मध्य प्रदेश में इंदौर के कोरोना का केंद्र बनकर उभरने की वजह क्या है?

कोरोना संक्रमितों की संख्या के लिहाज़ से महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली के बाद चौथा नंबर मध्य प्रदेश का है, जहां तीन चौथाई मामले केवल दो ज़िलों- इंदौर और भोपाल में सामने आए हैं. इसमें भी लगभग 60 फीसदी मामले अकेले इंदौर में मिले हैं.

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Indore: A medic checks the temperature of a stranded student from Kota upon her arrival, during the nationwide lockdown to curb the spread of coronavirus, in Indore, Thursday, April 23, 2020. (PTI Photo)(PTI23-04-2020_000220B)

कोरोना संक्रमितों की संख्या के लिहाज़ से महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली के बाद चौथा नंबर मध्य प्रदेश का है, जहां तीन चौथाई मामले केवल दो ज़िलों- इंदौर और भोपाल में सामने आए हैं. इसमें भी लगभग 60 फीसदी मामले अकेले इंदौर में मिले हैं.

Indore: A medic checks the temperature of a stranded student from Kota upon her arrival, during the nationwide lockdown to curb the spread of coronavirus, in Indore, Thursday, April 23, 2020. (PTI Photo)(PTI23-04-2020_000220B)
कोटा से एक छात्रा के इंदौर पहुंचने के बाद उसका तापमान जांचते स्वास्थ्यकर्मी. (फोटो: पीटीआई)

कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के मामले में मध्य प्रदेश (मप्र) भारत के शीर्ष पांच राज्यों में बना हुआ है. कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या के लिहाज से महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली के बाद चौथा नंबर मप्र का है.

मौतों के मामले में भी राज्य देश में तीसरे पायदान पर है. महाराष्ट्र और गुजरात के बाद सबसे ज्यादा मौतें यहीं हुई हैं.

लेकिन खास बात यह है कि 52 जिलों वाले मप्र के दो जिलों, इंदौर और भोपाल में ही करीब तीन चौथाई मामले सामने आए हैं. राज्य के करीब 60 फीसदी मामले तो अकेले इंदौर में हैं.

राज्य की आधी मौतें इंदौर में ही हुई हैं. गुरुवार तक कोरोना से राज्य में दम तोड़ने वाले कुल 137 लोगों में से 68 इंदौर से थे.

एक वक्त ऐसा भी था जब कोरोना से मौतों की संख्या मुंबई के बाद ‘मिनी मुंबई’ कहलाए जाने वाले इंदौर में सबसे ज्यादा थी, लेकिन बाद में अहमदाबाद ने इंदौर को पीछे छोड़ दिया.

इसलिए केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वे में देश का सबसे स्वच्छ यह शहर अब कोरोना के बढ़ते संक्रमण को लेकर सुर्खियों में है. जिसके चलते मप्र की कोरोना संक्रमण की औसत मृत्युदर राष्ट्रीय औसत से अधिक है.

एक वक्त तो इंदौर में औसत मृत्युदर दस प्रतिशत से भी अधिक थी. यही कारण है कि नीति आयोग देश के विशेष ध्यान देने योग्य 15 जिलों और महानगरों में इंदौर को शामिल करता है.

इन 15 में भी सबसे अधिक संवेदनशील सात जिलों में इंदौर चौथे पायदान पर है, इसीलिए केंद्र सरकार ने यहां कोरोना की रोकथाम के लिए ‘अंतर-मंत्रालयीन केंद्रीय टीम’ भेजी है.

व्यापमं घोटाले के व्हिसल ब्लोअर और कोविड-19 रिस्पांस टीम के सदस्य आनंद राय कहते हैं, ‘भारत में कोरोना फरवरी अंत में आ चुका था. पर हमने लॉकडाउन 22 मार्च को किया. तीन सप्ताह पहले ही लॉकडाउन होना था. नतीजतन, संक्रमण के प्रसार वाले देशों से लोग भारत आते रहे, उनको क्वारंटीन नहीं किया गया. इंदौर में ही करीब 4,400 लोगों की ट्रेवल हिस्ट्री थी. लॉकडाउन भी हुआ तो उसका भी ठीक ढंग से पालन नहीं कराया.’

