उत्तर प्रदेश और बिहार के 34 मज़दूर कर्नाटक के शिमोगा ज़िले में फंसे हैं. बालू खनन का काम करने वहां गए मज़दूरों का कहना है कि जो थोड़े-बहुत पैसे थे, वो अब तक के लॉकडाउन के दौरान ख़त्म हो चुके हैं. अब अगर यहां से नहीं निकाला गया तो भुखमरी जान ले लेगी.
‘माननीय प्रधानमंत्री जी, माननीय मुख्यमंत्री जी! हम लोग प्रार्थना करते हैं कि ग्राम नौतार जंगल, पनियहवा, पथलहवा, बहेरी स्थान, मंझरिया टोला के हम 34 आदमी कर्नाटक में फंसे हैं.
माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो शब्द रखे उनकी बातों का हम लोगों ने पालन किया. आज एक महीने से ज्यादा लॉकडाउन लगे हो गया. हम लोगों का कामकाज बंद हो गया है.
जो रुपया था उसका राशन-पानी खरीदकर खा चुके हैं. अभी यही लगता है कि लॉकडाउन में कोरोना के बजाय भुखमरी से मर जाएंगे. आप ही बताइए कि हम लोग कोरोना से लड़े कि भूख से.
आप लोगों से गुजारिश है कि हम लोगों को अपने गांव बुलाया जाए किसी भी सुविधा से. हम यहां किसी भी सुविधा से वंचित हैं. हम लोग अपने-अपने घर-परिवार में जाना चाहते हैं. जय हिंद, जय वंदेमातरम.’
यह वीडियो संदेश कर्नाटक के शिमोगा जिले में हल्लूर गांव में फंसे उत्तर प्रदेश और बिहार के 34 बालू मजदूरों ने भेजा है. इस वीडियो संदेश को मजदूरों ने अपने-अपने गांव के ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और सांसद को संबोधित करते हुए वॉट्सएप पर भेजा है.
ये मजदूर भदरा नदी से बालू निकालने का काम कर रहे थे. मजदूरों में 25 कुशीनगर जिले के नौतार, पनियहवा, पथलहवा के हैं जबकि नौ मजदूर पड़ोस के बिहार के पश्चिमी चंपारण के कटकी मंझरिया गांव के हैं.
इन मजदूरों में ओम प्रकाश, नरेश, वकील, विजय, तवारक, अवधेश, साधू, जावाहिर, बाड़ू साहनी, रामेश्वर, हरि, दहारी, इंदल, शैलेन्द्र, शंभू, किशोर, ध्यानचंद, राधेश्याम, कपिल, अजय, छोटेलाल, रवीन्दर, दामोदर, बलिराम आदि शामिल हैं.
ये सभी गांव नारायणी नदी के किनारे हैं. ये मजदूर दिसंबर और जनवरी महीने पर वहां काम करने गए थे. ओम प्रकाश सैनी 18 मजदूरों के साथ 7 जनवरी को ट्रेन से यशवंतपुर आए और फिर बस से शिमोगा पहुंचे. बाकी लोग 9 दिसंबर को ही वहां पहुंचे.
ओमप्रकाश सैनी ने बताया कि वह पहले से यहां काम कर रहे अपने क्षेत्र के कुछ मजदूरों से बालू निकालने के काम में जानकारी मिलने के बाद आए थे.
यहां वे लोग 9-9 मजदूरों के समूह में काम करते थे. एक समूह सुबह से शाम तक नदी से पांच ट्रॉली बालू निकाल पाता था, मजदूरी ठेके पर मिलती थी. एक ट्रॉली बालू निकालने पर 1,150 रुपये मिलता था.
एक ट्रॉली बालू में 100 घनफुट बालू आता है. इस तरह एक मजदूर की एक दिन की कमाई करीब 600 रुपये होती थी. नाश्ता-भोजन व पानी के लिए उन्हें अलग से कुछ नहीं मिलता था.
सैनी ने बताया कि वे लोग बांस की खपच्चियों से बड़े-बड़े कराहे में बालू भर कर नदी किनारे लाते थे और टोकरी से एक जगह इकट्ठा कर देते थे. यहां से जेसीबी के जरिए बालू ट्रॉली व ट्रकों में लोड होकर बाहर चला जाता था.
सभी मजदूर लोग नदी किनारे ही झोपड़ी डालकर रह रहे हैं. यहीं पर हर समूह अपना भोजन बनाता हैं.
मजदूरों ने होली के पहले अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा अपने घर भेज दिया था. मई महीने तक नदी से बालू निकालने का काम होना था.
इसके बाद नदी में पानी बढ़ जाता और बालू निकालने का काम बंद हो जाता. मजदूरों की योजना थी कि वे मई माह तक बालू निकालने के काम करेंगे और काम बंद हो जाने पर गांव लौट जाएंगे.
