लॉकडाउन: समाचार पत्र संगठन ने कहा- केंद्र और राज्यों पर विज्ञापन के करोड़ों रुपये बकाया

पत्रकार संगठनों ने लॉकडाउन के दौरान सभी बर्ख़ास्तगी नोटिसों को निलंबित करने, वेतन कटौती वापस लेने, बिना वेतन छुट्टी पर भेजे जाने संबंधी नोटिस निलंबित रखने का निर्देश देने के लिए एक जनहित याचिका दाख़िल की है. इसके बचाव में इंडियन न्यूज़पेपर सोसायटी और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने हफ़लनामा दायर किया है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

पत्रकार संगठनों ने लॉकडाउन के दौरान सभी बर्ख़ास्तगी नोटिसों को निलंबित करने, वेतन कटौती वापस लेने, बिना वेतन छुट्टी पर भेजे जाने संबंधी नोटिस निलंबित रखने का निर्देश देने के लिए एक जनहित याचिका दाख़िल की है. इसके बचाव में इंडियन न्यूज़पेपर सोसायटी और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने हफ़लनामा दायर किया है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: रॉयटर्स)
सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: समाचार पत्रों के संगठन आईएनएस ने उच्चतम न्यायालय में बुधवार को कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों पर विज्ञापनों की मद में विभिन्न समाचार पत्रों की 1800 करोड़ रुपये से ज्यादा धनराशि बकाया है और निकट भविष्य में यह बकाया रकम मिलने की संभावना बहुत ही कम है.

इंडियन न्यूज़पेपर सोसायटी (आईएनएस) ने मीडिया उद्योग की माली स्थिति को रेखांकित करते हुए एक हलफनामा न्यायालय में दाखिल किया है.

न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) ने भी एक अलग हलफनामे में इस तथ्य की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है.

इन दोनों संगठनों ने पत्रकारों के तीन संगठन- नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और बृह्नमुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स की जनहित याचिका पर जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा जारी किए गए नोटिस के जवाब में दाखिल हलफनामे में यह जानकारी दी.

आईएनएस से अलग एनबीए द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन की वजह से समाचार उद्योग का कारोबार गंभीर आर्थिक संकट में आ गया है और इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

एनबीए ने इस स्थिति को अप्रत्याशित बताते हुए कहा है कि समाचार उद्योग को इस आर्थिक संकट से उबारने के लिए किसी पैकेज या उपायों की सरकार ने अभी तक कोई घोषणा नहीं की है, जबकि यह चरमराने के कगार पर पहुंच गया है.

पत्रकारों के संगठनों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि 25 मार्च को देश में लॉकडाउन लागू होने का हवाला देते हुए समाचार पत्रों के प्रबंधक पत्रकारों सहित कर्मचारियों की सेवाएं खत्म कर रहे हैं, मनमाने तरीके से उनके वेतन में कटौती की जा रही है तथा कर्मचारियों को अनिश्चितकाल के लिए बगैर वेतन छुट्टी पर भेजा जा रहा है.

आईएनएस ने अपने हलफनामे में कहा है कि विभिन्न उद्योगों के अनुमान के अनुसार, डीएवीपी पर विज्ञापनों का 1500 से 1800 करोड़ रुपये बकाया है. इसमें से 800 से 900 करोड़ रुपये अकेले प्रिंट मीडिया उद्योग का है.

हलफनामे के अनुसार, इतनी बड़ी राशि कई महीनों से बकाया है और निकट भविष्य में इसका भुगतान होने की संभावना बहुत ही कम है.

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि सरकारी विज्ञापनों में करीब 80 से 85 प्रतिशत की कमी हुई है और लॉकडाउन की वजह से कुछ विज्ञापनों में करीब 90 प्रतिशत की गिरावट हुई है.

आईएनएस ने कहा है कि मीडिया और मनोरंजन उद्योग एफएमसीजी, ई-कॉमर्स, वित्तीय कंपनियों और ऑटोमोबाइल उद्योग जैसे दूसरे उद्योगों द्वारा विज्ञापनों पर खर्च होने वाली राशि पर ही फलता-फूलता है लेकिन लॉकडाउन की वजह से यह बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

आईएनएस के अनुसार, विज्ञापनों में कमी की वजह से अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं को अपने प्रकाशन के पन्नों की संख्या कम करनी पड़ी है और कुछ समाचार पत्रों को अपने मुद्रित संस्करण बंद करने पड़े हैं, क्योंकि इसका वितरण करने वालों ने अखबार उठाने से इनकार कर दिया है.

इन संगठनों ने तीनों पत्रकार संगठनों द्वारा दाखिल जनहित याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुए हलफनामों में कहा है कि अनेक समाचार ब्रॉडकास्टर उसके सदस्य हैं और ये सभी निजी प्रतिष्ठान हैं. इसलिए इनके खिलाफ कोई रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती.

लाइव लॉ के मुताबिक तर्क दिया गया है कि औद्योगिक विवाद (आईडी) अधिनियम 1947 के तहत औद्योगिक प्रतिष्ठानों की तीन श्रेणियां हैं, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने गलत तरीके से माना है कि सभी अखबार प्रतिष्ठान 100 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देते हैं और इस प्रकार एक श्रेणी में आते हैं.

आईएनएस ने तर्क दिया कि औद्योगिक प्रतिष्ठान जिन्हें फैक्ट्रियों अधिनियम 1948 के तहत कारखानों के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, जिसमें दो श्रेणियां शामिल हैं जहां 100 से कम कामगार कार्यरत हैं, वो सरकार की पूर्व अनुमति के बिना छंटनी, बंदी और वेतन कटौती लागू करने के लिए अधिनियम के अनुसार स्वतंत्र हैं.

एनबीए ने तीनों पत्रकार संगठनों पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे देश के पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और केवल अपने हितों की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं.

एनबीए ने कहा, ‘लॉकडाउन के कारण व्यवसाय की कमी, कोविड-19 के कारण व्यवसाय पर प्रभाव और वेतन व मजदूरी का निरंतर भुगतान संभावित रूप से निजी प्रतिष्ठानों को दिवालियेपन में डाल सकता है, जब तक कि सरकार द्वारा उद्योग और अर्थव्यवस्था की सुरक्षा करने के लिए उपयुक्त आर्थिक नीतियों और वित्तीय उपायों को नहीं लाया जाता है.’

तीनों पत्रकार संगठनों ने अखबारों व मीडिया में नियोक्ताओं द्वारा कर्मचारियों के साथ अमानवीय और अवैध व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए दाखिल याचिका में सभी बर्खास्तगी नोटिसों को निलंबित करने, वेतन कटौती को वापस लेने, इस्तीफे प्राप्त करने से रोकने, बगैर वेतन छुट्टी पर भेजे जाने संबंधी मौखिक या लिखित रूप से दिए गए सभी नोटिस निलंबित रखने का निर्देश देने का अनुरोध सुप्रीम कोर्ट से किया है.

बीते महीने कोविड-19 के संकट से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सामने आए भारी आर्थिक संकट पर जोर देते हुए न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से अनुरोध किया कि उनके लिए प्रोत्साहन पैकेज दिया जाए तथा समाचार चैनलों का 64 करोड़ रुपये से अधिक का सरकारी विज्ञापनों के बकाया का भुगतान किया जाए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)