गौरतलब है कि इंदौर में कोरोना की सबसे पहली आहट जनवरी के अंत में देखी गई जब चीन के वुहान शहर से दो भारतीय छात्र इंदौर लौटे. उन्हें एहतियातन यहां के एमवायएच अस्पताल में भर्ती किया गया.

फिर मार्च के शुरुआती हफ्ते में इटली से लौटी एक छात्रा और दुबई से लौटे एक व्यवसायी को संदिग्ध मानकर अस्पताल में भर्ती किया. सभी मामलों की रिपोर्ट नेगेटिव आई लेकिन कोरोना शहर में सुर्खी बन गया.

बावजूद इसके इंदौर में सख्ती संबंधी आदेश 18 मार्च को जारी हुए. तब रेल एवं सड़क मार्ग से जिले में प्रवेश करने वाले लोगों की जांच शुरू हुई. इससे पहले केवल एयरपोर्ट पर आ रहे अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की ही जांच की जा रही थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को देश में ‘जनता कर्फ्यू’ का लगवाया. इसके अगले ही दिन प्रशासन ने इंदौर में दो दिनी लॉकडाउन के आदेश दे दिए. यह अवधि पूरी होने से पहले ही 25 मार्च को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन हो गया.

हालांकि इंदौरमें 20 मार्च के बाद मामले सामने आने शुरू हुए लेकिन अंदर ही अंदर संक्रमण पूरे शहर और जिले को अपनी चपेट में ले चुका था क्योंकि 18 मार्च तक जिले में बाहरी लोगों को बिना जांच आने दिया गया.

मप्र में फैलते कोरोना संक्रमण पर शोध करने वाले आईआईएम इंदौर के असिस्टेंट प्रोफेसर सायंतन बनर्जी कहते हैं, ‘इंदौर का भौगोलिक ढांचा, इसका कॉमर्शियल हब होना, इंटरनेशनल एयर कनेक्टिविटी और महाराष्ट्र से 23 मार्च तक बस सेवा का जारी रहना, वो अहम कारण रहे जिससे कि हालात बिगड़े.’

वे आगे कहते हैं, ‘मरीजों की केस हिस्ट्री देखेंगे तो पाएंगे कि परिवारों में केस ज्यादा हैं. एक ही परिवार के आठ-दस लोग संक्रमित हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना की आहट पाते ही घर से दूर देश-विदेश में रह रहे लोग बिना किसी जांच अपने घर आते रहे.’

आग में घी का काम लोगों के लापरवाह रवैये ने भी किया. लॉकडाउन की घोषणा के बाद भी लोगों ने संक्रमण को गंभीरता से नहीं लिया. आए दिन लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के उल्लंघन की घटनाएं हुईं.

भोपाल एम्स में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. (फोटो: पीटीआई)
भोपाल एम्स में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. (फोटो: पीटीआई)

उदाहरणस्वरूप जनता कर्फ्यू वाले दिन लोगों ने सड़कों पर रैलियां निकालीं. इससे पहले भी प्रशासन के भीड़ इकट्ठा न करने के आदेश को अनदेखा करके रंगपंचमी मनाने हजारों लोग जुट गए थे.

इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी कहते हैं, ‘देश के सबसे अधिक संक्रमित शहर, दिल्ली और मुंबई से इंदौर की कनेक्टिविटी अधिक है. मप्र की एकमात्र इंटरनेशनल फ्लाइट दुबई से इंदौर आती है. ये अहम कारण हैं कि मप्र में इंदौर कोरोना का केंद्र बन गया. ऊपर से तबलीगी जमात वाले भी शहर में काफी संख्या में आ गए तो हालात बद से बदतर हो गए.’

मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इंदौर के हालातों के लिए तबलीगी जमात को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं. बीते दिनों उन्होंने कहा, ‘स्थिति सुधर रही थी लेकिन तबलीगी जमात वालों ने कोरोना और तेजी से फैला दिया. अधिकांश नये मामलों से तबलीगी जमात का संबंध होता है.’

