कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वाले 55 वर्षीय डॉक्टर साइमन हरक्यूलिस के शव को दफनाने के दौरान भीड़ ने एम्बुलेंस पर हमला बोल दिया, जिससे सभी लोगों को शव छोड़ भागना पड़ा. बाद में एक सहकर्मी ने दो कर्मचारियों के साथ आधी रात को शव को दफनाया.
चेन्नई: तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सोमवार को जब एक डॉक्टर के शव को दफनाने के लिए कब्रिस्तान ले गए, तो वहां लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई. भीड़ ने एम्बुलेंस पर हमला बोल दिया, सभी लोगों को शव को कब्रिस्तान में ही छोड़ कर भागने को मजबूर होना पड़ा.
बाद में एक अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप को अपने दो कर्मचारियों के साथ आधी रात को कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वाले अपने न्यूरोसर्जन मित्र को दफनाना पड़ा.
55 वर्षीय डॉक्टर साइमन हरक्यूलिस की रविवार को चेन्नई के एक निजी अस्पताल में मृत्यु हो गई थी. वे अपने मरीजों के इलाज के दौरान कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे. डॉक्टर की अंत्येष्टि के लिए कई लोग आए थे लेकिन इसका विरोध कर रही भीड़ ने उन पर हमला कर दिया.
इस मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने आज चेतावनी दी कि यदि ऐसी घटनाएं रोकने में सरकारें असफल रहती हैं तो उपयुक्त जवाबी कदम उठाये जाएंगे. लोग विरोध इसलिए कर रहे थे कि उन्हें लगता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति का शव उनके क्षेत्र में दफनाने से वहां भी संक्रमण फैल जाएगा.
हालात ऐसे हो गए कि जिस एम्बुलेंस में 55 वर्षीय न्यूरोसर्जन का शव कब्रिस्तान तक लाया गया था भीड़ ने उसके कांच तोड़ दिए और ताबूत तक को नहीं बख्शा. भीड़ ने ईंट, पत्थर, बोतल और लाठियों से वहां मौजूद सभी लोगों पर हमला किया और उन्हें वहां से भगा दिया.
पुलिस के अनुसार इस घटना में दो एम्बुलेंस चालकों सहित सात लोगों के साथ मारपीट की गई, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए.
सूत्रों ने बताया कि इस सिलसिले में 20 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और स्थानीय अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.
वहीं, डॉक्टर की अंत्येष्टि में हुई हिंसा पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर उसे 28 अप्रैल तक जवाब देने को कहा.
जस्टिस एम. सत्यनारायणन और जस्टिस एम. निर्मल कुमार की विशेष पीठ ने मीडिया में इस संबंध में आयी खबरों के आधार पर इस पर स्वत: संज्ञान लिया और कहा कि गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है.
एक मीडिया चैनल ‘पुथिया थालेमई’ ने एक समाचार प्रसारित किया था, जिसमें दिखाया गया था कि एक डॉक्टर, जिसे पहले से ही स्वास्थ्य समस्याएं थीं, कोविड-19 संक्रमण के कारण पैदा हुई जटिलताओं के कारण दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गई.
डॉक्टर का शव चेन्नई के किल्पौक स्थित एक ईसाई कब्रिस्तान में ले जाया गया था, जहां बड़ी संख्या में क्षेत्र के निवासी इकट्ठे हो गए और शव को दफनाने का विरोध किया.
कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोविड-19 से संबंधित सामाजिक कलंकों’ और ‘शव प्रबंधन’ के संबंध में दिशानिर्देश भी जारी किए हैं. लोगों को उक्त दिशा-निर्देशों की जानकारी होनी चाहिए और उनका पालन करना चाहिए.
अदालत ने कहा, ‘नागरिकों को कानून और व्यवस्था को अपने हाथों नहीं लेना चाहिए. यदि ऐसा होता है तो निश्चित रूप से अराजकता पैदा होगी. भविष्य में भी ऐसी घटनाओं के होने की संभावना है.’
आईएमए ने अपने बयान में कहा है कि यदि राज्य सरकारों के पास ऐसी घटनाओं को रोकने की शक्ति नहीं है तो वे ‘शासन करने की नैतिकता खो चुकी हैं.’
डॉक्टरों पर हो रहे हमलों के संदर्भ में आईएमए ने कहा, ‘उकसावों के बावजूद हम धैर्य रख रहे हैं. लेकिन हमारा धैर्य अनंत नहीं है. गालियां, हिंसा, थूकना, पत्थर खाना, सोसायटियों और आवासीय कालोनियों में प्रवेश पर पाबंदी, अभी तक बर्दाश्त करते रहे हैं, क्योंकि हमने सरकारों से आशा की कि वे अपना कर्तव्य निभाएंगी.’
