. कामिल सिदेंजस्की पर आरोप है कि उसने यूनिवर्सिटी में सीएए विरोधी रैली में हिस्सा लिया था.

लाइव लॉ के मुताबिक कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यलय (एफआरआरओ) कोलकाता की तरफ से एक पोलिश छात्र को जारी ‘लीव इंडिया’ नोटिस को रद्द कर दिया है,जो कथित रूप से एक एंटी- सीएए प्रोटेस्ट में भाग लेने के कारण जारी किया गया था.

जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह पोलैंड के नागरिक जो जादवपुर विश्वविद्यालय में पढ़ता है को दिए गए नोटिस को लागू न करें या अमल में न लाएं.

बीते 6 मार्च को अदालत ने नोटिस की कार्यवाही या अमल करने पर रोक लगा दी थी, जिसमें पोलैंड के नागरिक को 9 मार्च से पहले भारत छोड़ने के लिए कहा गया था.

जादवपुर विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग में मास्टर डिग्री के लिए दाखिला लेने वाले पोलैंड के छात्र कामिल सिडक्जइनस्की को 14 फरवरी को एफआरआरओ कोलकाता की तरफ से ‘भारत छोड़ो’ का नोटिस जारी किया था.

ऑउटलुक के मुताबिक छात्र ने ‘भारत छोड़ो नोटिस’ के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. छात्र ने अदालत से केंद्र सरकार के आदेश को रोकने और केंद्र को अपना आदेश वापस लेने के लिए निर्देश देने की मांग की थी.

नोटिस में कहा गया है कि छात्र कथित रूप से सरकार विरोधी गतिविधियों में शामिल था, जो कि वीजा नियमों का उल्लंघन है. हालांकि छात्र ने इस आरोप को खारिज किया है.

पोलैंड के नागरिक की प्रार्थना या अनुरोध का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने अदालत में कहा कि एक छात्र वीजा धारक होने के नाते एक विदेशी भारतीय संसद द्वारा पारित कानून को चुनौती नहीं दे सकता है.

केंद्र सरकार के वकील फिरोज एडुलजी ने कहा कि एक विदेशी संविधान के अनुच्छेद 19 को चुनौती नहीं दे सकता क्योंकि यह उस पर लागू नहीं होता है.

एडुलजी ने आगे कहा कि एक फील्ड रिपोर्ट के आधार पर एफआरआरओ ने यह नोटिस जारी किया था. इस नोटिस में उसे प्राप्त होने के 14 दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है. साथ ही अधिकारियों को उसे निर्वासित करने से भी रोका जाए.

नोटिस में पौलेंड के इस छात्र पर आरोप लगाया गया है कि वह सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त है और इस तरह वीजा नियमों का उल्लंघन कर रहा हैै, जिसे छात्र ने अस्वीकार कर दिया है या गलत बताया है.

छात्र के वकील जयंत मित्रा ने अदालत में बताया कि  19 दिसंबर, 2019 को वह आउटिंग पर गया हुआ था. उसी समय उसे जादवपुर विश्वविद्यालय के अन्य छात्रों के साथ शहर के न्यू मार्केट क्षेत्र में एक कार्यक्रम में जाने के लिए राजी किया गया था या ले जाया गया था.

अदालत को यह भी बताया गया कि छात्र ने यह सब अनजाने में और जिज्ञासा के चलते किया था. मित्रा ने कहा कि यह भी मालूम हुआ है कि यह आयोजन एक शांतिपूर्ण विरोध था, जो विभिन्न वर्गों के लोगों द्वारा आयोजित किया गया था.

उन्होंने दावा किया कि छात्र जल्द ही दूसरों से अलग हो गया था और एक दर्शक के रूप में किनारे पर खड़ा था.

छात्र ने दावा किया कि उससे एक व्यक्ति ने कुछ सवाल पूछे और उसकी तस्वीर भी क्लिक की और बाद में उसे मालूूम हुआ कि वह एक बंगाली दैनिक का फोटो जर्नलिस्ट था, जहाँ उसकी फोटो और उससे संबंधित कुछ खबर प्रकाशित हुई थी. मित्रा ने दावा किया कि रिपोर्ट में कुछ बयानों को गलत तरीके से बताया गया था.

मित्रा ने अदालत के समक्ष दावा किया कि नोटिस 24 फरवरी को छात्र को मिला था और जिसमें उसे एफआरआरओ के पास जाने के लिए कहा गया था, वह मनमाना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत था.

उन्होंने कहा कि यह भारत के दायित्वों के अनुरूप नहीं है और यह मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948) और नागरिक व राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (1966)  के तहत उल्लिखित सिद्धांतों का अपमान या अनादर भी है, जो सभी व्यक्तियों पर लागू होते हैं.

मित्रा ने दलील दी कि यह छात्र पोलैंड में श्जेजीन नामक जगह का निवासी है और वह 2016 से भारत में पढ़ाई कर रहा है. जादवपुर विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम में दाखिला लेने से पहले ही वह छात्रवृत्ति पर विश्व-भारती विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त कर चुका है. वह जादवपुर विश्वविद्यालय में अंतिम सेमेस्टर में है और उसकी परीक्षाएं अगस्त तक पूरी होने वाली हैं.