न्यूयॉर्क में कच्चे तेल की कीमत शून्य से भी नीचे जाकर प्रति बैरल माइनस 40.32 डॉलर पर पहुंच गई है. इससे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समये कच्चे तेल की कीमतें न्यूनतम स्तर पर गई थीं.
नई दिल्ली: अमेरिका के तेल मार्केट में बीते सोमवार को उस समय ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई, जब दुनिया के सबसे अच्छे गुणवत्ता वाला कच्चा तेल ‘वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट’ (डब्ल्यूटीआई) की कीमतें शून्य से भी नीचे जाकर न्यूयॉर्क में प्रति बैरल -40.32 डॉलर पर पहुंच गईं.
ब्लूमबर्ग के मुताबिक ये न सिर्फ कच्चे तेल की अब तक की सबसे न्यूनतम कीमत है, बल्कि शून्य के नीचे दाम गिरने की भी पहली घटना है. इससे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समये कच्चे तेल की कीमतें न्यूनतम स्तर पर गई थीं.
इस मूल्य पर एक विक्रेता को खरीददार को ही प्रति बैरल कच्चा तेल खरीदने पर 40 डॉलर का भुगतान करना पड़ेगा.
सेंट लुइस के फेडरल रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 8.9 प्रतिशत की गिरावट के साथ तेल के दाम प्रति बैरल 25.57 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गए थे.
तो कच्चे तेल की कीमत निगेटिव में जाने का क्या मतलब है?
एक बैरल कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण आपूर्ति, मांग और गुणवत्ता जैसे विभिन्न कारणों पर आधारित होता है. कोरोना वायरस के चलते अरबों लोगों की यात्रा पर रोक लगाए जाने की वजह से मांग के मुकाबले सप्लाई यानी कि आपूर्ति बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है.
ओवरसप्लाई की वजह से डब्ल्यूटीआई के स्टोरेज टैंक इतने भर चुके हैं कि तेल को रखने में जगह की समस्या हो रही है. यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन ने पिछले हफ्ते कहा था कि अमेरिका के पाइपलाइन नेटवर्क का केंद्र ओकलाहोमा के कुशिंग में स्टोरेज 10 अप्रैल तक लगभग 72% भर गया था.
न्यूयॉर्क के मिजुहो में फ्यूचर्स के निदेशक बॉब यॉगर ने कहा, ‘अब स्टोरेज के लिए कोई जगह बची नहीं है, इसलिए कमोडिटी की कीमत प्रभावी रूप से बेकार है. इसलिए अगर इसकी कीमत माइनस एक डॉलर है तो वे इसे वहां से निकालने के लिए आपको एक डॉलर का भुगतान करेंगे.’