लॉकडाउन में पलायन: आठ सौ किलोमीटर, साठ घंटे और दस मज़दूरों का संघर्ष

कोरोना संक्रमण के मद्देनज़र हुए लॉकडाउन के बाद दस मज़दूर हरियाणा के बल्लभगढ़ से उत्तर प्रदेश के देवरिया में अपने घर पहुंचे हैं. 800 किलोमीटर की यह यात्रा उन्होंने तीन दिनों में पैदल, ट्रक, ऑटो और सरकारी बस की मदद से पूरी की.

//
फोटो: रॉयटर्स

कोरोना संक्रमण के मद्देनज़र हुए लॉकडाउन के बाद दस मज़दूर हरियाणा के बल्लभगढ़ से उत्तर प्रदेश के देवरिया में अपने घर पहुंचे हैं. 800 किलोमीटर की यह यात्रा उन्होंने तीन दिनों में पैदल, ट्रक, ऑटो और सरकारी बस की मदद से पूरी की.

Deoria Workers at Kosikalan
मथुरा के कोसीकलां में बल्लभगढ़ से देवरिया के लिए निकले मजदूर. (फोटो: special arrangement)

देशव्यापी लॉकडाउन के बाद हरियाणा के बल्लभगढ़ से यूपी के देवरिया जिले के बघौचघाट के लिए चले 10 मजदूर 60 घंटे बाद मुसीबत दर मुसीबत झेलते रविवार की सुबह अपने गांव पहुंच गए.

बल्लभगढ़ से अपने गांव की करीब 800 किलोमीटर की दूरी उन्होंने भूखे-प्यासे कहीं पैदल तो कहीं ऑटो, तो कहीं पानी के टैंकर व ट्रक से पूरी की. इस दौरान वे 100 किलोमीटर से अधिक पैदल चले.

इस 60 घंटे की त्रासद यात्रा में हर मजदूर के खून-पसीने की कमाई के 1200-1200 रुपये भी खर्च हो गए.

देवरिया के इन मजदूरों की व्यथा-कथा कोरोना महामारी के मद्देनजर बिना ठोस इंतजाम के किए गए देशव्यापी लॉकडाउन में मुसीबत झेल रहे लाखों कामगारों की दास्तां है.

सरकारों की बदइंतजामी और बेरूखी के बीच उनकी अदम्य जिजीविषा ही थी कि वे सुरक्षित अपने घरों तक पहुंच सके.

सोमवार को जब इन मजदूरों से फोन पर संपर्क हुआ तो सबने यही कहा कि जिंदा हैं और घर पहुंच गए हैं. यह 60 घंटे उनके लिए एक भयानक दुस्वप्न सरीखा है और अब तक उनके पांव सूजे हुए हैं.

देवरिया जिले के बघौचघाट के कोईरीपट्टी के 10 मजदूर- आशुतोष यादव, संतोष राजभर, शैलेश राजभर, मनोज राजभर, अर्जुन राजभर, अर्जुन गोंड, जैनुद्दीन अंसारी, बिट्टू प्रसाद व दो अन्य होली बाद हरियाणा के फरीदाबाद जिले के बल्लभगढ़ के पास सिकड़ी गांव में एक कंस्ट्रक्शन वर्कशाप में काम करने गए थे.

इस वर्कशाप में बिल्डिंग के लिए कॉलम तैयार करने का कार्य होता है. वे लोग वहां पहले भी काम कर चुके थे. वहां एक घर में किराये पर रहते थे और मिल-जुलकर खाना बनाते थे.

कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद इनको काम देने वाला ठेकेदार इन्हें एक-एक हजार रुपये देकर भाग खड़ा हुआ. इसके बाद इन मजदूरों के पास वापस अपने गांव लौटने के अलावा कोई और चारा नहीं था.

इनके साथ बिहार के मोतिहारी जिले के एक मजदूर उज्जवल दुबे भी थे. सभी मजदूरों ने वापस घर लौटने का फैसला किया.

ये मजदूर बल्लभगढ़ से गुरूवार को दोपहर बाद चार बजे निकले. जब उन्हें यातायात का कोई साधन नहीं मिला तो वे पैदल चल पड़े. छह घंटे तक करीब 24 किलोमीटर पैदल चलने के बाद वे पलवल पहुंचे जहां उन्हें एक बस मिल गयी.

बस चालक ने उन्हें मथुरा के तीन किलोमीटर पहले पहुंचाने का वादा किया लेकिन वह उन्हें कोसीकलां में ही छोड़कर चला गया. पूरी रात इन मजदूरों ने कोसीकलां के सब्जी मंडी परिसर में गुजारी.

यहां दिल्ली, हरियाणा व अन्य प्रांतों से अपने गांव के लिए चले एक हजार से अधिक मजदूर भी एकत्र थे.

आशुतोष यादव ने बताया कि शुक्रवार की सुबह से सभी मजदूर यातायात के साधन का इंतजार करने लगे. यहां रुके मजदूर यूपी व बिहार के कई जिलों के थे.

अगली सुबह झांसी के मजदूरों को ले जाने के लिए तीन सरकारी बसें आयीं और रवाना भी हुईं, लेकिन कुछ देर बाद वे सभी को वापस लेकर आ गयीं.

मजदूरों का कहना था कि सरकार ने उन्हें गंतव्य तक पहुंचाने के लिए ये बसें निशुल्क चलायी हैं लेकिन उनसे किराया मांगा जा रहा था.

बस चालक व परिचालक का कहना था कि उन्हें किराया न लेने के बारे में कोई आदेश नहीं मिला है. इसी विवाद में बसें वापस आयीं.

