लॉकडाउन: मीडिया में छंटनी, वेतन कटौती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

पत्रकारों के संगठनों का आरोप है कि कई मीडिया संस्थानों ने कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को नौकरी से हटाने, वेतन में कटौती करने और उन्हें बिना वेतन के छुट्टी पर जाने के नोटिस दिए हैं.

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(फोटो: रॉयटर्स)

पत्रकारों के संगठनों का आरोप है कि कई मीडिया संस्थानों ने कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को नौकरी से हटाने, वेतन में कटौती करने और उन्हें बिना वेतन के छुट्टी पर जाने के नोटिस दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: रॉयटर्स)
सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान कुछ मीडिया संगठनों द्वारा पत्रकारों सहित कर्मचारियों के साथ ‘अमानवीय और गैरकानूनी’ व्यवहार किए जाने के आरोपों पर केंद्र से सोमवार को जवाब मांगा.

पत्रकारों के संगठनों का आरोप है कि इन मीडिया संस्थानों ने कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को नौकरी से हटाने, वेतन में कटौती करने और उन्हें बिना वेतन के छुट्टी पर जाने के नोटिस दिए हैं.

जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने पत्रकारों के तीन संगठनों की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान केंद्र, इंडियन न्यूजपेपर्स सोसायटी, द न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन को नोटिस जारी किए. पीठ ने इस मामले को दो सप्ताह बाद आगे सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया है.

केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि इस समय सरकार को कोई नोटिस जारी नहीं किया जाए.

इस पर पीठ ने कहा, ‘ये मामले ऐसे हैं जिन पर सुनवाई की आवश्यकता है और इसमें कुछ गंभीर मुद्दे उठाए गए हैं.’

याचिकाकर्ता नेशनल एलांयस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और बृहन्मुम्बई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विस ने बहस की.

उन्होंने आरोप लगाया कि कोरोना वायरस का हवाला देते हुये पत्रकारों सहित कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जा रहा है और एकतरफा निर्णय लेकर उनके वेतन में कटौती की जा रही है तथा उन्हें अनिश्चित काल के लिये बगैर वेतन के छुट्टी पर भेजा जा रहा है.

इस जनहित याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि समाचार पत्रों का प्रकाशन करने या डिजिटल मीडिया सहित मीडिया के क्षेत्र में काम करने तथा पत्रकारों और गैर पत्रकारों को नौकरी पर रखने वाले सभी व्यक्तियों को अपने कर्मचारियों को मौखिक या लिखित में दी गयी सभी नोटिस अगले आदेश तक तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्देश दिया जाए.

यह याचिका समाचार पत्रों और मीडिया जगत में कार्यरत कर्मचारियों और श्रमिकों के प्रति नियोक्ताओं के ‘अमानवीय और गैरकानूनी रवैये’ को लेकर दायर की गई है.

याचिका के अनुसार, ‘मीडिया जगत में अनेक अखबारों, पत्रिकाओं, ऑनलाइन मीडिया और मीडिया जगत में कार्यरत दूसरे नियोक्ताओं ने मार्च 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद श्रम एवं रोजगार विभाग के स्पष्ट परामर्श के बावजूद कर्मचारियों और श्रमिकों की छंटनी करने, वेतन में कटौती करने की दिशा में कदम उठाये हैं.’

याचिका में कहा गया है कि प्रधानमंत्री तक ने कर्मचारियों की सेवायें समाप्त नहीं करने या उनके वेतन में कटौती नहीं करने की अपील की है.

याचिका में लॉकडाउन के दौरान कुछ मीडिया घरानों द्वारा अपने कर्मचारियों के खिलाफ की गयी कार्रवाई की जानकारी भी दी गई है.

बता दें कि, लॉकडाउन के बाद से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं जिसमें बड़ी से लेकर छोटी मीडिया कंपनियां कर्मचारियों को निकाल रही हैं, बिना वेतन के छुट्टी पर भेज रही हैं या फिर वेतन में कटौती कर रही हैं.

नेशनल एलांयस ऑफ जर्नलिस्ट्स और दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने टाइम्स ऑफ इंडिया की एक कर्मचारी के हवाले से आरोप लगाया था कि ढाई दशकों तक काम करने के बाद संडे मैगजीन की उनकी पूरी टीम को नौकरी से निकाल दिया है.

वहीं, उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस समूह पर अपने कर्मचारियों की सैलरी में 10 से 30 फीसदी की कटौती का आरोप लगाया था. इसके साथ ही द क्विंट वेबसाइट पर कर्मचारियों को बिना वेतन छुट्टी पर भेजने का आरोप लगाया था.

दोनों संगठनों ने न्यूज नेशन नेटवर्क पर 15 लोगों की अंग्रेजी डिजिटल टीम को निकालने का भी आरोप लगाया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)