दुनिया घूमने निकला फ्रांस का एक परिवार मार्च में भारत के रास्ते नेपाल जा रहा था, जब दोनों ही देशों में कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन के कारण वे भारत की सीमा में ही रह गया. बीते दो महीने से वे लोग महराजगंज ज़िले के अचलगढ़ गांव में रह रहे हैं.
कोरोना संक्रमण के मद्देनजर हुए लॉकडाउन में सड़क मार्ग से दुनिया की सैर करने निकले एक फ्रेंच दंपत्ति, उनकी दो बेटियां व एक बेटा महराजगंज जिले में दो महीने से फंसे हुए हैं.
इस दंपत्ति ने जंगल किनारे एक गांव में अपना डेरा बनाया है. दिलचस्प बात यह है कि गांव वाले इस परिवार की खूब आवभगत कर रहे हैं और यह परिवार भी उनसे हिल-मिल गया है.
फ्रांस के सीनारेंस निवासी पैट्रिस जोसेफ पलारिस और वर्जिनी कैरोलिन अपनी तीन बच्चों- आफ्लो मार्गिटी पलारिस, लोला जेनिफर और टॉम मैटी के साथ पिछले वर्ष जुलाई से दुनिया की सैर पर निकले हैं. परिवार के पास एक कुत्ता भी है.
एक बड़ी-सी गाड़ी और उससे जुड़ी ट्राली में हर परिस्थितियों में रहने के साजो-सामान के साथ यह परिवार पाकिस्तान से होकर एक मार्च को बाघा बॉर्डर पार कर भारत आया था. यह परिवार करीब एक महीने पाकिस्तान में रहा.
फिर भारत में राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कई शहरों से होता यह परिवार 22 मार्च को गोरखपुर, महराजगंज होते हुए नेपाल की ओर निकला, लेकिन लॉकडाउन के कारण भारत-नेपाल बॉर्डर बंद होने के कारण वे नेपाल नहीं जा सके.
पैट्रिस दो बार बॉर्डर पर गए लेकिन उन्हें नेपाल जाने की अनुमति नहीं मिली. कोरोना महामारी के कारण नेपाल ने 24 मार्च को ही लॉकडाउन की घोषणा करते हुए बॉर्डर सील कर दिया था. भारत में भी 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू हो गया था.
तभी से दोनों देश लॉकडाउन बढ़ाते जा रहा हैं, भारत 31 मई तक लॉकडाउन के चौथे चरण में हैं तो नेपाल ने भी लॉकडाउन की अवधि दो जून तक बढ़ा दी है.
नेपाल बॉर्डर बंद होने के कारण पैट्रिस वापस लौटे और गोरखपुर जाने की कोशिश की, लेकिन गोरखपुर की सीमा भी सील कर दी गई थी. तब इस परिवार ने एक रात कैम्पियरगंज के पास जंगल में बिताई.
दूसरे दिन वे सोहगीबरवां सेंचुरी की तरफ गए. सेंचुरी के प्रवेश द्वार के पास स्थित लालपुर कल्याणपुर ग्रामसभा के अचलगढ़ गांव की आबोहवा उन्हें भा गई. उन्होंने गांव के मंदिर परिसर में अपना डेरा जमा लिया.
गांव के प्रधान योगेंद्र साहनी और मंदिर के पुजारी बाबा उदय राज ने उन्हें पूरा सहयोग दिया. तभी से यह परिवार यहीं पर रह रहा है. उन्हें नेपाल होते हुए म्यांमार, अफगानिस्तान, मलेशिया सहित कई देशों का भ्रमण करना है.
फ्रेंच परिवार के यहां रहने की जानकारी पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने आकर उनसे किसी गेस्ट हाउस या होटल में रहने का अनुरोध किया लेकिन दंपत्ति ने गांव में रहने की बात कही. अधिकारियों ने इसे स्वीकार कर लिया.