सिर्फ शिवराज ही नहीं, पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और जबलपुर सांसद राकेश सिंह भी भोपाल और इंदौर के हालातों का जिम्मेदार तबलीगी जमात को बता चुके हैं. हालांकि इसके उलट राय रखने वाले भी लोग हैं.

आनंद राय कहते हैं, ‘इंदौर का पहला पॉजिटिव मामला वैष्णो देवी से लौटे परिवार का था. शहर के हजार से ज्यादा संक्रमितों में 50 का भी जमात कनेक्शन नहीं है. मैंने सीएम को खुली चुनौती दी है कि वे साबित करके बताएं कि कितनों का जमात कनेक्शन है?’

स्थानीय पत्रकार तरुण व्यास भी मानते हैं कि पूरी तरह से जमात को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं, लेकिन मुस्लिम बस्तियों में असहयोग के चलते जरूर संक्रमण का प्रसार बढ़ा.

वे कहते हैं, ‘स्वास्थ्य विभाग की टीम पर थूकने और मारकर भगाने की घटना जिस रानीपुरा इलाके से सामने आई, इंदौर में कहा जाता है कि जमात से जुड़े अधिकांश लोग यहीं रहते हैं. फिर भी पूरा दोष जमातियों पर डालना सही नहीं, लेकिन यह सच है कि बड़ी संख्या में मुसलमान संक्रमित हुए हैं. कोरोना की चपेट में आए बंबई बाजार, मछली बाजार जैसे इलाके मुस्लिम बहुल ही हैं.’

गौरतलब है जिस टाटपट्टी बाखल इलाके में स्वास्थ्य कर्मियोंपर हमला हुआ, वह भी मुस्लिम बहुल इलाका है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के इंदौर अध्यक्ष डॉ. शेखर डी. राव कहते हैं, ‘महीनेभर पहले काफी संक्रमण था. अचानक बहुत मामले सामने आए. विशेष तौर पर मुस्लिम इलाकों से, पर उन्होंने सहयोग नहीं किया. लगभग हर मुस्लिम क्षेत्र में हमने विरोध सहा.’

वे आगे बताते हैं, ‘विश्वास करना मुश्किल होगा कि वे अपने घर पर ही चिकित्सीय उपकरण और दवाओं का स्टॉक करके कोरोना का इलाज करा रहे थे. जब हालात बिगड़े तब अस्पताल पहुंचे, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.’

मुस्लिम समुदाय के असहयोग पर आनंद राय कहते हैं, ‘सीएए-एनआरसी के चलते लोगों के मन में बैठ गया कि संघ और मोदी मुसलमान के खिलाफ हैं. जब स्वास्थ्यकर्मियों की टीम मुस्लिम इलाकों में पहुंची तो वे उन्हें डॉक्टर की ड्रेस में सरकार के आदमी समझ बैठे. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दिल्ली की ऐसी घटनाएं लोगों को सुनने में आई थीं कि पुलिस के वेष में सरकार के लोग थे.’

वे आगे कहते हैं, ‘सारी सरकारी मशीनरी सत्ता की उठापटक में लगी रही. नौकरशाह अपने तबादले की सेटिंग करते रहे और अशिक्षित और गरीब मुसलमान के मन में डर बना रहा कि कोरोना की आड़ में सरकार साजिश कर रही है. उन्हें लगा कि पकड़कर डिटेंशन सेंटर में बंद कर देंगे. इंजेक्शन लगाकर मार देंगे. मन में शंका उत्पन्न हुई कि जो कोरोना संक्रमित पाए जा रहे हैं, वे मुसलमान ही क्यों हैं?’

आनंद राय के मुताबिक, जागरुकता के सरकारी प्रयास इस दौरान नगण्य रहे इसलिए शुरुआती दिनों में मुसलमान अनेक आशंकाओं में रहा.

बहरहाल, इंदौर संभागायुक्त आकाश त्रिपाठी के मुताबिक अब मुस्लिम बस्तियों से भरपूर सहयोग मिलने लगा है.