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजन शर्मा ने कहा, ‘अगर वे अपने संवैधानिक कर्तव्य निभाने में असफल हैं तो संभवत: यह सामान्य समय नहीं है. मरणोपरांत भी सम्मान नहीं मिलना, इससे बड़ा कोई पाप नहीं है.’
आईएमए के महासचिव आरवी अशोकन ने कहा कि यह बहुत दुखद है कि गैर-मेडिकल कारणों से और सेवाएं बंद हो जाएंगी.
उन्होंने चेतावनी दी, ‘राज्य सरकारें अपने संवैधानिक कर्तव्य निभाएं. अगर वे असफल रहती हैं तो मेडिकल पेशेवरों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए आईएमए उपयुक्त जवाबी कदम उठाने को बाध्य होगा.’
सर्जन डॉ. के प्रदीप कुमार ने कहा कि ऐसा किसी के साथ भी नहीं होना चाहिए चाहे वह डॉक्टर हों या आम आदमी.
हमले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैंने लोगों को मरते हुए देखा है लेकिन मैंने किसी को दफनाया नहीं था.’ उन्होंने अपनी जान पर खतरा के बीच अपने सहयोगी को दफनाया.
डॉक्टर प्रदीप ने बताया, ‘कब्र खोदना शुरू किए करीब 15 मिनट हुए होंगे, तभी 60-70 लोग ईंट, पत्थर और लाठियां लिए हुए वहां आए और हम पर हमला कर दिया. एम्बुलेंस से शव को उतार रहे उसके दो चालक घायल हो गए.’
अंत्येष्टि की जिम्मेदारी निभा रहे दो सफाई कर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए, जबकि तीन अन्य पर भी हमला हुआ.
डॉक्टर ने बताया कि हमले के दौरान वहां कोई पुलिसकर्मी नहीं था और हमले के कारण न्यूरोसर्जन की पत्नी और बेटे को भी वहां से जाना पड़ा.
उन्होंने बताया कि एम्बुलेंस चालक और वे किसी तरह वहां से शव को लेकर निकले. उन्होंने बताया कि एम्बुलेंस को अस्पताल पहुंचाकर सभी वहां से चले गए.
डॉक्टर प्रदीप ने कहा, ‘वहां मैंने अपना पीपीई लिया, दो अन्य कर्मचारियों को मदद के लिए साथ लिया और पुलिस की मदद लेकर खुद एम्बुलेंस चला कर कब्रिस्तान पहुंचे. कब्रिस्तान में सन्नाटा पसरा हुआ था, वहां कोई नहीं था, पुलिस आसपास तैनात थी.’
उन्होंने बताया, ‘हम तीनों ने जल्दी से शव को कब्र में डाला क्योंकि डर था कि कहीं फिर से हमला ना हो जाए.’
उन्होंने बताया कि शव को कब्र में डालने के बाद मिट्टी भरने वाला भी कोई नहीं था. उन्होंने कहा, ‘हमारे पास सिर्फ एक फावड़ा था, उसे मैंने एक कर्मचारी को दिया, बाकि दोनों ने अपने हाथ से मिट्टी डालकर उसे 8-10 फुट गहरे गड्ढे को भरा.’
मृतक न्यूरोसर्जन के एक डॉक्टर मित्र का कहना है कि लोगों में जानकारी की कमी के कारण ऐसा हो रहा है, उन्हें बताना होगा कि दफनाए जाने के बाद उस शव से कोई खतरा नहीं है.
कोविड-19 को लेकर द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन द्वारा सरकार की आलोचना किए जाने पर तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री सी. विजयभास्कर ने कहा, ‘यह राजनीति करने का वक्त नहीं है और विपक्ष के नेता को सस्ती राजनीति करने से बचना चाहिए.’
हिंसा की निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि 20 लोग गिरफ्तार किए गए हैं और उनके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया है.
तमिलनाडु के सरकारी डॉक्टरों के एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर के. सेंथिल ने हिंसा करने वालों के खिलाफ कठोर गुंडा कानून लगाने की मांग की है.
बता दें कि इससे पहले भी चेन्नई में कोरोना वायरस संक्रमण से जान गंवाने वाले आंध्र प्रदेश के एक डॉक्टर के अंतिम संस्कार का इलाके के निवासियों ने विरोध किया था जिस कारण अधिकारियों को शव को किसी अन्य स्थान पर ले जाना पड़ा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)