आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पैदल अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मजदूरों को सुविधा उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार को निर्देश जारी करते हुए कहा कि अगर वह मजदूरों की मौजूदा स्थितियों के मद्देनजर आदेश जारी नहीं करती है, तो उसकी भूमिका के साथ न्याय नहीं होगा.

हैदराबाद: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पैदल अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति पर ध्यान देते हुए उन्हें पीने का पानी और चिकित्सा सुविधा जैसी मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए शुक्रवार को निर्देश जारी किए.
लाइव लॉ के अनुसार, अदालत ने कहा कि अगर वह मजदूरों की मौजूदा स्थितियों के मद्देनजर आदेश जारी नहीं करती है, तो यह ‘रक्षक और दुखहर्ता’ के रूप में उसकी भूमिका के साथ न्याय नहीं होगा.
जस्टिस डीवीएसएस सोमयाजुलु और जस्टिस ललिता कान्नेग्नेती की खंडपीठ ने सरकार को प्रवासियों के लिए भोजन, शौचालय और चिकित्सा सहायता आदि की उचित उपलब्धता सुनिश्चित करने का आदेश दिया.
कोर्ट ने राज्य सरकार को दिए अपने निर्देश में प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन, पीने के पानी, ओरल डिहाइड्रेशन साल्ट और ग्लूकोज पैकेट, महिलाओं के लिए साफ-सुथरे अस्थायी शौचालय, सेनेटरी पैड डिस्पेंसिंग मशीनों की पर्याप्त व्यवस्था करने को कहा.
कोर्ट ने पैदल जा रहे प्रवासी श्रमिकों को राज्य सरकार द्वारा प्रदान किए गए परिवहन को जरिए गंतव्य तक भेजने या निकटतम आश्रय स्थल तक ले जाने का भी निर्देश दिया. इसके साथ ही हिंदी और तेलुगु में पैम्फलेट्स छपवाकर उन्हें आपात नंबरों की सूची भी उपलब्ध कराने के लिए कहा.
कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम सभी आराम से रहें, जो श्रमिक अपने पुश्तैनी घरों और गांव छोड़कर बेहतर आजीविका के लिए शहरों में आ गए, वे आज सड़कों पर हैं.
कोर्ट ने कहा, ‘ये वो लोग हैं, जो सैकड़ों किस्म के काम करते हैं. ये सभी मिलकर यह तय करते हैं कि हम सुखी और आरामदायक जीवन बिता सकें. यदि इस स्तर पर, यह न्यायालय प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता है और आदेश पारित नहीं करता है, तो यह न्यायालय रक्षक और दुखहर्ता के रूप में अपनी भूमिका से न्याय नहीं कर पाएगा. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार की सीमा भी इस स्थिति को ध्यान में रखेगी.’
पीठ ने प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की खबरों पर भी ध्यान दिया. कोर्ट ने समाचार पत्र ‘ईनाडू’ की एक रिपोर्ट का हवाला दिया कि 13 मई 2020 और 14 मई 2020 के बीच 24 घंटे की अवधि में 1300 लोगों ने एक चेकपोस्ट को साइकिल या पैदल पार किया था. 1000 श्रमिक लॉरी या अन्य परिवहन संसाधनों के जरिए गए.
कोर्ट ने उन रिपोर्टों का भी उल्लेख किया, जिनमें यह बताया गया था कि एक महिला ने नासिक से सठानी जाते हुए रास्ते में एक बच्चे को जन्म दिया. इन्हीं रिपोर्टों में यह भी कहा गया था कि प्रसव के दो घंटे बाद महिला ने फिर पैदल चलना शुरु कर दिया और 150 किलोमीटर तक पैदल चली. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस रिपोर्ट पर ध्यान दिया है. वहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मुंबई में छोटी दूरी तय करने के लिए भी एंबुलेंस 8000 रुपये ले रहे हैं.
कोर्ट ने कहा कि हालात खतरनाक है और तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यक है.
कोर्ट ने 22 मई, 2020 को उपरोक्त निर्देशों की एक अनुपालन रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया है.
इससे पहले बीते शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने लॉकडाउन के बीच पलायन करते प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति को मानवीय त्रासदी करार दिया है.
जस्टिस एन. किरुबकरण और जस्टिस आर. हेमलता की पीठ ने कहा था, ‘यह देखना दयनीय है कि प्रवासी मजदूर अपने काम की जगह से कई दिन पैदल चलकर अपने गृह राज्य पहुंच रहे हैं. कुछ की मौत रास्ते में ही दुर्घटना से हो जा रही है. सभी राज्यों को चाहिए कि ऐसे मजदूरों को मानवीय सहायता मुहैया कराएं.’
हालांकि, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर 16 प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक मौत के बाद पैदल चल रहे प्रवासियों मजदूरों के लिए दायर एक याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया था कि कोर्ट के लिए संभव नहीं है कि वो इस स्थिति को मॉनिटर कर सकें.
याचिका में मांग की गई थी कि देश के सभी जिला मजिस्ट्रेटों को तुरंत निर्देश दिया जाए कि वे पैदल चल रहे लोगों की पहचान कर उन्हें उनके घरों तक सुरक्षित तरीके पहुंचाने में मदद करें.