देशव्यापी लॉकडाउन के बीच हैदराबाद से आ रहे उत्तर प्रदेश के महराजगंज के मज़दूरों का एक समूह 10 मई को कानपुर से एक बालू लदे ट्रक में सवार होकर घर की ओर निकला था, लेकिन गोरखपुर के सहजनवां थाना क्षेत्र के पास यह ट्रक अनियंत्रित होकर पलट गया, जिसमें दो श्रमिकों की जान चली गई.
‘जब पुलिस ने कानपुर से हमें बालू लदे ट्रेलर पर बिठा दिया तो हम बहुत खुश हुए कि अब जल्दी घर पहुंच जाएंगे. बाराबंकी के पास बारिश होने लगी तो हमें रुकना पड़ा. एक घंटे बाद हम आगे बढ़े. बालू के ऊपर चट्टी बिछाकर हम लेटे थे. बारिश के बाद ठंडी हवा चल रही थी, जल्द ही सबको नींद आ गई . रात दो बजे के आस-पास मेरी नींद खुल गई . कुछ देर बाद जोर की आवाज आई. मैने देखा ट्रेलर पक्की सड़क से उतर कर बगीचे की तरफ बढ़ा चला जा रहा है. जब तक कुछ समझता ट्रेलर पलट गया और मैं हवा में उछलकर एक पेड़ से जा टकराया. कुछ देर तक मुझे होश ही नहीं आया कि मै कहां हूं. पैर और हाथ में जोर की चोट लगी थी. किसी तरह उठा तो देखा कि राहुल खून से सना पड़ा है. उसका सिर बुरी तरह फट गया था. उसकी सांस बंद हो चुकी थी. ’
तीन दिन बाद भी इस हादसे से सन्न मुन्ना बोलते-बोलते रुक गए. उनकी आवाज रुंध गई और वह सिसकियां लेने लगे.
18 वर्षीय मुन्ना 10 मई की रात गोरखपुर जिले के कसरवल में हुए हुए हादसे में घायल हो गए हैं. इस हादसे में दो प्रवासी श्रमिकों- राहुल साहनी (25) और परशुराम (40) की मौत हो गई. बाकी अन्य सात मजदूर भी घायल हुए थे गए, जिनमें से दो- राजेश और विद्यासागर को गंभीर चोटें आई हैं और ये अब भी अस्पताल में हैं.
ये सभी नौ मजदूर- राहुल साहनी, परशुराम गौड़, मुन्ना साहनी, भोला साहनी, रमेश, धीरज भारती, विद्यासागर, राजेश, संजय हैदराबाद में मजदूरी करते थे.
मुन्ना, भोला, रमेश व विद्यासागर महराजगंज जिले के कोठीभार थाना क्षेत्र के बरियारपुर हैं. राहुल भी उन्हीं के गांव का था. वहीं परशुराम इसी जिले के चौक थाना क्षेत्र के कसम्हरिया गांव के निवासी थे.
ये सभी हैदराबाद में पेंट पॉलिश का काम करते थे और चांदनगर इलाके में 3,500 रुपये महीने के किराये पर एक कमरे में रहते थे. एक दिन की मजदूरी 300 से 400 रुपये मिलती थी.
मुन्ना, राहुल साहनी का पट्टीदार है और घर के बगल में ही रहता है. इन सभी मजदूरों में कम उम्र का था और फरवरी महीने में हाईस्कूल की परीक्षा देने के बाद हैदराबाद मजदूरी करने गया था. उसके साथ गांव का एक और किशोर भोला भी गया था. राहुल और अन्य मजदूर 30 दिसंबर से ही हैदराबाद में थे.
मुन्ना इन मजदूरों के साथ रहते हुए केवल सात दिन मजदूरी कर पाया था कि लॉकडाउन हो गया. यही हाल उसके साथ के अन्य मजदूरों का था. लॉकडाउन के बाद मजदूरी की कमाई जल्द खत्म हो गई.
राहुल को अपने घर से दो बार पैसा मंगाना पड़ा. इन मजदूरों का मकान मालिक इस त्रासदी के समय भी कठोर बना रहा. उसने किराया न देने पर 25 दिन बाद मजदूरों को निकाल दिया. मजबूरन सभी मजदूर पैदल निकल पड़े लेकिन हैदराबाद पुलिस ने उन्हें रास्ते से वापस कर दिया.
पुलिस ने मकान मालिक को लॉकडाउन खत्म होने तक घर मे रखने को कहा. कुछ दिन और गुजरे लेकिन पैसे खत्म होने के कारण वे घर वापस आने के लिए रास्ते तलाशने लगे.
मुन्ना के अनुसार आठ मई को जब वह कमरे से निकलकर चौराहे की तरफ गए तो एक ट्रक दिखा. उन्होंने ट्रक चालक से बात की तो उसने कहा कि वह हर मजदूर से तीन हजार रुपये लेगा और उन्हें गोरखपुर पहुंचा देगा. यानी नौ मजदूरों का 27 हजार रुपये.
मजदूरों के पास उतने पैसे नहीं थे. इस पर मजदूरों ने अपने-अपने घर फोन किया और विद्यासागर के खाते में पैसा मंगाया. राहुल के भाई गोरख ने भी उसके खाते में रुपये भेजे. कुछ ने ट्रक ड्राइवर के बताए एकाउंट में पैसे ट्रांसफर किए.
इसके बाद ट्रक चला. इन मजदूरों के अलावा उस पर 70 और मजदूर सवार हुए. ये मजदूर यूपी और बिहार के थे. इस ट्रक ने 36 घंटे में मजदूरों को 10 मई की शाम कानपुर पहुंचा दिया. इसके बाद उसने आगे जाने से मना कर दिया.
