मामला ओडिशा के कालाहांडी जिले का है. लोकशक्ति अभियान संस्था के अध्यक्ष प्रफुल सामांत्रा ने बताया कि ये आदिवासी 2017 से वहां रह रहे थे. लेकिन प्रशासन कह रहा है कि वे लॉकडाउन के बाद वहां आए थे.
भुवनेश्वर: कोरोना वायरस के मद्देनजर देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान ओडिशा के कालाहांडी जिला में वन विभाग ने 32 आदिवासी परिवारों के घरों को तोड़ दिया.
गांव कनेक्शन के मुताबिक जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर सागड़ा पंचायत के नेहला गांव में ये घटना 24 अप्रैल को घटी. यह गांव खांडुल माली फॉरेस्ट एरिया के पास है और दक्षिण ओडिशा के इस क्षेत्र में कई बॉक्साइट खदानें हैं.
फिलहाल इन घरों में रहने वाले 90 से ज्यादा आदिवासी पेड़ों के नीचे रह रहे हैं और महुआ खाकर पेट भर रहे हैं.
लंबे समय से ओडिशा में आदिवासी मुद्दों को उठाने वाले ग्रीन नोबेल पुरस्कार विजेता और लोकशक्ति अभियान संस्था के अध्यक्ष प्रफुल सामांत्रा ने बताया कि वन विभाग वाले इन आदिवासियों को पिछले छह महीने से वहां से हटाने की कोशिश कर रहे थे. ये आदिवासी पहले वहां से 15 किलोमीटर दूर पहाड़ों में स्थित माखागुड़ा में रहते थे. लेकिन 2017 में भूस्खलन की वजह से उनके घर टूट गए. उसके बाद वे यहां आकर बस गए थे.
प्रफुल ने कहा, ‘जब पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा है, हमारे प्रधानमंत्री लोगों से घरों में रहने की अपील करते हैं, इधर 90 से ज्यादा लोगों को बेघर कर दिया गया. ये सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे करेंगे, इनके सामने तो अब जिंदा बने रहने की ही चुनौती होगी. जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा इनकी दिक्कतें बढ़ेगी.’
उन्होंने आरोप लगाया कि इन लोगों को साजिशन वहां से हटाया गया है. उन्होंने कहा कि क्योंकि ये इलाका हाथी संरक्षण क्षेत्र में आता है. ऐसे में जब लॉकडाउन है तो यहां कोई आ भी नहीं पायेगा और विभाग जो चाहता है वह हो जायेगा. किसी को पता भी नहीं चलेगा.
उन्होंने कहा, ‘घटना को दो दिन हो गए वन विभाग की इस अमानवीय व्यवहार का मीडिया में कोई खबर नहीं है. कुछ लोग वहां जाने का प्रयास कर रहे थे जिन्हें फॉरेस्ट विभाग के लोगों ने जाने नहीं दिया.’
कालाहांडी जिला अदालत में वकील और सुप्रीम कोर्ट में आदिवासी मामलों के याचिकाकर्ता सिद्धार्थ नायक का आरोप है कि प्रशासन बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर संरक्षित क्षेत्र को कम करना चाहता है. उन्होंने कहा कि वन विभाग नहीं चाहता कि आदिवासी यहां रहें और उनके पास कानूनी अधिकार हो.
उन्होंने कहा, ‘घटना के बाद मैं वहां कुछ टीवी पत्रकारों के साथ गया था लेकिन मुझे वहां जाने नहीं दिया गया. हमने कुछ तस्वीरें ली थीं जिसे फॉरेस्ट विभाग के अफसरों ने डिलीट करा दिए.’
सिद्धार्थ ने कहा, ‘यहां से कुछ ही दूरी पर वेदांता की बाक्साइट खनन परियोजना है इसलिए प्रशासन लगातार खनन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए संरक्षित इलाके को कम करने का प्रयास कर रहा है.’
𝐒𝐡𝐨𝐜𝐤𝐢𝐧𝐠 | भयानक News: 𝐓𝐚𝐤𝐞 𝐈𝐦𝐦𝐞𝐝𝐢𝐚𝐭𝐞 𝐀𝐜𝐭𝐢𝐨𝐧
Amidst lockdown, 32 houses of adivasis razed by forest officials in village Sagada, Khandualmali forest area, Kalahandi Dist on 24th April.
32 आदिवासियों के तालाबंदी के बाद आदिवासियों के घरों को तोड़ दिया है. pic.twitter.com/T5qNxt5FHP— MadhuSudan || ମଧୁସୁଦନ (@MadhuOdisha7) April 26, 2020
द वायर से बात करते हुए जनजागरण अभियान के सभापति मधुसूदन सेठी ने कहा, ‘कोरोना वायरस के दौरान सरकार को ऐसा अमानवीय और गैरकानूनी काम क्यों करना पड़ा, जिसके कारण आदिवासियों को खुले के आसमान के नीचे छोड़ दिया गया. सवाल यह भी उठता है डीएफओ कालाहांडी पिछले दो महीने से क्या कर रहे थे और जब वे लोग आए तब उन्होंने क्यों नहीं रोका.’
वे कहते हैं, ‘पिछले तीन साल से मालिकाना हक मांग रहे लोगों को उनका मालिकाना हक नहीं दिए जाने पर भी सवाल खड़े होते हैं?’
इस पर कालाहांडी साउथ के डीएफओ टी. अशोक कुमार ने कहा है कि ये आदिवासी लॉकडाउन के बाद वहां आए थे. उनका गांव घटना स्थल से 12-13 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है.
उन्होंने कहा, ‘हम इन आदिवासियों को लगातार समझा रहे थे कि अभी लॉकडाउन का समय है, आप लोग अपने गांवों में रहिए, लेकिन वे लोग यहीं रहने की जिद करने लगे. ऐसे में हमें उन पर कार्रवाई करनी पड़ी. जहां ये आदिवासी रह रहे थे वह जगह सागड़ा रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन है, ऐसे में उन्हें कैसे रहने देते.’
उन्होंने बताया कि इन आदिवासियों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन दिया गया था और एक हजार-हजार रुपये भी दिए गए थे.