वे बताते हैं, ‘टाटपट्टी बाखल में हमला हुआ था. लेकिन जब उसी इलाके में लोग सही होकर पहुंचे तो स्वास्थ्यकर्मियों का फूल बरसाकर स्वागत किया. अब हमारी सर्वे टीम मुस्लिम इलाकों में भरपूर समर्थन पा रही हैं.’

वहीं, जहां तक सत्ता की उठापटक की बात है तो जब कोरोना अपने पैर पसार रहा था तब राज्य में तत्कालीन कांग्रेस सरकार और विपक्षी भाजपा के बीच सरकार बचाने और गिराने का खेल चल रहा था.

स्वास्थ्य मंत्री स्वयं बेंगलुरु भागकर सरकार गिराने की नीति बना रहे थे. 4 मार्च से शुरू हुआ सत्ता संघर्ष 20 मार्च तक चला.

कांग्रेस की सरकार गिर गई और 23 मार्च को भाजपा के शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बने. शपथ लेते ही उन्होंने अफसर-अधिकारियों के साथ कोरोना संबंधी बैठक की.

डॉ. शेखर भी सत्ता संघर्ष को हालात बिगड़ने का एक कारण मानते हुए कहते हैं, ‘इधर सरकार बदल रही थी, उधर संक्रमण प्रभावी हो रहा था. नेता, अफसर-अधिकारी सबकी निगाहें सत्ता परिवर्तन पर थीं. कहीं न कहीं जरूरी फैसले न ले पाने में इसका भी असर दिखा. चीजें ऐसे काम कर रही थीं कि पहले कांग्रेस वाले कलेक्टर थे, फिर बदल कर भाजपा वाले आए.’

गौरतलब है कि 28 मार्च को शिवराज सिंह ने इंदौर के तत्कालीन कलेक्टर और डीआईजी को हटाकर मनीष सिंह और हरिनारायणचारी मिश्र को क्रमश: नये कलेक्टर और डीआईजी के तौर नियुक्ति दी थी.

सरकार का तर्क था कि कोरोना की रोकथाम में तत्कालीन कलेक्टर और डीआईजी के प्रयास नाकाफी रहे थे. इसीलिए वर्तमान में दोनों दल बिगड़े हालातों का ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ रहे हैं.

कांग्रेसी नेता कहरहे हैं कि जब संक्रमण रोकने के लिए प्रयास होने चाहिए थे, तब भाजपा हमारी सरकार गिराने में लगी थी और स्वास्थ्य मंत्री को बेंगलुरू में कैद कर लिया.

Bhopal: BMC workers sanitize a residential locality after members of the same family tested positive for COVID-19 at Patrakar colony, during the nationwide lockdown imposed to curb the spread of coronavirus, in Bhopal, Friday, April 24, 2020. (PTI Photo)(PTI24-04-2020_000132B)
भोपाल में सेनिटाइजेशन करते नगर निगम के कर्मचारी. (फोटो: पीटीआई)

राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा कहते हैं, ‘केंद्र को हमारी सरकार गिरानी थी इसलिए 20 मार्च तक सरकार गिरने तक उन्होंने कोरोना दबाए रखा इसलिए संसद भी चलाते रहे.’

वे आगे कहते हैं, ‘जब 16 मार्च को स्पीकर ने राज्य विधानसभा 10 दिन के लिए स्थगित कर दी तो भाजपा सुप्रीम कोर्ट में कोरोना को सिर्फ एक बहाना बता रही थी. इसलिए भाजपा का सत्ता का लालच और हवस हालातों के जिम्मेदार हैं. जिला प्रशासन भी मानता है कि बिगड़े हालात केंद्र व राज्य सरकार और प्रशासन की लापरवाही का नतीजा हैं.’

यहां जिला प्रशासन से विवेक तन्खा का आशय इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह के उस बयान से है जिसमें मनीष ने कहा था, ‘जनवरी-फरवरी माह में विदेश से इंदौर पहुंचे यात्रियों द्वारा शहर में कोरोना लाया गया हो सकता है. इस दौरान आए करीब पांच से छह हजार यात्रियों की ढंग से स्क्रीनिंग नहीं की गई थी. मैं वहां नहीं था तो पता नहीं कि तब क्या निर्देश दिए गए थे.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कलेक्टर ने ये भी कहा कि इन यात्रियों में से कुछ सीएए के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन में भी शामिल हुए थे. इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि इंदौर की मुस्लिम आबादी में कोरोना उक्त प्रदर्शन में शामिल हुए इन यात्रियों के कारण भी फैला हो.

