मीडिया संगठनों के ख़िलाफ़ तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका को मद्रास हाईकोर्ट ने ख़ारिज करते हुए कहा कि राज्य को आपराधिक मानहानि के मुकदमे दायर करने में बेहद संयम और परिपक्वता दिखानी चाहिए.
नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को मीडिया संगठनों के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा दायर आपराधिक मानहानि को खारिज कर दिया और कहा कि लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए राज्य आपराधिक मानहानि का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.
साल 2011 से 2013 के बीच दायर मानहानि मुकदमों के खिलाफ मीडिया घरानों द्वारा दायर 25 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अब्दुल कुद्दोज ने कहा, ‘यदि राज्य सोशल मीडिया के समय में भी, जहां सार्वजनिक व्यक्तियों के खिलाफ गालियों की भरमार है, आपराधिक मानहानि का इस्तेमाल करता है तो सत्र न्यायालय इस तरह के मामलों से भर जाएंगे जिसमें कुछ मामले प्रतिशोधी प्रवृति के होंगे जिसका उद्देश्य विपक्षी दलों के साथ हिसाब बराबर करना होगा.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक अदालत ने दोहराया कि राज्य को आपराधिक मानहानि के मुकदमे दायर करने में बेहद संयम और परिपक्वता दिखानी होगी.
कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मानहानि की प्रक्रिया केवल उन्हीं मामलों में लागू की जा सकती है, जहां पर पूरा प्रमाण हो और धारा 199(2) के तहत अभियोजन की शुरुआत करना अनिवार्य हो.
मीडिया के खिलाफ आपराधिक मानहानि को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की सरकारों की प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा, ‘इस खतरे पर अंकुश लगाना होगा.’
द हिंदू, नखेरन, टाइम्स ऑफ इंडिया, दिनामलार, तमिल मुरासु, मुरासोली और दिनाकरन जैसे मीडिया घराने याचिकाकर्ताओं में शामिल थे.
साल 2011 और 2016 के बीच तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं दिवंगत जे. जयललिता के कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में कई तरह की खबरों को लेकर आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया गया था, जिसमें अन्नाद्रमुक कार्यकर्ताओं द्वारा एक तमिल पत्रिका पर हमले के बारे में एक रिपोर्ट, एक महिला द्वारा जयललिता की बेटी होने का दावा करना, जैसी खबरें शामिल हैं.