सभी नौ मजदूर टोल टैक्स नाके पर रुक गए और अपने जिले जाने के लिए वाहन की तलाश करने लगे. इसी दौरान पुलिस ने रात दस बजे गोरखपुर जा रहे बालू लदे एक ट्रेलर में सभी नौ मजदूरों को बिठा दिया.
ट्रेलर मिलने से सभी मजदूरों का खुशी का ठिकाना न रहा, भरोसा हो गया कि जल्द ही अपने घर पहुंच जाएंगे. ट्रेलर पर सवार होने के पहले मुन्ना ने सभी मजदूरों की फोटो ली थी. एक में आठ और दूसरे में पांच मजदूरों की तस्वीर दिखती है.
कानपुर टोल नाके से ट्रेलर रात दस बजे चला. बाराबंकी पहुचते ही मजदूरों को आंधी-पानी का सामना करना पड़ा. इस कारण वे रुके. कुछ देर बाद आगे बढ़े तो रास्ते में पेड़ टूटकर गिरा था. यहां भी करीब एक घंटा रुकना पड़ा.
मुन्ना ने बताया, ‘आंधी-पानी के बाद मौसम अच्छा हो गया था. ठंडी हवा थी, हम सभी जल्द ही सो गए लेकिन हम क्या जानते थे कि घर-गांव के नजदीक पहुंच कर यह हादसा हो जाएगा और दो मजदूर साथियों का सफर हमेशा खत्म हो जाएगा.’
ये मजदूर हैदराबाद से 1,400 किलोमीटर का सफर तय कर चुके थे और अपने गांव पहुंचने के लिए 60 से 80 किलोमीटर और चलना था.
मुन्ना ने बताया जब ट्रेलर पलटा गया तो वह उछलकर पेड़ से टकराया. कुछ मिनट के लिए वह बेसुध रहा, उससे उठा नहीं जा रहा था. किसी तरह वह उठा तो देखा कि राहुल खून से सना पड़ा है, सिर फट गया है. उसी समय वहां ड्राइवर आया लेकिन राहुल को मृत देखकर भाग गया.
मुन्ना ने फिर ट्रेलर पलटने के बाद गिरे बालू में दबे भोला को छटपटाते देखा, तो किसी तरह उसे खींचकर बाहर निकाला. इसके बाद मुन्ना और भोला ने एक-एक कर सबको बाहर निकाला. सब बुरी तरह घायल थे. पर राहुल और परशुराम की मौत हो चुकी थी.
मुन्ना ने बताया, ‘ट्रेलर पलटने के बाद नजदीक के गांव के कुछ लोग पहुंचे. हमने मदद के लिए आवाज दी. वे टार्च से रोशनी मार रहे थे लेकिन शायद कोरोना के डर से हम लोगों के पास नहीं आए. उन लोगों ने पुलिस को फोन कर दिया. कुछ देर बाद पुलिस और फिर एम्बुलेंस आई.’
उन्होंने आगे बताया, ‘हम सभी को सहजनवां के एक अस्पताल में ले जाया गया, जहां सभी का नाम-पता नोट किया गया लेकिन इलाज नहीं हुआ. फिर दूसरे अस्पताल में ले जाया गया, जहां मरहम पट्टी हुई.’
मुन्ना कहते हैं कि सभी साथियों में उन्हें ही सबसे कम चोट आई थी, इसी कारण वह बाकियों की मदद कर सके, नहीं तो बालू में दबे सभी साथियों की मौत हो जाती.
मुन्ना ने उसी रात अपने मोबाइल से राहुल के बड़े भाई गोरख को फोन कर इस हादसे की जानकारी दी थी, जिसके बाद उनका फोन बंद हो गया. अस्पताल से छुट्टी होने के बाद 11 मई की शाम तक ये सभी उनके गांव पहुंचे.
मुन्ना बताते हैं, ‘दुर्घटना के बाद मेरा पर्स गायब हो गया, कोई पैसा तो नहीं था लेकिन आधार कार्ड था. राहुल, परशुराम और संजय का भी मोबाइल गायब हो गया. इन सभी के पास स्मार्ट फोन था.’
हादसे में जान गंवाने वाले राहुल के घर में मातम है. मंगलवार की देर रात राहुल का शव गांव पहुंचा, जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ.
राहुल तीन भाइयों में सबसे छोटे थे. बड़े भाई अपने परिवार के साथ अलग रहते हैं. राहुल मंझले भाई गोरख और माता-पिता साथ रहते थे. इस परिवार के पास बहुत कम खेत हैं, घर भी पक्का नहीं है.
राहुल की मां रामरती ने जब से यह खबर सुनी है, बेसुध हैं. हैदराबाद जाने से पहले राहुल की शादी तय कर दी गई थी. इसी साल शादी होनी थी. उनकी असमय मौत के बाद मां का यह अरमान भी खत्म हो गया.
गोरख बताते हैं, ‘राहुल ने कानपुर में दो साल मजदूरी की थी. वह मुंबई में भी मजदूरी कर चुका है. हैदराबाद पहली बार गया था.’
वे आगे बताते हैं, ‘राहुल ने हैदराबाद में दो महीना मकान पेंटिंग का काम किया था. मार्च महीने के तीसरे हफ्ते में कोरोना लॉकडाउन हो गया. लॉकडाउन के 40 दिन में उसके दो महीने की सब कमाई तो खत्म हो ही गई, घर से भी तीन बार सात हजार रुपये भेजे. हम सब लोग तो उसके सही-सलामत वापस आने की राह देख रहे थे, लेकिन उसकी लाश ही घर आई.’
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)