शिक्षाविदों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने सफाईकर्मियों की दयनीय दशा को लेकर केंद्र और सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखकर कहा है कि इन्हें प्रतिमाह 20,000 रुपये का न्यूनतम मेहनताना दिया जाए.
नई दिल्लीः शिक्षाविदों, अधिकार कार्यकर्ताओं और नागरिकों के एक समूह ने कोरोना वायरस के दौरान सफाईकर्मियों की दशा उजागर करने के लिए केंद्र और सभी राज्य सरकारों को खुला पत्र लिखा है.
इसके साथ ही पत्र में इन सफाईकर्मियों के कल्याण के लिए उठाए जाने वाले उपायों के बारे में बताया है.
देश में सफाई से जुड़े काम को जाति से जोड़कर देखे जाने और सभ्य समाज में इसे दोयम दर्जे का माने जाने को लेकर इन शिक्षाविदों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि देश में स्वच्छता के काम में लगे सफाईकर्मियों को अब भी बिना गरिमा और सुरक्षा के काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
बयान में कहा गया, ‘हमें इस समझ के साथ काम करना होगा कि स्वच्छता और कल्याण एक दूसरे के पूरक हैं. ठीक वैसे ही जैसे सफाईकर्मी और डॉक्टरों के काम पूरक हैं और उनके उद्देश्य समान है.’
बयान में कहा गया कि हालांकि यह समझ रातोंरात नहीं बनेगी. देश और समाज को कुछ सक्रिय कदम उठाने होंगे जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सफाईकर्मियों को उनका हक मिले. यह भी सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि इन्हें स्वास्थ्यकर्मियों की तरह वर्गीकृत किया जा सके और इन्हें हर महीने कम से कम 20,000 रुपये का न्यूनतम मेहनताना मिले. इसके साथ ही इस कॉन्ट्रैक्ट की प्रथा को हटाया जाए.
इस पत्र में कहा गया है कि विशेषाधिकार प्राप्त नागरिकों को स्वच्छता जरूरतों से जुड़े कामों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए जैसे कि सफाईकर्मियों द्वारा कचरा अलग करना, कचरे से खाद बनाना आदि.
इस पत्र में कहा गया है कि सफाईकर्मियों को डॉक्टरों और नर्सों के साथ स्वास्थ्यकर्मियों के तौर पर वर्गीकृत किया जाए. इससे उनकी गरिमा की रक्षा होगी.
- सफाई से जुड़े सभी कार्यों को मशीनों से किया जाना चाहिए.
- सफाई से जुड़ा कोई भी काम कॉन्ट्रैक्ट आधार पर नहीं होना चाहिए.
- सफाईकर्मियों को प्रतिमाह न्यूनतम 20,000 रुपये का मेहनताना मिलना चाहिए.
- सफाईकर्मियों और इनके परिवार वालों के लिए स्वास्थ्य बीमा होना चाहिए.
- सफाई से जुड़े खतरनाक काम के लिए तय भत्ते उपलब्ध कराए जाने चाहिए.
इस पत्र को यहां क्लिक कर अंग्रेजी में पढ़ा जा सकता है.