लेकिन कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन घोषित होते ही काम बंद कर दिया गया. लॉकडाउन होने के कारण ट्रेन और बस बंद हो गए और सभी मजदूर यही फंस गए. अब वे मुश्किल में एक-एक दिन काट रहे हैं.
ओम प्रकाश ने बताया कि उन्हें पीने का पानी और राशन लेने के लिए लिए डेढ़ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. राशन व जरूरी वस्तुओं की दुकानें सुबह तीन घंटे के लिए खुलती हैं. इसी बीच उन्हें सामान ले लेना होता है.
उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें इस दौरान सरकार से काई सहायता नहीं मिली है और मजदूरी का पैसा धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है.
मजदूरों के लिए बड़ी मुसीबत भोजन बनाने के लिए ईंधन की है. वे आस-पास के खेतों से नारियल और सुपारी के पेड़ की सूखे पत्ते व लकड़ियां एकत्र करते हैं और उससे खाना बनाते हैं.
इधर आठ-दस दिन से रोज बारिश हो रही है. नदी में पानी बढ़ रहा है. यदि वे जल्द यहां से नहीं जा पाए तो उनका आशियाना भी उजड़ जाएगा.
मजदूरों ने बताया कि भाषा संबंधी दिक्कत के कारण वे स्थानीय लोगों से अपनी मुसीबत का बयान भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं. जब उन्होंने कहीं से मदद होती नहीं देखी, तो ओम प्रकाश सैनी ने वीडियो संदेश बनाने के बारे में सोचा.
उन्होंने 25 अप्रैल को अपने मोबाइल से वीडियो बनाया जिसमें वह सभी मजदूरों की ओर से प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, कुशीनगर के सांसद, अपने क्षेत्र के ब्लॉक प्रमुख और गांव के प्रधान से मदद करने की अपील करते देखे जा रहे हैं.
छह मिनट के इस वीडियो में उन्होंने मजदूरों की पूरी स्थिति दर्शाने का प्रयास किया है. सैनी ने यह यह वीडियो अपने ग्राम प्रधान के साथ-साथ कुशीनगर जिले के कुछ पत्रकारों को भेजा और अपने फेसबुक पेज पर भी लगाया है.
उन्होंने कहा कि वह फिर एक वीडियो बनाएंगे और जारी करेंगे. सैनी ने कहा कि वह और उनके साथी किसी तरह तीन मई तक कर समय काट लेंगे लेकिन यदि फिर से लॉकडाउन बढ़ाया गया तो वे भूखों मर जाएंगें.
उन्होंने कहा कि सरकार मजदूरों को उनके गांव-घर भेज दे फिर चाहे जब तक जरूरत हो लॉकडाउन करे. हमें अब हर हालत में अपने घर परिवार के पास जाना है.
ओम प्रकाश और उनके साथी मजदूर वर्षों से नदियों से बालू निकालने का काम करते हैं. ओम प्रकाश 12-13 वर्ष से बालू मजदूर हैं.
उन्होंने गोवा के कलंगूर में 6-7 वर्ष काम किया है. वे महाराष्ट्र के विरार इलाके में भी चार वर्ष रहे हैं. वह कहते हैं कि वे आषाढ़ महीने के बाद अक्सर कश्मीर में मजदूर करने चले जाते हैं क्योंकि वहां उन्हें अक्टूबर तक काम मिलता है.
ओमप्रकाश के अनुसार उन्होंने यूपी और बिहार के कई बालू ठेकों- कप्तानगंज, रगड़गंज, पटनवा पुल, सोनू घाट पर मजदूरी की है.
यूपी के कई बालू घाट की नीलामी बंद होने से यहां काम मिलना बंद हुआ तो उन्हें दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ा.
ओम प्रकाश ने बताया कि उन्होंने मनरेगा का जॉब कार्ड बनवाया है और पिछले वर्ष दिसंबर माह में कुछ दिन काम भी किया था लेकिन उन्हें लगातार काम नहीं मिल पा रहा था क्योंकि गांव में 200 से अधिक कार्डधारक है.
कभी-कभी ही काम मिलता है. मनरेगा में मजदूरी भी बहुत कम है इसलिए घर-परिवार को छोड़ बाहर जाना पड़ा है. ओम प्रकाश के घर में पत्नी, तीन बच्चों के अलावा माता-पिता और बाबा है.
ओम प्रकाश के साथ उनके गांव नौतार के जवाहर साहनी, दामोदर साहनी, छोटेलाल चौधरी हैं. पनियहवां गांव के सात और पथलहवा गांव के 12 मजदूर हैं.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)