इस दौरान इस परिवार की वीजा की अवधि भी खत्म हो गई, जिसको बढ़ाने के लिए उन्होंने आवेदन किया है. लक्ष्मीपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक भी यहां आकर इस परिवार का परीक्षण कर चुके हैं.
इनके पास एक बड़ी गाड़ी और उसके साथ लगी ट्रॉली है. गाड़ी के ऊपर इन्होंने टेंट लगा रखा है, जिसमें वे सोते है. गांव में रहते हुए पैट्रिस, वर्जिनी ने भोजपुरी व हिंदी के कई शब्द सीख लिए हैं. वे ग्रामीणों का अभिवादन भोजपुरी में करते हैं. ग्रामीण जब उन्हें भोजपुरी में बोलते सुनते हैं तो खुश हो जाते हैं.
लक्ष्मीपुर के ग्राम प्रधान योगेंद्र साहनी ने बताया कि गांव के लोग इस परिवार की खूब आवभगत कर रहे हैं. ग्रामीण उन्हें फल, सब्जियां, दूध देते हैं, रोटियां भी बनाकर पहुंचा देते हैं. मंदिर के पुजारी भी अपने व सहयोगियों के लिए बनने वाले भोजन के साथ-साथ अक्सर इस परिवार के लिए भी भोजन बनाते हैं.
कई बार यह परिवार खुद भी खाना बनाता है. मंदिर के बगल में गांव का स्कूल है जहां टॉयलेट व बाथरूम की सुविधा है. विदेशी मेहमानों के लिए इसे खोल दिया गया है और यह परिवार इन सुविधाओं का प्रयोग कर रहा है.
इसी गांव में रहने वाले करुणानिधि मिश्र ने बताया कि वे अक्सर मिलने जाते हैं. वे कहते हैं, ‘यह परिवार यहां पूरी तरह से रम गया है. वह यहां से जाने के लिए उद्यत नहीं हैं और लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं.’
उन्होंने बताया कि मंदिर व स्कूल परिसर में सुबह-शाम ग्रामीण इस परिवार को देखने आते हैं. पैट्रिस, वर्जिनी और उनके बच्चे गांव के बच्चों के साथ खेलते हैं. दिन में अक्सर वे कुछ न कुछ पढ़ते रहते हैं या मोबाइल व लैपटॉप में व्यस्त रहते हैं.
यह परिवार मीडिया से दूरी बनाए रखता है हालांकि जब इनके यहां रहने की जानकारी मिली तो स्थानीय पत्रकारों का कई दिनों तक जमावड़ा रहा.
कुछ स्थानीय चैनलों के पत्रकारों से बातचीत में वर्जिनी ने कहा, ‘हम दस महीने से यात्रा पर हैं. हमें घूमना अच्छा लगता है और अब हम नेपाल सीमा खुलने का इंतजार कर रहे हैं.’
ग्रामीणों की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा. ‘गांव के लोग काफी अच्छे हैं और हमारी काफी मदद करते हैं. मंदिर के पुजारी हमारे लिए भोजन बना देते हैं. हमने हनुमान मंदिर में प्रार्थना की है कि वे कोरोना को खत्म कर दें.’
नेपाल बॉर्डर से करीब 25 किलोमीटर पहले स्थित यह गांव सोहगीबरवां सेुचरी के लक्ष्मीपुर रेंज कार्यालय के पास है. अचलगढ़ वनटांगिया बस्ती है जिसमें 212 परिवार रहते हैं. गांव के प्रधान योगेंद्र साहनी भी इसी वनटांगिया समुदाय से आते हैं.
साल 2015 में देश की आजादी के बाद पहली बार गोरखपुर-महराजगंज के 23 वनटांगिया गांव के लोगों को पंचायत चुनाव में हिस्सा लिया था. उसी वक्त अचलगढ़ और तिनकोनिया वनटांगिया बस्ती को लालपुर कल्याण ग्राम सभा में शामिल किया गया था और युवा योगेंद्र साहनी प्रधान चुने गए थे.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)