देवरिया के मजदूर सुबह दस बजे कानपुर तक जाने वाली एक बस में बैठे. इसमें कानपुर व अन्य स्थानों तक जाने वाले मजदूर भी थे.

बस के चालक व परिचालक द्वारा कहा गया कि कानपुर तक के लिए उन्हें छह सौ रुपये देने पड़ेंगे. मजबूरी में अधिकतर मजदूर किराया देने को तैयार भो हो गए लेकिन दोपहर ढाई बजे तक यह बस चली ही नहीं और बाद में कह दिया गया कि अब कोई बस नहीं जाएगी.

मजबूरन सभी मजदूरों को बस से उतरना पड़ा. इसी बीच मजदूरों को बाहर जाने से रोकने के लिए मंडी परिसर का गेट भी बंद कर दिया गया था.

आशुतोष व उनके साथी कई घंटे बाद किसी तरह मंडी परिसर से निकल सके. बाहर आने पर उन्हें एक ऑटो मिल गया, जो उन्हें मथुरा तक ले गया. मथुरा पहुंचते-पहुंचते उन्हें शाम हो गई.

मथुरा में एक पुलिसकर्मी ने रहम कर इन मजदूरों को आगरा की तरफ जा रहे एक ट्रक में बिठा दिया. मथुरा में भी हजारों मजदूर अपने गांव जाने के लिए जमा थे लेकिन उन्हें कोई वाहन नहीं मिल पा रहा था.

ट्रक से ये 11 मजदूर रात 10.30 बजे आगरा पहुंचे. वहां वे पानी के टैंकर पर सवार हो गए, जो उन्हें शनिवार की सुबह करीब 3.30 बजे कानपुर छोड़ गया.

कानपुर में मजदूरों को कोई वाहन नहीं मिला तो वे पैदल चल पड़े. पैदल चलते-चलते उन्होंने 35 किलोमीटर की दूरी नापी और उन्नाव के पास दही चौरहे पर पहुंचे. तब तक सुबह के 10.30 बज चुके थे.

कुछ देर आराम करने के बाद ये फिर पैदल चल पड़े. करीब 15 किलोमीटर चलने के बाद उन्हें एक ट्रक मिला जो उन्हें लखनऊ बाईपास पर छोड़ गया.

वे यहां से पैदल चलकर दोपहर 12 बजे चारबाग बस स्टेशन पहुंचे. यहां उनकी स्क्रीनिंग की गयी. सरकारी इंतजाम का पहला दर्शन उन्हें यहां तब हुआ, जब उन्हें भोजन के पैकेट दिए गए.

यहां उन्हें गोरखपुर के लिए एक बस में बिठाया गया, जो उन्हें लेकर रात 10 बजे गोरखपुर पहुंची. बस में सवार हर मजदूर को बतौर टिकट 370 रुपये देने पड़े.

गोरखपुर में एक बार फिर उनकी स्क्रीनिंग हुई. एक घंटे बाद इनको देवरिया के लिए बस मिली. यहां पर उज्जवल दुबे अपने साथियों से अलग हुए क्योंकि उन्हें बिहार के मोतिहारी जिले को जाना था.

देवरिया के लिए चली बस चौरीचौरा पहुंचकर रुक गयी. काफी देर रुकने के बाद बस कुछ दूर पीछे आयी और रुक गयी. ये यात्री समझ नहीं पाए बस को क्यों रोका गया है.

एक घंटे तक रुकने के बाद जब बस चली तो मजदूरों की जान में जान आयी. रात ढाई बजे बस देवरिया पहुंची. इस बस में सवार सभी मजदूरों को टिकट के पैसे देने पड़े. देवरिया में सभी मजदूरों के नाम-पते नोट किए गए.

यहां से मजदूरों को बघौचघाट होते हुए अपने गांव पहुंचना था. यहां से उन्हें कोई वाहन नहीं मिला. तभी बस अड्डे पर मजदूरों को बघौचघाट के एक सिपाही दिख गए.

मजदूरों ने उनसे अपना दर्द बयां किया. उन्होंने इन मजदूरों के लिए एक ऑटो की व्यवस्था की. ऑटो चालक को पथरदेवा तक जाना था, इसलिए वह तैयार हो गया.

ऑटो से सभी मजदूर पथरदेवा पहुंचे. यहां से वे करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करते हुए रविवार की सुबह सात बजे अपने घर पहुंचे.

मजदूरों के इस दल में दो लोगों-आशुतोष और जैनुद्दीन अंसारी के पास मोबाइल था. मथुरा के कोसीकलां के बाद इन मजूदरों के मोबाइल डिस्चार्ज हो गए.

इसके बाद से वे अपने घर वालों से संपर्क नहीं कर पा रहे थे. रविवार की सुबह जब सभी अपने घर पहुंचें, तो घर वालों की जान में जान आयी.

गांव के प्रधान ने मजदूरों से उनकी जांच आदि के बारे में जानकारी ली है. आशुतोष यादव ने बताया इसके पहले वह कभी इतनी दूर तक पैदल नहीं चले थे. उनके पैर फूल गए हैं.

बल्लभगढ़ के सिकड़ी गांव में जहां वे लोग रहते थे, उनका काफी सामान रखा हुआ है. हालात ठीक होने पर जाने के बारे में विचार करेंगे.

उन्होंने कहा कि होली के बाद ही वे सभी लोग बल्लभगढ़ गए थे. यदि उन्हें पता होता कि एक पखवाड़े बाद ही उन्हें लौटना पड़ेगा और वह भी इस तरह, तो वे जाते ही नहीं.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25