हालांकि, जनवरी-फरवरी माह में राज्य में भाजपा की नहीं, कांग्रेस की सरकार थी इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस को ही इन हालातों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं.

उनके मुताबिक कांग्रेस सरकार ने कोरोना को लेकर कोई तैयारी नहीं की थी. स्वास्थ्य विभाग के अमले को ट्रेनिंग तक नहीं दी गई जिससे वे संक्रमित हो गए.

शिवराज ने दावा किया कि प्रदेश में कोरोना संबंधी पहली बैठक मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने की थी. इंदौर डीआईजी हरिनारायण चारी मिश्र भी हालातों के लिए लॉकडाउन में देरी को कारण मानते हैं.

वे कहते हैं, ‘शुरुआती दौर में यहां लॉकडाउन नहीं हुआ था इसलिए हालात बिगड़े. साथ ही इस संक्रामक बीमारी को लोगों ने शुरु में गंभीरता से नहीं लिया लेकिन अब लोग समझ रहे हैं. काफी सख्त लॉकडाउन है इसलिए हालात सुधर रहे हैं.’

संभागायुक्त आकाश त्रिपाठी कहते हैं, ‘अब हालात बिगड़ने जैसी कोई स्थिति नहीं है. पॉजिटिव मामलों के सामने आने का मतलब यह नहीं कि हालात बिगड़ रहे हैं. अभी केंद्र की टीम भी आई थी, उसने भी हमारी व्यवस्थाएं माकूल पाई हैं.’

इस बीच इंदौर प्रशासन पर आरोप लग रहे हैं कि बढ़ते मामलों को देख उसने टेस्टिंग कम कर दी है. इस पर आकाश त्रिपाठी इससे इनकार करते हैं.

वे दावा करते हैं, ‘अब तक इंदौर में टेस्टिंग की दर प्रति दस लाख आबादी पर 1,600 सैंपल है. कई राज्यों में तो 100-200 का भी आंकड़ा नहीं है. हमने बिल्कुल क्वालिटी सैंपल लिए हैं जिनमें पॉजिटिव होने की अधिक संभावनाएं थीं. यह भी एक कारण है कि हमारे यहां मामले अधिक हैं.’

बहरहाल, विवेक तन्खा कहते हैं कि इंदौर में जितने मामले दिख रहे हैं, वास्तव में संख्या उससे कहीं अधिक है क्योंकि हफ्ते-हफ्ते, दस-दस दिन तक के सैंपल पेंडिंग पड़े हैं.

डॉ. शेखर इसके पीछे का कारण बताते हुए कहते हैं, ‘इंदौर में केवल एक सैंपल टेस्टिंग लैब है. इसलिए जांच के लिए नमूने पुदुचेरी और दिल्ली भेजे जाते हैं.’

जांच रिपोर्ट आने में देरी के चलते ऐसे कई उदाहरण सामने आ चुके हैं जब मरीज की मौत के बाद उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई हो और शव परिजनों को सौंप दिया हो. इससे भी संक्रमण फैलने की संभावनाएं बन रही हैं.

इस पर आकाश त्रिपाठी कहते हैं, ‘हमारी लैब की क्षमता 350 है. लेकिन हमारे पास पूरे संभागके 400 से ज्यादा सैंपल आते हैं. दो प्राइवेट लैब से हमारी बात चल रही है. जैसे ही बात बनती है, हम सैंपल वहां भेजने लगेंगे.’

उनका यह भी कहना है, ‘हम अपनी लैब की भी क्षमता बढ़ाने में लगे हैं. लेकिन जांच किट की उपलब्धता समस्या है. वो समय पर मिले तो हमारी क्षमता प्रतिदिन 600 टेस्ट से ऊपर हो जाएगी.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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