राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते दिल्ली, हरियाणा जैसे कई राज्यों से जैसे-तैसे उत्तर प्रदेश तक पहुंचे बिहार के मज़दूरों को राज्य की सीमा पर रोक दिया गया था. आरोप है कि बिहार सरकार ने मज़दूरों के लिए जो दावे और वादे किए थे, वैसा कोई इंतज़ाम नहीं था. न प्रशासन की ओर से उनके खाने-पीने की व्यवस्था थी, न ही उनकी स्क्रीनिंग की.
कोरोनावायरस के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण रोजी-रोटी की आस खत्म होने पर अपने घरों के लिए निकले प्रवासी मजदूरों को सरकार की बदइंतजामी, बेरूखी और पुलिस की लाठियों का तो सामना करना ही पड़ा, अपने ही देश के राज्यों की सरहदें भी उनका रास्ता रोक खड़ी हो गईं.
दिल्ली, हरियाणा की सरहद को पार कर जब बिहार के मजदूर किसी तरह यूपी बॉर्डर पर पहुंचे, तो दोनों राज्यों की सरहद पर खड़े पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी उनके लिए बाधा बन गए.
यूपी की सीमा पार कर बिहार पहुंचने के लिए भी उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी.
दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान से चलकर यूपी होते हुए बिहार के सैकड़ों मजदूर जब बिहार बॉर्डर पर पहुंचे तो उन्हें यहां भी काफी मुसीबत झेलनी पड़ी.
लॉकडाउन के बीच तीन दिन तक यूपी की बसें चलने के बाद 31 मार्च की सुबह से उनका संचालन बंद हो गया है और जहां-तहां फंसे प्रवासी मजदूरों को स्कूलों व अन्य स्थानों पर रोका जा रहा है.
सैकड़ों मजदूर जगह-जगह फंसे हुए हैं और जानने वाले लोगों से मदद की गुहार लगा रहे हैं. तमाम मजदूर रोके जाने की डर से मुख्य सड़कों के बजाय गांव की सड़कों व पगडंडियों से होकर चल रहे है.
यूपी-बिहार के बॉर्डर पर 31 मार्च की सुबह से यूपी पुलिस ने किसी को भी बिहार की तरफ जाने नहीं दिया. पिछले तीन दिनों में इस रास्ते से करीब चार हजार प्रवासी मजदूर बिहार के विभिन्न जिलों में गए.
यूपी सरकार द्वारा लॉकडाउन के कारण जगह-जगह फंसे प्रवासी मजदूरों के 28, 29 व 30 मार्च को एक हजार बसें चलायी गयी थीं.
इन बसों में सवार होकर बिहार के सैकड़ों मजदूर भी आए. इन मजदूरों को बिहार बॉर्डर पर लाकर छोड़ दिया गया.
यूपी के देवरिया जिले के मेहरौना नाम की जगह से बिहार की सीमा शुरू होती है. यहां से इन तीन दिनों में करीब चार हजार बिहारी मजदूर बॉर्डर पार कर अपने-अपने जिलों को गए हैं.
शुरू में बिहार के सीवान जिले के प्रशासन द्वारा इन मजदूरों को रोकने की कोशिश की गयी. बॉर्डर पार कर आए 90 मजदूरों को बिहार के सीवान जिले के अधिकारियों और पुलिस ने रोक लिया और ट्रक पर बिठाकर वापस यूपी छोड़ने के लिए चल दिए.
यह जानकारी होने पर दरौली विधानसभा क्षेत्र के भाकपा माले के विधायक सत्यदेव राम ने कड़ा विरोध जताया. वह पहले से ही गुठनी चौराहे पर मौजूद थे.
उन्होंने ट्रक को रोका और अधिकारियों से कहा कि संक्रमण से बचाव के लिए सभी सुरक्षात्मक उपाय करते हुए मजदूरों को उनके जिलों में भेजा जाना चाहिए. इतनी मुसीबत झेल कर यहां आए मजदूरों को वापस यूपी भेजना ठीक नहीं है.
विधायक के कड़े विरोध के कारण स्थानीय अधिकारी मजदूरों को वापस यूपी न ले जाने पर तो सहमत हो गए, लेकिन उनकी तरफ से मजदूरों को आगे भेजने या ठहरने का इंतजाम नहीं किया गया.
इस पर खुद माले विधायक ने पास के एक स्कूल में सभी मजदूरों को ठहराया और उनके खाने-पीने का प्रबंध किया. इस दौरान बॉर्डर पार कर यूपी से मजदूरों का आना लगातार जारी रहा.
देर शाम तक 400 से अधिक मजदूर गुठनी चौराहे तक आ गए. स्थानीय अधिकारी सभी मजदूरों को हरिराम उच्चतर विद्यालय मैरवां और जीरादेई के एक स्कूल में ले गए.
स्थानीय अधिकारियों का कहना था कि उन्हें आदेश मिला है कि यूपी की तरफ से आ रहे प्रवासी मजदूरों को स्कूलों में 14 दिन के लिए क्वारंटाइन करना है.
विधायक सत्यदेव राम का कहना था कि जब मजदूर हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, यूपी से तमाम कष्ट सहते हुए यहां तक आ गए हैं तो प्रशासन को उन्हें उनके गृह जिले में भेजना चाहिए.
बढ़ते दबाव के चलते जिला प्रशासन ने दो बसों का इंतजाम किया और मजदूरों को उनके जिले में भेजा गया. यह सिलसिला 29 और 30 मार्च की रात तक चला.
इस दौरान करीब चार हजार मजदूरों ने मेहरौना होते हुए यूपी से बिहार में प्रवेश किया और अपने गृह जिलों की तरफ रवाना हुए.
भाकपा माले विधायक सत्यदेव राम ने बताया कि यूपी से होकर आए सैकड़ों ऐसे मजदूर थे जो कि पैदल चलते हुए आए थे. उनके पांव बुरी तरफ सूज गए थे.
उन्होंने स्थानीय लोगों के सहयोग से आरबीसी कॉलेज में कैंप लगाकर सभी मजदूरों को आराम करने व खाद्य सामग्री दिलवाने की व्यवस्था की.
उन्होंने बताया कि बेगूसराय जाने के लिए करीब 40 मजदूर दिल्ली से ठेला चलाते हुए आए थे. हर ठेले पर दो से तीन मजदूर बैठते थे और एक मजदूर उसे खींचता था. बारी-बारी उन्होंने ठेला चलाते हुए हर बाधा पार की और अपने घर को रवाना हुए. इन्हें गुठनी पहुंचने में चार दिन लगा था. मधुबनी के 24 मजदूर साइकिल चलाते हुए दिल्ली से आए थे. मजदूरों के अदम्य साहस को देख हम सभी दंग थे.
उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार सरकार और प्रशासन ने मजदूरों के लिए जितने दावे और वादे किए थे, उसका दो फीसदी भी इंतजाम नहीं किया.
प्रशासन की तरफ से न तो मजदूरों के लिए खाने-पीने का इंतजाम था न उनकी स्क्रीनिंग का. मजदूरों की मदद के लिए आवाज उठाने पर प्रशासनिक अधिकारी उन पर खफा हो रहे थे.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)